मात्र 17 वर्ष की उम्र में कार्यकारी निदेशक बनीं कृति जैन
13 वर्ष की उम्र में खेल खेल में पिता के साथ दफ्तर और निर्माण स्थलों पर जाकर सीखीं काम की बारीकियां। 15 वर्ष की उम्र में दसवीं की परीक्षाओं के तुरंत बाद औपचारिक रूप से पिता के व्यवसाय में हुईं शामिल। कृति का कहना है कि वे आज जिस भी मुकाम पर हैं अपने पिता की वजह से हैं और वहीं उनके प्रेरणास्रोत हैं । वर्ष 2004-2005 में महाराष्ट्र के राज्यपाल एसएम कृष्णा से पा चुकी हैं उत्कृष्टता का शीर्ष प्रबंधन कंसोर्टियम पुरस्कार
मात्र आठ वर्ष की उम्र में वह पहली बार अपने पिता ललित कुमार जैन के साथ सोसाइटी हस्तांतरण बैठक में शामिल हुई थीं जब उनके पिता ने एक सामुदायिक आवासीय योजना को संचालन के लिये स्थानीय निवासियों के हवाले किया था। उस बैठक में शामिल होना तो कृति जैन की व्यवसासिक यात्रा की शुरुआत भर थी।
पुणे की रहने वाली कृति जैन मात्र 17 वर्ष की उम्र में निर्माण के क्षेत्र के जाने-माने नाम कुमार बिल्डर्स के कार्यकारी निदेशक पद को संभालने के साथ-साथ बहुत थोड़े समय में और बहुत जल्द एक सम्मानित स्थान हासिल कर चुकी हैं। महाराष्ट्र के राज्यपाल एसएम कृष्णा से वर्ष 2004-2005 में उत्कृष्टता का शीर्ष प्रबंधन कंसोर्टियम पुरस्कार जीतना सम्मानों की उसी कड़ी का एक हिस्सा है। उनसे पहले मेहर पद्मजी और सुलज्जा एफ मोटवानी जैसी नामचीन हस्तियां इस पुरस्कार को हासिल करने वालों में प्रमुख नाम हैं। वर्ष 2012 में उन्हें एनडीटीवी के यंग गन्स आॅफ रियल एस्टेट कार्यक्रम में भी एक वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था।
लेकिन उनकी सफलता की कहानी इतनी आसान नहीं रही है जितनी वह ऊपर से दिखती है और यह उन्हें प्राकृतिक उत्तराधिकार के रूप में आसानी से प्राप्त नहीं हुई है। आज 26 वर्ष की उम्र में कृति याोरस्टोरी को बताती हैं कि अपनी वर्तमान स्थिति तक पहुंचने के लिए उन्होंने क्या-क्या संघर्ष किये।
यह सब कैसे शुरू हुआ....
जब वे 13 वर्ष की थीं तब अपने पिता के साथ कुछ अच्छा समय बिताने की एक पुत्री की प्राकृतिक चाहत के तौर पर उन्होंने पूरी गर्मियां उनके दफ्तर और विभिन्न निर्माण स्थलों पर गुजारा और पूरे समय वे इस जुगत में लगी रहीं कि कैसे अपने पिता को काम से कुछ समय निकालते हुए निकालते हुए परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के लिये मना सकें। इसका नतीजा यह हुआ कि एक बहुत छोटी उम्र से ही वे निर्माण के क्षेत्र की बारिकियों को जानने और समझने लगीं।
इस बारे में बताते हुए वे कहती हैं, ‘‘मैंनें उन्हें निकालने की कोशिश की और उल्टे मैं ही इसमें धंस गई।’’ एक तरफ तो जहां वे हर बैठक के दौरान उन्हें समय निकालने के लिये टोकती रहतीं और पूरा दिन उनके कंप्यूटर पर माइक्रोसाॅफ्ट पेंट पर काम करते हुए समय बितातीं वहीं दूसरी तरफ वे दफ्तर के काम से संबंधित होने वाली चर्चाओं का भी एक भाग बनतीं और उनकी शब्दावली को सीखने का प्रयास करतीं।वे मुस्कुराते हुए एक विशेष प्रसंग का उल्लेख करती हैं जब उन्हें एक कानूनी परिषद की बैठक में भाग लेने का मौका मिला जिसमें एक बहुत वरिष्ठ कानूनविद् ब्रीफिंग करने के लिये आए हुए थे। अगले दिन जब सभी संबंधित लोग औपचारिक बैठक में विचार-विमर्श में लगे हुए थे उन्होंने उन्हें एक महत्वपूर्ण बिंदु के बारे में याद दिलाया जिसे सब भूले बैठे थे। पूरा कमरा कुछ क्षणों के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध-मौन से भर गया और फिर सबसे मुस्कान के साथ उनका शुक्रिया अदा किया।
वे कहती हैं, ‘‘वैसे भी मैं बहुत अधिक बातूनी थी और लगभग हर विषय पर मेरी अपनी एक राय होती थी।’’ उस मौके पर मौजूद कानूनविद् से मिली प्रशंसा ने उन्हें आर्किटेक्चर करने का फैसला बदलकर उसके स्थान पर कानून की पढ़ाई करने के लिये प्रेरित किया और कानून की डिग्री भी उनके इस कारोबार में बहुत कारगर साबित हुई।
उत्तराधिकार इतनी आसानी से नहीं मिला....
अपनी दसवीं कक्षा की परीक्षा समाप्त होते ही कृति ने 15 वर्ष की उम्र में औपचारिक रूप से काम पर जाना शुरू कर दिया। लेकिन उनके पिता ने इस काम को उनके लिये इतना आसान नहीं बनने दिया। अगले दो वर्षों तक उनके पिता उन्हें हर प्रकार का काम करने का अनुभव दिलाने के लिये 23 विभिन्न विभागों में काम करने का मौका दिया और उस दौरान वे उन सब लोगों को रिपोर्ट करती थीं जो वर्तमान में उन्हें रिपोर्ट करते हैं। उनके पास प्राप्त करने के लिये लक्ष्य थे और उन्हें संबंधों को भी बनाना और निभाना था।
वे कहती हैं कि मालिक की बेटी होने के नाते उनपर काम में और भी अधिक अनुशासित होने का अतिरिक्त दबाव रहता था। चूंकि उन्हें बहुत कम उम्र में ही इस क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा और राय निर्माताओं से रूबरू होने का मौका मिला और केवल इसी वजह से वे ‘चांदी की चम्मच के साथ पैदा हुई’ की बात से वे सहमत होती हैं। उनके पिता ललित कुमार के बेहद विस्तृत नेटवर्क और अनुभव का उन्हें बहुत फायदा मिला और निर्माण के काम की सर्वोच्च प्रथाओं और डिजाइन से लेकर ‘वास्तु’ और ‘वेंटिलेशन’ तक से संबंधित उनके तमाम प्रश्नों के उत्तर उन्हें सिर्फ एक फोन काॅल पर ही मिल जाते। इस मदद की वजह से वे बहुत कम समय में अधिक सीखने में सफल रहीं। दो वर्षों के प्रशिक्षण के बाद उन्हें तरक्की देते हुए कंपनी का कार्यकारी निदेशक बना दिया गया और इसके साथ ही शहर के सबसे युवा अधिकारियों में से एक के रूप में उनके सफर की शुरुआत हुई। इसके साथ ही साथ उन्होंने बीबीए और एलएलबी के दोहरे डिग्री कार्यक्रम में भी दाखिला ले लिया और इसे सफलतापूर्वक पूरा किया।
बहुत छोटी उम्र में काम में लगने के परिणामस्वरूप पैदा हुए आत्मविश्वास ने कभी भी इनके मस्तिष्क में लिंगभेद को लेकर कोई विचार आने का मौका ही नहीं दिया। कृति की परवरिश बिल्कुल एक टाॅमबाॅय की तरह हुई और उन्हें कभी इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा कि वे एक निर्माण स्थल पर मौजूद अकेली लड़की हैं या फिर 90 अन्य डेवलपर्स के साथ अंतराष्ट्र्रीय दौरे पर जा रही हैं। वे हंसते हुए बताती हैं कि उन्होंने कभी इस ओर ध्यान भी नहीं दिया लेकिन करीब पांच वर्ष पूर्व डेवलपर्स के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए तब पुणे सीआरईडेएआई के चेयरमैन ने करीब 200 से अधिक की भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘मेरे साथी डेवलपर्स और मौजूद एक महिला।’’ वे इस बात को सोच-सोच कर हंसती हैं, ‘‘उन्होंने मुझे एक महिला कहा?’’
वे कहती हैं कि आपको हमेशा एक महिला होने का गर्व करना चाहिये क्योंकि हर कोई एक महिला की राय को जानने का इच्छुक होता है!
उनकी प्रेरणा....
कृति अपनी प्रेरणा का वर्णन सिर्फ दो शब्दों में करती हैं, ‘‘मेरे पिता।’’
उनका परिवार पिछली कई पीढि़यों से व्यापार की दुनिया में है और इसी वजह से महत्वाकांक्षा उनकी रग रग में बसी हुई है। वे अपने पिता ललित कुमार जैन के बारे में गर्व से बात करते हुए उन्हें दूरदर्शी सोच वाला इंसान और अपना सबसे मूल्यवान संरक्षक मानती हैं। उन्होंने ही कृति को बड़े सपने देखने के लिये प्रोत्साहित करने के साथ-साथ क्लतरावा और ज़ाहा हदीद जैसों से प्रेरित होते हुए उस समय पैरामीट्रिक इमारतों के निर्माण के बारे में सोचने के लिये प्रेरित किया जब वे भारत में अप्रासंगिक थीं। वे अपने पिता के द्वारा जानबूझकर खाने की मेज पर नई भागीदारियों और भूमि संबंधी समझौतें के बारे में की जाने वाली बातों को याद करती हैं और उन्हें मालूम है कि वे उन्हें बहुत छोटी उम्र में ही इस क्षेत्र में कामयाबी के लिये आवश्यक महत्वाकांक्षा और शब्दावलियों से रूबरू करवाने के लिये ऐसा करते थे।
सफलता का सफर....
कृति का मानना है कि ध्यान केंद्रित करना और अनुशासन, ये दो चीजें सफलता के लिये बहुत जरूरी हैं फिर चाहे वह व्यवसायिक जीवन में हो या निजी। वे 11 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्तर की हाॅकी की खिलाड़ी भी रह चुकी हैं। यहां तक कि जब 13 वर्ष की उम्र में वे जब अपने पिता को काम से छुट्टी लेने के उद्देश्य से उनके पीछे पड़ी रहती थीं तब भी वे सुबह ठीक 7.30 बजे नाश्ते की टेबल पर उनके साथ आॅफिस जाने के लिये तैयार खड़ी मिलती थीं। इसके अलावा 15 वर्ष की उम्र में जब अधिकतर किशोर सामाजिक गतिविधियों में संलिप्त रहते हैं वे व्यवसाय की दुनिया में एक कठोर प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा बनकर खुद भविष्य की चुनौतियों के लिये तैयार कर रही थीं। और जब वे 17 वर्ष की उम्र में कंपनी की कार्यकारी निदेशक बन गईं तब भी वे रोजाना सुबह 8 बजे दफ्तर पहुंच जाती थीं चाहे उससे पहली रात उनके सामाजिक कार्य कितने बजे ही निबटे हों।
वे हंसते हुए कहती हैं, ‘‘मेरे मित्रों ने इस स्थिति का सामना कैसे किया?’’
जाहिरा तौर पर वे जिस एक चीज की सबसे अधिक आभारी हैं वह है उनका सामाजिक दायरा। प्रारंभिक दौर में करियर के प्रति उनकी ईमानदारी और समर्पण से चकित होकर, ऐसे लक्षण जो आसानी से किसी 17 वर्ष के किशोर में देखने को नहीं मिलते हैं, उनके सभी मित्र उनके कायल हो गए और उन्होंने अपनी ओर से हर संभव तरीके से उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में उनकी सहायता करने के अलावा सामाजिक कार्यक्रमों के दायरे में उन्हें बनाए रखा और उनके व्स्यस्त कार्यक्रम के अनुसार अपनी योजनाएं तैयार करने तक उन्होंने जो भी संभव था वह किया। उन्हें कभी भी यह महसूस नहीं हुआ कि बहुत छोटी उम्र में काम में लगने की वजह से उनसे कुछ छूटा है और इसके अलावा जब भी वे अपने मित्रों के साथ होती थीं तो काम की बातों से भी दूरी बनाए रहती थीं। ‘‘मैं इसी बात से बेहद खुश हूँ कि मेरी वजह से उनमें से कुछ उद्यमियों की तरह सोचने लगे।’’
‘‘मेरे हालिया मित्र या तो 13 वर्ष की उम्र के हैं या फिर 70 वर्ष के।’’
कम उम्र में काम करना शुरू करने के बारे में वे कहती हैं, ‘‘मेरे लिये अपनी उम्र के मित्र बनाना बेहद मुश्किल है क्योंकि इस बात की पूरी संभावना है कि मैं पहले से ही उनके माता-पिता की मित्र हूँ!’’ वे हंसते हुए कहती हैं।