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असहमतियों के बावजूद यादों में बने रहेंगे वीएस नायपॉल

असहमतियों के बावजूद यादों में बने रहेंगे वीएस नायपॉल

Monday August 13, 2018 , 5 min Read

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय मूल के ख्यात लेखक वीएस नायपॉल अब तो इस दुनिया में नहीं रहे, दो दिन पूर्व उनका ब्रिटेन में निधन हो गया लेकिन उनकी कृतियां हमेशा विश्व साहित्य जगत को उनकी याद दिलाती रहेंगी। नायपॉल ने बाबरी ध्वंस का समर्थन किया था। उनके विचारों से तमाम लेखक असहमत थे।

विद्याधर सूरज प्रताप नायपॉल

विद्याधर सूरज प्रताप नायपॉल


उन्होंने बाबरी मस्जिद के ध्वंस को उचित ठहराया था। एक बार उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण भारतीय संस्कृति पर हमला था, जिसे ढहाकर ठीक कर दिया गया है। 

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय मूल के ख्यात लेखक वीएस (विद्याधर सूरज प्रताप) नायपॉल (85) अब नहीं रहे। उन्होंने दो दिन पहले देर रात लंदन स्थित अपने घर में आखिरी सांस ली। भारतीय मूल के नायपॉल का जन्म साल 1932 में त्रिनिडाड के चगवानस में हुआ था। त्रिनिडाड में पले-बढ़े नायपॉल ने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी। 'ए बेंड इन द रिवर' और 'अ हाउस फ़ॉर मिस्टर बिस्वास' उनकी चर्चित कृतियों में शुमार हैं। उनकी पहली किताब 'द मिस्टिक मैसर' साल 1951 में प्रकाशित हुई थी। अपने सबसे चर्चित उपन्यास 'ए हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' को लिखने में उन्हें तीन साल से ज़्यादा वक्त लगा। नायपॉल को साल 1971 में बुकर प्राइज़ और साल 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

उनके निधन के बाद उनकी पत्नी ने कहा- 'उन्होंने रचनात्मकता और उद्यम से भरी ज़िंदगी जी। आखिरी वक्त में वे तमाम लोग, जिन्हें वह प्यार करते थे, साथ रहे।' वर्ष 1950 में उन्होंने एक सरकारी स्कॉलरशिप जीती, जिसके जरिए उन्हें मनचाही कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल सकता था और उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। छात्र जीवन में उन्होंने डिप्रेशन में एक बार ख़ुदकुशी करने की कोशिश की थी। नायपॉल के विचारों से अनेक धर्मनिरपेक्ष विचारक और लेखक असमत रहे। नायपॉल कई बार ऐसी भी बातें कह जाते थे, जिसे सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने में संघ परिवार भी संकोच करता है। उन्होंने बाबरी मस्जिद के ध्वंस को उचित ठहराया था। एक बार उन्होंने कहा था कि बाबरी मस्जिद का निर्माण भारतीय संस्कृति पर हमला था, जिसे ढहाकर ठीक कर दिया गया है। उन्होंने यह विचार भी रखा कि जिस तरह स्पेन ने अपने राष्ट्रीय स्मारकों का पुनर्निर्माण कराया है, वैसा ही भारत में भी होना चाहिए।

वर्ष 2012 में मुंबई में एक साहित्य उत्सव के दौरान मशहूर नाटककार गिरिश कर्नाड ने वीएस नायपॉल को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिए जाने पर सवाल उठा दिया था। बेंगलुरु में लेखकों की मीटिंग के दौरान कर्नाड ने नायपॉल को लाइफ टाइम अवॉर्ड दिए जाने पर अपनी नाराजगी जताते हुए कहा था - 'जहां भारत की हर गली, हर रेस्ट्रॉन्ट और सभी जगह संगीत की उपस्थिति दिखाई देती है, ऐसे में उम्मीद होती है कि वह इस पर भी कुछ लिखें। नायपॉल ने भारत पर तीन किताबें लिखी हैं। तीन बड़ी किताबें, जिनमें से एक में भी संगीत का जिक्र तक नहीं है। अब मुझे लगता है कि वह टोन-डेफ (संगीत की कद्र न करने वाले) हैं। अगर आप संगीत नहीं समझते हैं, अगर आप संगीत पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे सकते हैं, तो आप भारत के इतिहास पर भी अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे सकते क्योंकि भारतीय संस्कृति की असल पहचान संगीत से ही रही है।

भारतीय संस्कृति को समझने में यही नायपॉल की समस्या रही है। वह भक्ति और सूफी के बारे में हिंदुओं और मुस्लिमों के कला-कौशल से अनजान रहे हैं, जो भारत को विरासत में मिले हैं। विदेशी आते हैं, भारतीय संस्कृति को देखते हैं। वे हिंदुओं की मूल संस्कृति को देखते हैं। वे देखते हैं कि ये मुस्लिमों द्वारा भ्रष्ट है। नायपॉल की किताबों में आप इन्हीं चीजों को पाएंगे, जिनका वह दावा करते हैं कि उन्होंने यह खोज खुद से की है, बल्कि ये पहले से ही की गई हर इंडोलॉजिक स्टडी में मौजूद हैं। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक वास्तुकला पर लिखते हैं, जिस पर उन्होंने लिखा भी है, लेकिन वही मुस्लिम विरोधी विचारों के साथ। आज भी वह यही भविष्यवाणी करने में लगे हैं कि मुस्लिम भरतीय वास्तुकला को नष्ट कर देंगे। वह बस यही कहते रहते हैं कि वे छापेमार थे, वे ध्वंसक थे।'

नायपॉल का परिवारिक नाम नेपाल देश पर आधारित है। बताते हैं कि उनके पूर्वज गोरखपुर (उ.प्र.) के भूमिहार ब्राह्मण थे, जिन्हें ट्रिनिडाड ले जाया गया। उससे पहले उनके पुरखे नेपाल में रहते थे। उनकी शिक्षा ट्रिनिडाड और इंगलैंड में हुई। वह लंबे समय तक ब्रिटेन के ही निवासी रहे। उनके पिता श्रीप्रसाद, छोटे भाई शिव, भतीजे नील बिसुनदत, चचेरे भाई कपिलदेव आदि भी ख्यात लेखक रहे हैं। उनकी पत्नी नादिरा पत्रकार रही हैं। उनकी प्रमुख औपन्यासिक कृतियां हैं - The Mystic Masseur, The Suffrage of Elvira, Miguel Street, A House for Mr Biswas, Mr. Stone and the Knights Companion, A Flag on the Island, The Mimic Men, In a Free State, Guerillas, A Bend in the River, Finding the Centre, The Enigma of Arrival, A Way in the World, Half a Life, Magic Seeds आदि।

नायपॉल को नूतन अंग्रेज़ी छंद का गुरु कहा जाता है। उनको नोबेल के अलावा और भी कई साहित्यिक पुरस्कार मिले, जिनमें जोन लिलवेलीन रीज पुरस्कार (1985), दी सोमरसेट मोगम अवार्ड (1980), द होवथोरडन पुरस्कार (1964), द डब्लूएच स्मिथ साहित्यिक अवार्ड (1968), द बुकर पुरस्कार (1971), द डेविड कोहेन पुरस्कार (1993) आदि उल्लेखनीय हैं। वर्ष 2008 में द टाइम्स ने उनको अपनी 50 महान ब्रिटिश साहित्यकारों की सूची में सातवां स्थान दिया। उनकी कृतियों में उनके क्रांतिवादी वि‍चारों की झलक मिलती है। उन्‍होंने अन्य तरह की भी कई पुस्‍तकें, यात्रा-वृतांत, निबंध आदि लिखे। उन्‍होंने दुनिया के अनेक देशों की कई यात्राएं कीं।

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