जो मॉज़िला से करें प्यार, वो 'प्रियंका' को कैसे करें इनकार...
प्रियंका नाग के जज्बे की कहानीदुनियाभर में मॉज़िला की प्रचारकट्रेन में भी किया मॉज़िला का प्रचारदुनिया की सबसे बड़ी ओपन सोर्स प्रचारक बनने का ख्वाब
प्रियंका नाग एक इंजीनियर नहीं है, क्योंकि वो भीड़ से अलग दिखना चाहती हैं। और आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? – बीसीए कर के। हैरानी की बात है? लेकिन ये सच है। कोलकाता के इंग्लिश माध्यम स्कूल से पढ़ने वाली ये बागी कैसे देश में मॉजिला जैसी कंपनी की सबसे बड़ी प्रचारक (इवांजेलिस्ट) बन गई, ये कहानी वाकई में पढ़ने लायक है।
कोलकाता में पली-बढ़ी प्रियंका का पहली बार कंप्यूटर से सामना सातवीं में पढ़ने के दौरान हुआ। प्रियंका ने पहली बार ड्रॉइंग के लिए लोगो बनाकर प्रोग्रामिंग में हाथ आजमाया। घर में अपना पहला कंप्यूटर मिलने से पहले तक प्रियंका के लिए कंप्यूटर एक खेलने वाले गैजेट भर था। लेकिन घर में सिर्फ कंप्यूटर होने से वो डेंजरस डेव और प्रिंस जैसे कंप्यूटर गेम्स खेलने के अलावा कुछ और नहीं कर पा रही थी। प्रियंका ने जब अपने माता-पिता से घर पर इंटरनेट कनेक्शन लगावाने की बात कही, तो उनके माता-पिता ने प्रियंका के सामने केबल टीवी और इंटरनेट कनेक्शन में से किसी एक को चुनने का विकल्प दिया। जाहिर है, उसने इंटरनेट का विकल्प चुना। दुर्भाग्यवश उनका इंटरनेट इस्तेमाल करने का समय काफी सीमित था, क्योंकि तब इंटरनेट को एक शैतान माना जाता था। प्रियंका में इस बात को जानने की उत्सुकता थी कि आखिर इंटरनेट को शैतान या गलत क्यों समझा जाता है। प्रियंका को इंटरनेट की ऐसी लत थी कि उसकी वजह से घर का फोन कनेक्शन हमेशा बिजी रहता था (इंटरनेट डायलअप कनेक्शन था) और अक्सर फोन का बिल 15,000 रुपये तक आ जाता था, जिसकी वजह से उसे काफी डांट भी पड़ती थी।
एक बार नेटवर्क में प्रयोग करने के दौरान प्रियंका अपने आईएसपी सर्वर में पहुंच गई, जहां वो फोल्डर स्ट्रक्चर नेविगेट करने लगी थी, साथ ही वो दूसरे ग्राहकों के लॉग को भी देख पा रही थी। काफी देर तक देखने के बाद प्रियंका ने गलती से शिफ्ट-डीलीट का बटन दबा दिया, जिससे एक ही झटके में सब कुछ डीलीट हो गया। प्रियंका इस कहानी को काफी रोमांचित होकर याद करती है।
वो कहती हैं कि ग्रेजुएशन के लिए पुणे जाने का उनका फैसला उनकी जिंदगी का सबसे अच्छा फैसला था। एक नए शहर में जब प्रियंका के पास करने को कुछ नहीं था, तो उन्होंने अपने शौक को पूरा वक्त दिया। “एक नया लैपटॉप मिलना मेरे लिए उत्साह बढ़ाने वाला था और ये मेरा सबसे अच्छा दोस्त बन गया, मैं प्रोग्रामिंग लैंग्वेज और दूसरी चीजें सीखने में वक्त बिताने लगी।”
माइक्रोसॉफ्ट की दीवानी
प्रियंका आखिर माइक्रोसॉफ्ट की इतनी बड़ी समर्थक कैसे बन गई, ये अपने आप में एक ऐसी कहानी है जिसे प्रियंका खुलकर सुनाती हैं।
“सिंगारपुर में नैनयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में इंटर्नशिप करने के दौरान मुझे NASSCOM की क्षमता की दुनिया के बारे में जानकारी मिली। इसलिए मैंने प्रतियोगिता के लिए फॉर्म भर दिया। ये बस टाइमपास के लिए था। मैं माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस पैकेज के तहत एमवीपी में प्रशिक्षित हूं। यह एक तरह का एंटरप्राइज सॉल्यूशन बनाने जैसा था, जैसे माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस टूल्स का इस्तेमाल करने के अलावा पूरा का पूरा टिकटिंग सिस्टम को एमएस एक्सेल में बनाना हो।”
माइक्रोसॉफ्ट बनाम ओपन सोर्स
प्रियंका अपने बैच में गोल्ड मेडल के साथ ग्रेजुएट हुई और फिर प्रोस्ट ग्रेजुएशन करने लग गई, इसी दौरान उनका सामना बड़े ही रोचक अंदाज में ओपन सोर्स से हुआ।
“हमारे विभागाअध्यक्ष ओपन सोर्स पहल के अध्यक्ष थे, और मैं इसमें हाथ आजमाने के लिए रिसर्च लैब में शामिल हो गई। लैब में पहले दिन ही मेरा मेरे विभागाक्ष्यक्ष के साथ तीन घंटे तक इस बात पर बहस होती रही कि माइक्रोसॉफ्ट बेहतर है या ओपन सोर्स। आखिर में उन्होंने मुझे ओपन सोर्स को एक बार देखने की सलाह दी। मैं पूरी रात जागकर डाउनलोड कर Ubuntu इंस्टाल करती रही और सुबह तक मैं मान चुकी थी कि ये काफी अच्छा था।”
जब एक सीनियर ने उन्हें मॉजकैफे (मॉजिला की बैठक) की बैठक के लिए बुलाया, तब प्रियंका को ये पता नहीं था कि संडे को इस बैठक में जाना सही होगा या नहीं। एक बार जब वो बैठक के लिए पहुंच गई, तब प्रियंका ये सोचकर हैरान थी कि आखिर ये लोग उस चीज के लिए इतने क्यों उत्साहित हैं, जबकि उन्हें इसके लिए पैसे भी नहीं मिलते हैं। लेकिन वो शाम, प्रियंका के लिए मॉजिला के सफर की शुरुआत थी।
प्रियंका उस शाम को याद करते हुए कहती हैं, “शायद मैंने उस दिन सबसे अच्छी शाम गुजारी थी।”
मॉजिला के साथ सफर
प्रियंका मॉजिला की प्रचारक (इवांजेलिस्ट) है और वो जो कुछ भी है, उसके लिए वो मॉजिला के साथ जुड़ाव को जिम्मेदार बताती हैं। एक प्रचारक (इवांजेलिस्ट) के तौर पर प्रियंका का काम दुनिया भर में ओपन सोर्स के इवेंट्स ऑर्गनाइज करना है। उन्हें पहली बार स्टेज पर बोलने का मौका मॉजकार्निवल (मॉजिला का एक कार्यक्रम) के दौरान ‘वुमेन इन टेक’ में मिला, तब प्रियंका ने करीब 200 से ज्यादा दर्शकों के सामने अपनी राय रखी थी।
हाल ही में प्रियंका ने यूरोप के सबसे बड़े ओपन सोर्स टेक कॉन्फ्रेंस FOSDEM 2014 वुमेंन एंड टेक्नोलॉजी में भाषण दिया था। प्रियंका विकिमीडिया के ऑउटरीच प्रोग्राम फॉर वुमेन का हिस्सा भी रही हैं, जहां उन्होंने कई प्रोजेक्ट के लिए स्थानीय टेंपलेट्स, गैजेट्स और स्टाइल की डॉक्यूमेंटिंग के लिए अहम भूमिका निभाई है। उनका कहना है, “वहां मैंने एक जो सबसे बेहतरीन चीज सीखी, वो ये कि किसी भी समस्या के लिए 30 मिनट से ज्यादा वक्त नहीं देना चाहिए। जब आप किसी चीज में फंस जाएं, तो स्क्रीन पर उसे देखते रहने के बजाए किसी को मदद के लिए बुलाना चाहिए।” सोच-समझकर ओपन सोर्स को अपनाना किसी के लिए भी काफी मुश्किल वाला फैसला होता है, प्रियंका भी कोई अपवाद नहीं थी। पर्पल गीयर सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के साथ इंटर्नशिप करने के साथ ही प्रियंका ने तय कर लिया था कि कार्पोरेट जिंदगी उनके लिए नहीं है। इसलिए उन्होंने आजाद दुनिया के लिए आरामदायक नौकरी को छोड़ने का फैसला किया। प्रियंका कहती हैं, “मैं लोगों के लिए काम नहीं कर सकती, बल्कि मैं लोगों के साथ काम करना चाहती हूं।” सौभाग्यवश स्क्रॉलबैक से उनके पास सही वक्त पर बुलावा आया और उन्होंने उसकी टीम को एक प्रचारक (इवांजेलिस्ट) के तौर पर ज्वाइन कर लिया।
दुरंतो एक्सप्रेस में प्रचार
एक बार दुरंतो एक्सप्रेस में सफर करने के दौरान उनके सामने बैठा एक लड़का लगातार क्रोम की तारीफ किए जा रहा था – क्रोम काफी तेज है, क्रोम बग फ्री है, फायरफॉक्स धीमा है। एक सीमा तक पहुंचने के बाद प्रियंका ने फायरफॉक्स के फायदे बताने शुरू किए और फिर उसका प्रचार करने लगीं। फॉयरफॉक्स के फायदे बताते-बताते बात वहां तक पहुंच गई, जब प्रियंका अपने कंपार्टमेंट में बैठे साथी यात्रियों को मॉजिला के बैज बांटने लगीं।
भविष्य की योजनाएं
अपने भविष्य के बारे में बात करते हुए प्रियंका बताती हैं कि वो दुनिया की सबसे अच्छी ओपन सोर्स प्रचारक (इवांजेलिस्ट) बनना चाहती हैं। सभी के लिए बेहतर वेब और ओपन सोर्स बनाने की सोच उन्हें ऐसा करने की आजादी देती है। वो कहती है, “आप ग्राहक क्यों बनें जबकि आप खुद लोगों के लिए कुछ बना सकते हैं।”