आखिर हम ‘आई लव यू’ कहने में इतना शर्माते क्यों हैं?
एक देश के रूप में हमें इस काम में महारत हासिल है। अगर एक प्रतियोगिता का आयोजन होता तो हम इसमें स्वर्ण, रजत और कांस्य तीनों पदक जीतने में सफल रहते। मैं उस नाबाद रिकाॅर्ड के बारे में बात कर रही हूं जब हम किसी के द्वारा किये गए किसी असाधारण काम को बेहद पसंद तो करते हैं लेकिन खुलकर उसकी प्रशंसा करने का सम आते ही पीछे हो जाते हैं। अगर आपको मेरी बात का यकीन नहीं है तो इस बारे में सोचिए और खुद से पूछिये कि मैंने आखिरी बार कब किसी की खुलकर प्रशंसा की थी या फिर किसी को दिल से बधाई दी थी और सच्चाई आपके सामने होगी।
हमारे आसपास की दुनिया में, खासकर हमारे स्टार्टअप के पारिस्थितिकीतंत्र में, या फिर जीवन के किसी भी क्षेत्र को ले लेंए ऐसा लगता है कि प्रशंसा प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा की होड़ में कहीं खो सी गई है। वास्तव में जब बात स्टार्टअप के क्षेत्र की हो तो हम सब विशेषज्ञ आलोचक बन जाते हैं।
मैं यह चलन बीते कई वर्षों से देखती आ रही हूं और हमेशा से ही आश्चर्यचकित होकर यह सोचती हूं कि आखिरकार ऐसा क्यों है? यह कल ही की बात है जब मैं एक नई कंपनी के कुछ युवा कर्मचारियों के साथ थी और मैंने उनसे पूछा कि क्या कभी आप लोगों ने एक-दूसरे में किसी असाधारण विशेषता को देखा है और फिर उसके बाद आगे आकर उसकी प्रशंसा की है? या फिर आपने अपने 10 सहयोगियो तक जाकर उनसे कुछ अच्छा कहने का प्रयास किया है?’’ आश्चर्य की बात थी कि उन्होंने ऐसा नहीं किया।
मैं इसका दोष माता-पिता को देना चाहूगी। जी हां बिल्कुल। (आप मेरी कहानी सुनने के बाद मुझसे बहस कर सकते हैं) साथ ही यह करने के लिये सबसे आसान काम जो है!
हमारे माता-पिता ने हमें प्रशंसा और प्रेम की एक विशिष्ट शैली का ज्ञान दिया है। अगर मेरी कहानी भी आपकी कहानी जैसी है तो मुझे जरूर बताएं।
मुझे याद है कि स्कूली दिनों में वाद-विवाद और भाषण प्रतियोगिताओं में मेरा प्रदर्शन बेहतरीन होता था। जब भी मैं पुरस्कार जीतकर घर वापस लौटती तो माँ के चेहरे पर मुस्कान होती और मैं उनकी खुशी को महसूस करने के अलावा यह भी जान लेती थी कि उन्हें मेरी उपलब्धियों पर गर्व है। लेकिन वे मुझसे जो कुछ कहती वह कुछ ऐसा होता, ‘‘यह बहुत अच्छा है लेकिन फलां आंटी की बेटी ने अपने बेहतर वक्तृत्व कौशल के बूते बीबीसी का एक प्रोजेक्ट पाया है। यह अच्छा है लेकिन अभी तुम्हारे सामने एक लंबा रास्ता है।’’ मैं आंखें फिराना चाहती थी लेकिन मैं अपनी माँ का इतना सम्मान करती थी कि ऐसा नहीं कर सकती थी।
मेरी माँ को हमेशा यही चिंता लगी रहती थी कि कहीं ये छोटी-छोटी उपलब्धियां मेरे सिर पर न चढ़ जाएं क्योंकि वे मेरे लिए ऐसा नहीं चाहती थीं। और मैं लगातार उनसे कहती थी कि मेरी ये छोटी उपलब्धियां भी सराहे जाने की हकदार हैं। मुझे उनसे पुरस्कृत होने की उम्मीद होती थी। फिर चाहे वह छोटा सा तोहफा ही क्यों न हो, या फिर एक आईसक्रीम या फिर उस दिन पढ़ाई न करने की आज़ादी। आखिरकार उस दिन मैं एक विजेता थी। और ऐसा मेरे स्कूली दिनों में लगातार बिना नागा होता रहा।
मुझे अच्छी तरह याद है जब मुझे सीएनबीसी से आॅफर लेटर मिला और मैंने उन्हें फोन किया तो उन्होंने बेहद खुशी का इजहार करते हुए कहा, ‘‘अपने कजिन को देखो। वो अमरीका चला गया है और वहां से हर महीने अपने माता-पिता को 1 हजार डाॅलर भेजता है।’’
अरे मेरी माँ! कुछ चीजें कभी नहीं बदल सकतीं। और हममें से अधिकतर के लिये वे आजतक भी नहीं बदली हैं। हममें से अधिकतर सराहना करने या प्रशंसा लेने के आदी ही नहीं हैं।
हममें से अधिकतर का प्रशंसा के साथ बेहद असहज नाता है और शायद सही कारण है कि हम इससे दूर रहते हैं और इसे छिपाकर रखते हैं।
वास्तव में दूसरों की प्रशंसा न करने का एक और कारण यह भी हो सकता है कि हममें से अधिकतर खुद को भोला, पीआर में यकीन करने वाला, उल्लासित और सकिंग अप किस्म का कहलाने से बचाना चाहते हों। आखिरकार कई अध्ययनों से साफ हुआ है कि एक मनुष्य के रूप में हम उन लोगों के प्रति दुराग्रह रखते हैं जो आलोचना करते हैं या नकारात्मक बातें करते हैं। हम सकारात्मक बातें करने वालों के मुकाबले नकारात्मक बात करने वाले लोगों को बुद्धिमान, अधिक सक्षम और विशेषज्ञ मानते हैं। तो आप दूसरों की जितनी अधिक आलोचना करोगे और उन्हें नीचा दिखाओगे आप उतने ही अधिक बुद्धिमान माने जाओगे।
इस मामले में हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी ऐसा व्यक्ति जो गालियां देता है या फिर किसी कंपनी या व्यक्ति के बारे में घटिया बातें कहता है या नीचा दिखाने का प्रयास करता है उसे हाथों हाथ लिया जाता है। ऐसे लोग रातोंरात स्टार बन जाते हैं। और हम भी अधिक गप सुनने के लिये लालायित दिखते हैं।
सकारात्मक बिलकुल उबाऊ है, सुस्त है। सकारात्मक बिलकुल भी अंतरंग नहीं है और न ही यह ऐसा है जिसे आप खाली समय में सुनना पसंद करेंगे। और हां, सकारात्मक प्रशंसा सुर्खियां नहीं बटोरती है। हालांकि मेरा मानना है कि सकारात्मकता और प्रशंसा हमेशा जीतने में सफल होती हैं। मैं जिन लोगों की प्रशंसा करती हूँ, वे वास्तव में बेहद सकारात्मक लोग हैं और वे भी दूसरों की सराहना करने में अपना सर्वस्व झोंक देते हैं।
हर नया दिन हमें जीवन, अपने आप की और अपने आसपास के लोगों की प्रशंसा करने का मौका देता है। आओ हम बिना दुनिया की परवाह किए दूसरों की सराहना करें, उन्हें प्रेम करें। अगर आप किसी चीज को या व्यक्ति को प्रेम करते हैं तो उस प्रेम को अभिव्यक्त करें। अब जब हम वैलेंटाइन डे और उससे जुड़े माहौल का जश्न मना रहे हैं, तो आईये,
‘‘अपने आप से प्रेम करने, प्रशंसा करने, सराहना करने और अपनी स्टार्टअप यात्रा को एक बेहतरीन अनुभव बनाने का वायदा करें।’’
यह लेख योर स्टोरी की संस्थापक और एडिटर इन चीफ श्रृद्धा शर्मा ने अंग्रेजी में लिखा है। जिसका अनुवाद पूजा ने किया है।