गरीब महिलाओं के सपनों को बुनने में मदद कर रहा है दिल्ली का 'मास्टरजी'
'मास्टरजी' एक वर्ष का ऐसा कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम है जो औद्योगिक स्तर का होता है। यह महिलाओं को पैटर्न बनाने, तकनीकी डिजाइन, सोच, फैब्रिक कटिंग और सिलाई जैसे उन उन्नत कौशल में प्रशिक्षित करता है जो पारंपरिक रूप से पुरुषों द्वारा सीखे जाते हैं।
'मास्टरजी में महिलाएं न केवल उन कौशलों को सीखती हैं जो उन्हें किसी भी संगठन में ऊपर जाने में मदद करते हैं, बल्कि उन्हें स्वयं को उद्योग में अधिकार की स्थिति में सोचने की भी अनुमति मिलती है।'
नई दिल्ली के ओखला में स्थित कपड़ा निर्माण इकाई मास्टरजी (MasterG) की यात्रा एक ताजातरीन हवा के झोंके जैसा अनुभव प्रदान करती है। एक तरफ जहां पारंपरिक मास्टरजी की बात करते समय हमारे जेहन में स्वाभाविक रूप से एक ऐसे पुरुष दर्जी की तस्वीर कौंधती है लेकिन यहां पर महिलाएं हर भूमिका में सर्वव्यापी रूप से मौजूद थीं।
कपड़ों का उद्योग मुख्य रूप से पुरुष केंद्रित माना जाता रहा है। इसी वजह से पैटर्न तैयार करने से लेकर कपड़े को काटने तक के काम मुख्यतः पुरुषों द्वारा किये जाते हैं जबकि महिलाएं धागों को काटने या उत्पादन लाइन के अंत में बटन टांकने जैसे निम्न-कौशल वाले काम की जिम्मेदारी संभालती हैं। लेकिन गायत्री जॉली इस सच्चाई से काफी खफा थीं कि फैशन उद्योग पर पूरी तरह से पुरुषों का वर्चस्व है। इसी मानसिकता को बदलने के लिये उन्होंने वर्ष 2015 में दिल्ली में मास्टरजी की स्थापना की।
मास्टरजी एक वर्ष का ऐसा कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम है जो औद्योगिक स्तर का होता है। यह महिलाओं को पैटर्न बनाने, तकनीकी डिजाइन, सोच, फैब्रिक कटिंग और सिलाई जैसे उन उन्नत कौशल में प्रशिक्षित करता है जो पारंपरिक रूप से पुरुषों द्वारा सीखे जाते हैं।
हालांकि गायत्री का दीर्घकालिक उद्देश्य महिलाओं को उन्नत डिजाइन कौशल में सस्ते दामों पर ऐसा प्रशिक्षण प्रदान करना था जिसके बल पर महिलाएं गरीबी की जंजीरों को तोड़ने में सक्षम हो सकें। इस मकसद को पूरा करने के लिये मास्टरजी, अधिकतर समाज के निम्न और कमजोर वर्गों से महिलाओं को लक्षित करती हैं और उन्हें रोजगार तलाशने में मदद करने के जरिये या फिर अपना कोई व्यापार शुरू करने में सहायता करके सिर उठाकर जीने के लिये पैसा कमाने में मदद करती हैं।
प्रारंभ
गायत्री न्यू यॉर्क के पार्सन्स स्कूल ऑफ डिजाइन से फैशन में पोस्ट ग्रैजुएट हैं। लेकिन अपने अन्य सहपाठियों की तरह उन्होंने अपना स्वयं का फैशन ब्रांड नहीं लॉन्च किया। इसके अलावा उन्हें समाज में मौजूदा समय में फैली समस्याओं का समाधान खोजने की जरूरत महसूस हुई। गायत्री कहती हैं कि वस्त्र उद्योग में काफी लंबे समय से कम कुशल श्रमिकों के रूप में महिलाओं की बड़े स्तर पर मौजूदगी एक ऐसी समस्या थी जो उन्हें लंबे समय से काफी परेशान कर रही थी।
उनके मुताबिक इसका सबसे बड़ा कारण पारंपरिक भारतीय परिवारों की वह व्यवस्था है जिसमें कौशल को पिता द्वारा अपने बेटे को या फिर छोटे भाई को सौंपता है न कि महिलाओं को। उन्होंने कहा, 'पुरुषों के दर्जी होने की रूढ़िवादी परंपरा हमेशा से मुझे खलती रही। आखिर ऐसा क्यों है कि जब कोई मास्टरजी (दर्जी) के बारे में सोचता है तो उसके जेहन में आमतौर पर एक पुरुष की ही तस्वीर आती है?' वे आगे कहती हैं कि एक लड़की को इन कामों को करते देखना किसी के लिये भी आश्चर्यजनक घटना नहीं होनी चाहिये।
अपनी जगह बनाना
मास्टरजी मुख्यतः एक कौशल-विकास व्यवसाय है। इसके दो प्रमुख पाठ्यक्रम हैं। पहले में वे महिलाओं को हाई लेवल स्किल्स में श्रेष्ठ गुणवत्ता मानकों के तहत प्रशिक्षित करता है और दूसरे में उन्हें उन सभी सीखों को भूलना सिखाता है तिनके चलते वे अब तक पिछड़ती आई हैं। गायत्री कहती हैं, 'मास्टरजी में महिलाएं न केवल उन कौशलों को सीखती हैं जो उन्हें किसी भी संगठन में ऊपर जाने में मदद करते हैं, बल्कि उन्हें स्वयं को उद्योग में अधिकार की स्थिति में सोचने की भी अनुमति मिलती है।'
गायत्री कहती हैं, 'कपड़े से वस्त्र के तैयार होने तक की पूरी प्रक्रिया महिलाओं को शक्ति की समानता का अहसास दे सकती है।' मास्टरजी अब तक अपने तीन प्रशिक्षण केंद्रों में, जिनमें से दो दिल्ली में और एक हरियाणा में स्थित हैं, 418 महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान कर चुका है। यह प्रत्येक छः महीनों में सीएसआर भागीदार के रूप में फेना फाउंडेशन और एएसएफ इंफ्रास्ट्रक्चर और क्रियान्वयन एनजीओ भागीदार के रूप में आधारशिला के सहयोग से करीब 150 लड़कियों को प्रशिक्षित करता है।
हाल ही में मास्टरजी ने कुछ अन्य ब्रांडों के लिये भी कपड़े बनाने का काम शुरू किया है। बिजनेस मॉडल के बारे में बात करते हुए गायत्री कहती हैं, 'हम ऐसी कंपनियों के लिये सलाहकार के रूप में काम करते हैं जो अपनी सीएसआर आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयास में होती हैं। हम उनके साथ मिलकर एनजीओ में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा बनने के इच्छुक छात्र हमारे एनजीओ भागीदार को एक वर्ष के लिये सिर्फ 250 रुपये प्रतिमाह का एक मामूली शुल्क चुकाते हैं और बदले में कॉर्पोरेट भागीदार पूरी तरह से उन केंद्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित और नियंत्रित करने के लिये भुगतान करते हैं।'
प्रभाव
गायत्री कहती हैं, 'इन लड़कियों को पैटर्न बनाते देखना काफी सुखद होता है। वस्त्र उद्योग में यह एक बहुत पुरानी मान्यता है कि लड़कियां पैटर्न नहीं बना सकतीं क्योंकि यह काम काफी महत्वपूर्ण होता है और काम के पूरे प्रवाह को नियंत्रित करता है।' मेरी लड़कियां इस सोच को पूरी शालीनता से बदल रही हैं।
मास्टरजी में प्रशिक्षित 19 वर्षीय कहकशां फिलहाल उनके साथ काम कर रही हैं। वे कहती हैं, 'मेरे माता-पिता मुझ पर शादी करने का दबाव डाल रहे थे। अब जब वे मुझे काम करते हुए देखते हैं तो उन्हें काफी गर्व होता है और अब वे मेरी शादी की योजनाओं को भविष्य के लिये टालते हुए करियर बनाने में मदद करने को तैयार हैं।' बेहद निम्न वित्तीय पृष्ठभूमि से आने वाली कहकशां कहती हैं कि अगर यह प्रशिक्षण इतने कम शुल्क पर नहीं मिला होता तो उनके माता-पिता उन्हें कभी भी ऐसा नहीं करवा पाते।
गायत्री का शुक्रिया अदा करते हुए वे कहती हैं, 'मैं अपने बाकी के जीवन के लिये मैम (गायत्री) के साथ करके काफी खुश रहूंगी। मेरे लिये यह परिवार की तरह है।'
अब तक का सफर
मास्टरजी के पीछे की अपनी प्रेरणा के बारे में बात करते हुए गायत्री कहती हैं, 'विचार किसी एक विशेष क्षण या स्थान पर नहीं आता।' गायत्री के लिये मास्टरजी जीवन के जोखिमों और अनुभव का एक संग्रह है। वे कहती हैं कि इसे शुरू करने से पहले काफी अधिक शोध और विचारमंथन किया गया। गायत्री के लिये उनकी यह ढाई साल की यात्रा कई सारे ऐसे क्षणों से भरी हुई है जिनपर उन्हें खुशी और गर्व होता है।
वे कहती हैं, 'मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि तब रही जब एनजीओ के एक शिक्षक ने अपनी बेटी को प्रशिक्षण के लिये भर्ती करवाया।' इससे साबित होता है कि लोगों को हमारे उत्पाद में पूरा विश्वास है। लेकिन गायत्री को मास्टरजी के स्थापित और असरदार साबित होने से पहले कई बाधाओं का सामना करना पड़ा। वे कहती हैं, 'सबसे बड़ी चुनौती लोगों-लड़कियों और उनके परिवारों की मानसिकता को बदलने की थी।' गायत्री के अनुसार, लड़कियां खुद को अधिकार की स्थिति में देखने की आदी नहीं थीं।
इसके अलावा इन लड़कियों को वांछित गति से सिखाना काफी बड़ी चुनौती था क्योंकि इनमें से अधिकांश लड़कियां अच्छी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा से महरूम थीं। गायत्री का कहना है कि इसके बावजूद इनमें से किसी भी लड़ी ने उन्हें कभी नीचा नहीं दिखाया। उन्होंने अच्छा प्रदर्शन करने और सीखने के क्रम को पूरा करने के लिये अपने प्रयासों को दोगुना कर दिया।
भविष्य का निर्माण
गायत्री का इरादा भविष्य में मास्टरजी को विभिन्न ब्रांडों के साथ सहयोग बढ़ाते हुए देखने का है ताकि वे अधिक से अधिक निर्माण कर सकें और अंततः अपने प्रशिक्षण केंद्रों से अधिकाधिक लड़कियों को काम दिलवा सकें। इसी वजह से मास्टरजी अधिक से अधिक एनजीओ और सीएसआर साझीदारों की तलाश में है ताकि वह अपने मॉडल का विस्तार देशभर में कर सके।
गायत्री का मानना है कि अगर उद्योग जगत के दिग्गज और सरकार उनकी मदद करे तो उनकी यह पहल इस क्षेत्र में जरूरी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता को पूरा करने में एक बेहद महती भूमिका निभा सकती है। उनका मानना है कि दाम और परोपकार सामाजिक समस्याओं का समाधान नहीं साबित हो सकते। उनके अनुसार इनके प्रभाव अस्थाई हैं। गायत्री का कहना है कि ऐसी समस्याओं के स्थाई समाधान खोजने का सिर्फ एक ही तरीका है और वह है मुद्रीकरण करना।
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