Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

प्रेम और आनन्द के कवि जयशंकर प्रसाद

प्रेम और आनन्द के कवि जयशंकर प्रसाद

Wednesday November 15, 2017 , 6 min Read

जयशंकर प्रसाद को कविता करने की प्रेरणा अपने घर-मोहल्ले के विद्वानों की संगत से मिली। हिंदी साहित्य में प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे। कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास यानी रचना की सभी विधाओं में वह सिद्धहस्त थे।

जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद


'चित्राधार' उनका पहला संग्रह है। उसका प्रथम संस्करण सन् 1918 में प्रकाशित हुआ। इसमें ब्रजभाषा और खड़ी बोली में कविता, कहानी, नाटक, निबन्धों का संकलन किया गया। वर्ष 1928 में इसका दूसरा संस्करण आया। 

 'लहर' मुक्तकों का संग्रह है। 'झरना' उनकी छायावादी कविताओं की कृति है। 'कानन कुसुम' में उन्होंने अनुभूति और अभिव्यक्ति की नयी दिशाएँ खोजने के प्रयत्न किए हैं। सन् 1909 में 'प्रेम पथिक' का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले 'इन्दू' में प्रकाशित हुआ।

हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में एक कवि-नाटककार-कहानीकार-उपन्यासकार तथा निबन्धकार जयशंकर प्रसाद की आज (15 नवंबर) पुण्यतिथि है। बनारस के सुंघनी साहु घराने पर वह ऐसे वातावरण में पले, बढ़े, जब पूरा परिवार अपनी व्यावसायिक हैसियत गंवाकर कर्ज के पहाड़ के नीचे दब चुका था। उस समय प्रसाद जी बारह वर्ष के थे, जब उनके पिता सुंघनी का देहान्त हो गया। इसके बाद घर में भयानक गृहक्लेश होने लगा। पिता की मृत्यु के दो-तीन वर्ष के भीतर ही उनकी माता का भी देहान्त हो गया। सबसे दुर्भाग्य का दिन वह रहा, जब उनके बड़े भाई शम्भूरतन भी चल बसे। सत्रह वर्ष का होते-होते पूरे परिवार का बोझ प्रसाद के कंधों पर आ गया लेकिन उन्होंने हालात से हार नहीं मानी। न घर-गृहस्थी संभालने में पीछे हटे, न साहित्य-साधना में।

जयशंकर प्रसाद को कविता करने की प्रेरणा अपने घर-मोहल्ले के विद्वानों की संगत से मिली। हिंदी साहित्य में प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे। कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास यानी रचना की सभी विधाओं में वह सिद्धहस्त थे। उनकी साहित्यिक सफलता का निष्कर्ष इतना भर है कि वह 'छायावाद' के चार उन्नायकों में एक रहे। भाषा शैली और शब्द-विन्यास के सृजन में उन्हें ही सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ा। उनकी कहानियों का अपना पृथक शिल्प रहा है। पात्रों के चरित्र-चित्रण का, भाषा-सौष्ठव का, वाक्य-गठन की सर्वथा निजी पहचान है। उनके नाटकों में भी इसी प्रकार के अभिनव और श्लाघ्य प्रयोग मिलते हैं। अभिनेयता को दृष्टि में रखकर उनकी आलोचनाएं भी हुईं। उनका कहना था कि रंगमंच नाटक के अनुकूल होना चाहिए, न कि नाटक रंगमंच के अनुकूल।

'चित्राधार' उनका पहला संग्रह है। उसका प्रथम संस्करण सन् 1918 में प्रकाशित हुआ। इसमें ब्रजभाषा और खड़ी बोली में कविता, कहानी, नाटक, निबन्धों का संकलन किया गया। वर्ष 1928 में इसका दूसरा संस्करण आया। 'चित्राधार' की कविताओं को दो प्रमुख भागों में विभक्त किया जाता है। एक खण्ड उन आख्यानक कविताओं अथवा कथा काव्यों का है, जिनमें प्रबन्धात्मकता है। अयोध्या का उद्धार, वनमिलन, और प्रेमराज्य तीन कथाकाव्य इसमें संग्रहीत हैं। 'अयोध्या का उद्धार' में लव द्वारा अयोध्या को पुन: बसाने की कथा है। इसकी प्रेरणा कालिदास का 'रघुवंश' है। 'वनमिलन' में 'अभिज्ञानशाकुन्तलम' की प्रेरणा है। 'प्रेमराज्य' की कथा ऐतिहासिक है।

'कानन कुसुम' प्रसाद की खड़ीबोली की कविताओं का पहला संग्रह रहा। 'कामायनी' महाकाव्य को उनका अक्षय कीर्ति स्तम्भ कहा जाता है। भाषा, शैली और विषय-तीनों ही की दृष्टि से यह विश्व-साहित्य का अद्वितीय ग्रन्थ है। 'कामायनी' में प्रसादजी ने प्रतीकात्मक पात्रों के द्वारा मानव के मनोवैज्ञानिक विकास को प्रस्तुत किया है तथा मानव जीवन में श्रद्धा और बुद्धि के समन्वित जीवन-दर्शन को प्रतिष्ठा प्रदान की है। इसके अलावा 'आँसू' उनके मर्मस्पर्शी वियोगपरक उद्गारों की काव्य-कृति है। 'लहर' मुक्तकों का संग्रह है। 'झरना' उनकी छायावादी कविताओं की कृति है। 'कानन कुसुम' में उन्होंने अनुभूति और अभिव्यक्ति की नयी दिशाएँ खोजने के प्रयत्न किए हैं। सन् 1909 में 'प्रेम पथिक' का ब्रजभाषा स्वरूप सबसे पहले 'इन्दू' में प्रकाशित हुआ।

प्रसाद जी की रचनाओं में जीवन का विशाल क्षेत्र समाहित हुआ है। प्रेम, सौन्दर्य, देश-प्रेम, रहस्यानुभूति, दर्शन, प्रकृति चित्रण और धर्म आदि विविध विषयों को अभिनव और आकर्षक भंगिमा के साथ आपने काव्यप्रेमियों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। ये सभी विषय कवि की शैली और भाषा की असाधारणता के कारण अछूते रूप में सामने आये हैं। प्रसाद जी के काव्य साहित्य में प्राचीन भारतीय संस्कृति की गरिमा और भव्यता बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत हुई है। आपके नाटकों के गीत तथा रचनाएँ भारतीय जीवन मूल्यों को बड़ी शालीनता से उपस्थित करती हैं। प्रसाद जी ने राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान को अपने साहित्य में सर्वत्र स्थान दिया है। आपकी अनेक रचनाएँ राष्ट्र प्रेम की उत्कृष्ट भावना जगाने वाली हैं। प्रसाद जी ने प्रकृति के विविध पक्षों को बड़ी सजीवता से चित्रित किया है। प्रकृति के सौम्य-सुन्दर और विकृत-भयानक, दोनों स्वरूप उनकी रचनाओं में प्राप्त होते हैं।

प्रसाद ने हिंदी काव्य में छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई और वह काव्य की सिद्ध भाषा बन गई। वे छायावाद के प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु छायावादी पद्धति पर सरस संगीतमय गीतों के लिखनेवाले श्रेष्ठ कवि भी बने। प्रसाद जी प्रेम और आनन्द के कवि माने जाते हैं। नकी रचनाओं में प्रेम परक मनोभावों का सूक्ष्म निरूपण हुआ है। उनके शब्दों में प्रेम के वियोग-संयोग दोनो ही पक्ष अपनी पूरी छवि के साथ विद्यमान मिलते हैं। 'आँसू' उनका प्रसिद्ध वियोग काव्य है। उसके एक-एक छन्द में विरह की स्वाभाविक पीड़ा पूर्ण चित्रित है -

जो धनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति-सी छायी।

दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आयी।

प्रसाद जी ने विविध छन्दों के माध्यम से काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान की है। भावानुसार छन्द-परिवर्तन 'कामायनी' में दर्शनीय है। 'आँसू' के छन्द उसके विषय में सर्वधा अनुकूल हैं। गीतों का भी सफल प्रयोग प्रसादजी ने किया है। भाषा की तत्समता, छन्द की गेयता और लय को प्रभावित नहीं करती है। 'कामायनी' के शिल्पी के रूप में प्रसादजी न केवल हिन्दी साहित्य की अपितु विश्व साहित्य की विभूति हैं। आपने भारतीय संस्कृति के विश्वजनीन सन्दर्भों को प्रस्तुत किया है तथा इतिहास के गौरवमय पृष्ठों को समक्ष लाकर हर भारतीय हृदय को आत्म-गौरव का सुख प्रदान किया है। हिन्दी साहित्य के लिए प्रसाद जी माँ सरस्वती का प्रसाद हैं। उनकी रचनाओं में सौन्दर्यानुभूति की सजीवता देखते ही बनती है। -

नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।

खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघ-वन बीच गुलाबी रंग।

हिन्दी साहित्य के इतिहास में कहानी को आधुनिक जगत की विधा बनाने में प्रसाद का योगदान अन्यतम है। वाह्य घटना को आन्तरिक हलचल के प्रतिफल के रूप में देखने की उनकी दृष्टि, जो उनके निबंधों में शैवाद्वैत के सैद्धांतिक आधार के रूप में है, ने कहानी में आन्तरिकता का आयाम प्रदान किया है। जैनेन्द्र ओर अज्ञेय की कहानियों के मूल में प्रसाद के इस आयाम को देखा जा सकता है। ‘काव्य और कला’, ‘रहस्यवाद’ और ‘यथार्थवाद और छायावाद’ उनके सबसे महत्त्वपूर्ण निबंध जिनमें विवेक और आनन्दवादी धारा के सांस्कृतिक विकास क्रम के साथ-साथ उन्होंने अपने समय के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का तर्क संगत और संतोष-जनक उत्तर दिया है। संस्कृति, पुरातत्व वर्तमान यथार्थ उनके इन निबंधों में जीवित हैं।

अपने समय के आलोचकों की स्थापना – विशेषकर रामचन्द्र शुक्ल की स्थापना – का वे अपने निबंधों में न केवल उत्तर देते हैं बल्कि सपुष्ट प्रमाणों के साथ उत्तर देते हैं। उनकी प्रमुख कृतिया हैं - काव्य - कानन कुसुम्, महाराना का महत्व, झरना, आंसू, कामायनी, प्रेम पथिक कहानी – संग्रह - छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आंधी, नाटक - स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जन्मेजय का नाग यज्ञ, राज्यश्री, कामना और उपन्यास – कंकाल, तितली, इरावती।

यह भी पढ़ें: लोक कथाओं को नई दिशा देने वाले पद्मश्री विजयदान देथा