एक महाराज ने रखी थी उस कंपनी की नींव जो आज चुनाव वाली स्याही बनाती है, बड़ी दिलचस्प है इसकी कहानी
वोट के बाद मतदाताओं की उंगली पर जो अमिट स्याही लगाई जाती है उसकी कहानी बेहद दिलचस्प हैं। जो कंपनी इस खास स्याही का निर्माण करती है उसका इतिहास भी काफी लंबा- चौड़ा और गौरवशाली है।
"वोट के बाद मतदाताओं की उंगली पर जो अमिट स्याही लगाई जाती है उसकी कहानी बेहद दिलचस्प हैं। जो कंपनी इस खास स्याही का निर्माण करती है उसका इतिहास भी काफी लंबा- चौड़ा और गौरवशाली है। कंपनी द्वारा बनाई जाने वाली ये स्याही इतनी खास है कि इसकी डिमांड अब भारत के साथ ही दुनिया के तमाम देशों द्वारा की जाती है।"
देश में अक्सर कोई न चुनाव होते रहते हैं। हर पाँच साल में होने वाले इन चुनावों को यहाँ एक उत्सव के रूप में देखा जाता है, जहां यह कोशिश रहती है कि मतदान में अधिक से अधिक मतदाता हिस्सा लें। मतदाता भी अब आमतौर पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के समर्थन में अपना वोट डालने के बाद अपनी उस उंगली को दिखाते हुए सेल्फी भी लेते हैं जिसमें वोट के बाद चुनाव कर्मचारी द्वारा अमिट स्याही लगाई गई होती है।
वोट के बाद मतदाताओं की उंगली पर जो अमिट स्याही लगाई जाती है उसकी कहानी बेहद दिलचस्प हैं। जो कंपनी इस खास स्याही का निर्माण करती है उसका इतिहास भी काफी लंबा- चौड़ा और गौरवशाली है। कंपनी द्वारा बनाई जाने वाली ये स्याही इतनी खास है कि इसकी डिमांड अब भारत के साथ ही दुनिया के तमाम देशों द्वारा की जाती है।
राजवंश से जुड़ा इतिहास
इस अमिट स्याही का निर्माण करने वाली कंपनी की जड़ें मैसूर साम्राज्य के वाडियार राजवंश के 24वें शासक कृष्णराज वाडियार चतुर्थ से जुड़ी हैं। बात साल 1894 की है जब कृष्णराज वाडियार महज 11 साल के थे तभी उनके पिता चमराजेंद्र वाडियार का निधन हो गया। इस कठिन समय में कृष्णराज वाडियार ने राज्य की सत्ता संभाली और 1902 तक वो पूरी तरह कमान अपने हाथों में ले चुके थे और यहीं से मैसूर विकास के एक अलग और तेज रास्ते पर आगे बढ़ गया।
कृष्णराज वाडियार ने इस दौरान कई उपक्रम शुरू किए जिनमे से एक था ‘मैसूर पेंट्स एंड लैक लिमिटेड’। शुरुआत में यह कंपनी सेना और सरकार के लिए पेंट के निर्माण का काम करती थी, हालांकि 1940 में जब कृष्णराज वाडियार का देहांत हुआ तब कंपनी की बागडोर अगली पीढ़ी के हाथों में सौंप दी गई, लेकिन 1947 में देश को आज़ादी मिलने के साथ ही इस कंपनी को राजघराने ने तत्कालीन सरकार को सौंप दिया।
वोटिंग में धांधली पर विराम
शुरुआत में जब आम चुनाव शुरू हुए तो यह महसूस किया गया कि कई लोग दो या उससे भी अधिक बार वोट डाल रहे हैं और इसे रोकने की बेहद सख्त जरूरत थी। इस समस्या के समाधान के रूप में वैज्ञानिक एमएल गोयल ने अपनी टीम के साथ मिलकर एक खास स्याही तैयार की और इसे बड़े स्तर पर उत्पादित करने की ज़िम्मेदारी कर्नाटक सरकार के अधीन काम करने वाली कंपनी मैसूर पेंट्स एंड लैक लिमिटेड’ को दी गई।
देश में तीसरे आम चुनावों में ही वोट डाल चुके लोगों के हाथों पर यह स्याही लगनी शुरू हो गई थी। इस पहल के जरिये फर्जी वोटिंग को पूरी तरह से तो नहीं रोंका जा सका लेकिन इसमें बड़े स्तर पर कमी जरूर लाई गई। सिल्वर नाइट्रेट सॉल्यूशन मिली यह स्याही हाथ या उंगली पर लगने के महज कुछ ही सेकंड के बाद सूख जाती है जिसे फौरन मिटाना नामुमकिन होता है।
अन्य देशों में सप्लाई
कुछ समय बाद कर्नाटक सरकार ने कंपनी का नाम बदलते हुए इसे ‘मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड’ कर दिया। यह कंपनी आज भारत के साथ ही 24 से अधिक देशों में चुनावों के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली स्याही सप्लाई करती है। इतना ही नहीं यह कंपनी स्याही के साथ प्राइमर, पेंट और पॉलिश जैसे ढेरों अन्य उत्पाद भी बनाती है। इस ऐतिहासिक कंपनी में जहां आज हजारों की संख्या में लोग काम कर रहे हैं वहीं इसकी कुल वैल्यूएशन 600 करोड़ रुपये के आस-पास है।
Edited by Ranjana Tripathi