ऊर्जा की कमी नहीं है एक बार सूर्य को तो देखो...
- पॉल नीधम ने रखी सिम्पा नेटवर्क की नीव।- सस्ते दामों पर ग्रामीणों को मिल रही है बिजली।- किश्तों में ग्रामीण लगा रहे हैं सोलर सिस्टम।
कुछ साल पहले तंजानिया के गांव में रहने वाली एक औरत को एक बहुत ही अच्छा आइडिया सूझा उसने बाजार से एक सोलर पैनल खरीदा और उससे लोगों के मोबाइल चार्ज करने शुरु किए। इसके लिए उसके पैसे लेने शुरु कर दिए। क्योंकि वह ज्यादा पैसे नहीं लेती थी इसलिए कई लोग उसके पास मोबाइल चार्ज कराने आते थे। अपने इस काम के जरिए उसने ठीक ठाक पैसा भी कमाए।
पॉल नीधम जोकि सिम्पा नेटवर्क के सहसंस्थापक हैं उन्होंने एक बार उस औरत को देखा और वे उसकी एंटरप्रन्योरशिप क्षमता से बहुत प्रभावित हुए। उस महिला के काम से पॉल को यह समझ आ गया कि किस प्रकार वह सूर्य की प्राकृतिक ऊर्जा जोकि चिर स्थाई है उसके बूते कैसे इतनी आसानी से पैसे कमा रही है और अपना व अपने परिवार का जीवन चला रही है। क्योंकि वह गांव बहुत गरीब था इसलिए वहां के लोगों ने सोलर पैनल खरीदने में ज्यादा कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। बल्कि वे थोड़े-थोड़े पैसे देकर उस महिला से ही अपना मोबाइल चार्ज करा देते थे। इस घटना ने पॉल को एक ऐसा बिजनेस मॉडल खड़ा करने की प्रेरणा दी जो गरीबों के लिए सबसे उपयुक्त था।
इसके बाद पॉल ने थोड़ी रिसर्च की और शुरुआत की सिम्पा नेटवर्क की। अपने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत पॉल ने भारत में की। भारत में एक बड़ी आबादी बिना बिजली के रह रही थी। इन लोगों का जीवन बिजली न होने की वजह से बहुत कठिन था। इसी बात ने पॉल को भारत में सिम्पा नेटवर्क शुरु करने के लिए प्रोत्साहित किया। पॉल ने रिसर्च में पाया कि बेहद गरीब लोगों को ऊर्जा की जरूरत तो है लेकिन पैसे के आभाव के चलते वे सौर ऊर्जा पैनल नहीं खरीद पाते। क्योंकि पैनल की कीमत ज्यादा थी इसलिए पॉल ने एक अनोखा बिजनेस मॉडल खड़ा किया। जिसमें ग्रामीणों को बहुत कम पैसा खर्च करके पैनल दे दिया जाता है साथ ही एक ऐसी व्यवस्था भी बनाई गई है जिससे उपभोक्ता हर महीने अपनी जरूरत के हिसाब से बिजली इस्तेमाल करने का खर्च इन्हें देता है। और जब धीरे-धीरे उपभोक्ता अपनी मासिक किश्तों से सोलर पैनल की पूरी कीमत उन्हें दे देता है तब उसके बाद वह सोलर पैनल पूरी तरह से उस उपभोक्ता का हो जाता है। यानी कीमत ज्यादा होने के कारण सिम्पा ने सिम्पा ने पूरा प्रोडक्ट एक साथ न बेचकर उसकी सर्विसेज बेचीं। यह मॉडल काफी हिट रहा और आज सिम्पा के पास 270 फुल टाइम कर्मचारी हैं और 350 गांव स्तर पर एंटरप्रन्योर हैं। अब तक यह लोग हजारों लोगों को अपनी सेवाएं दे चुके हैं और इन सोलर पैनल की वजह से 120 मैट्रिक टन कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोक चुके हैं।
पॉल का यह बिजनेस मॉडल बहुत आसान है। इसे गरीब लोग हाथों हाथ अपना रहे हैं। जिसके चलते कंपनी तेजी से आगे बढ़ रही है। उनके पास 350 ऐसे ऐजेंट हैं जिन्हें सिम्पा के स्टाफ ने ट्रेनिंग दी है ताकि वे सोलर सिस्टम के बारे में ग्रामीणों को समझा सकें साथ ही उन्हें इसके इस्तेमाल के लिए प्रेरित करें। इसके अलावा इनके अपने सोलर तकनीशियन भी हैं जिनकी संख्या सौ से ज्यादा है।
सन 2010 में इन्होंने एक नई तकनीक इजात की और कर्नाटक में भी सोलर सिस्टम बेचने शुरु किए। सन 2013 में उन्होंने दो प्रोडक्शन पार्टनर अपने साथ जोड़े जोकि चीन व बैंगलोरु से हैं। इसके बाद इन्होंने उत्तर प्रदेश में भी अपने सोलर सिस्टम बेचने शुरु किए। सितंबर 2014 में सिम्पा ने अपनी नई प्रोडक्ट सिरीज टर्बो लॉच की। जिसने मार्किट में कदम रखते ही धूम मचा दी।
इनके सोलर होम सिस्टम में एक चालीस वॉट का पैनल है और तीन लाइट, एक पंखा और दो मोबाइल चार्जिंग प्वाइंट्स हैं। सिस्टम 12 घंटे तक काम कर सकता है।
हाल ही में इन्होंने एक फ्लैक्सी प्लान भी ग्राहकों के लिए तैयार किया है जिसमें ग्राहक आसान किश्तों में इनके सिस्टम्स खरीद सकते हैं।
सिम्पा भविष्य में अपने डिस्ट्रीब्यूशन और सप्लाइ पर काम करने जा रहा है। क्योंकि इस समय यह लोग जिन स्थानों पर अपने सिस्टम बेच रहे हैं उनमें से कई स्थान काफी इंटीरियर में हैं। जहां सप्लाइ करने में काफी समय लगता है। सन 2019 तक कंपनी एक मिलियन लोगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है।