कभी बेचते थे ठेले पर चाय, अब हैं 254 करोड़ के मालिक
1972 में जब गुजरात में भयंकर बाढ़ आई तो उसमें बलवंत का घर बह गया। उस वक्त बलवंत सिंह के पास बदलने को एक जोड़ी इफरात कपड़ा तक नहीं था। लेकिन आज ये दिन है कि वो 254 करोड़ की कंपनी के मालिक हैं। आईये जानें बलवंत के फर्श से अर्श तक की कहानी...
जिनाभाई ने बलवंत सिंह को सलाह दी कि वह उन्हें लाइसेंस दिलवा देंगे, जिससे सरकारी गल्ले की दुकान खोल लें। लौटकर बलवंत सिंह ने अपने घर में ही दुकान खोल ली।
आज वह 254 करोड़ रुपये की संपत्ति वाले गोकुल ग्रुप के मालिक हैं। जहां पर राशन की दुकान खोली थी, वहां अब उनका शानदार ऑफिस है।
बलवंत सिंह राजपूत वैसे तो गुजरात में एक बीजेपी राजनेता के रूप में जाने-माने जाते हैं लेकिन उनका घरेलू वजूद फर्श से अर्श तक पहुंचे एक कामयाब कारोबारी का है। एक जमाने में उनके पिता एक ऑयल मिल में नौकरी करते थे। एक दिन जब वहां से उनका काम छूट गया तो वह ठेला लगाकर चाय बेंचने लगे। उसी की आमदनी से घर खर्च चलने लगा। पिता के साथ वह भी ठेले पर चाय और सुपारी बेचने लगे। वर्ष 1972 में जब गुजरात में भयंकर बाढ़ आई तो उसमें उनका घर बह गया। उस वक्त बलवंत सिंह के पास बदलने को एक जोड़ी इफरात कपड़ा तक नहीं था।
तभी मुश्किल दिनो में उनके पिता ने उन्हें गांधीनगर में तत्कालीन मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी के पास नौकरी मांगने के लिए भेजा मगर सोलंकी से मिलने की बजाए वह कांग्रेस के नेता जिनाभाई दारजी के पास पहुंच गए। जिनाभाई ने बलवंत सिंह को सलाह दी कि वह उन्हें लाइसेंस दिलवा देंगे, जिससे सरकारी गल्ले की दुकान खोल लें। लौटकर बलवंत सिंह ने अपने घर में ही दुकान खोल ली। उसके बाद घर की रोजी-रोटी चल पड़ी। आज वह 254 करोड़ रुपये की संपत्ति वाले गोकुल ग्रुप के मालिक हैं। जहां पर राशन की दुकान खोली थी, वहां उनका शानदार ऑफिस है।
बाद के दिनो में बलवंत सिंह राजपूत की राजनीतिक हैसियत में भी इजाफा होता गया। समाज के उच्च तबकों में उनका आना-जाना हो गया। रोब-रुतबे को पंख लग गए लेकिन वह आज तक उस ठेले को अपने दिल से लगाए बैठे हैं, जिस पर किसी जमाने में पिता के साथ चाय-सुपारी बेंचा करते थे। वह कहते हैं कि यह ठेला उनको संघर्ष के दिनो की याद दिलाता रहता है। ऐसी यादें आदमी को जीवन में जूझते रहने का माद्दा देती हैं। अच्छी-खराब परिस्थितियां तो आती-जाती रहती हैं लेकिन आदमी को अपने बुरे दिन कभी नहीं भूलने चाहिए। यही वजह है कि आज गोकुल ग्रुप के नाम से गुजरात में उनका फूड ऑयल का बिजनेस चल निकला है। उनका नाम गुजरात के बड़े कारोबारियों में शुमार होने लगा है।
बलवंत जिन दिनों घरेलू जीवन संभालने की जद्दोजहद कर रहे थे, उन्हें अपनी बहन को गंभीर हालत में अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा लेकिन माली हालत इतनी कमजोर थी कि कुछ वक्त अस्पताल में ही गुजारने पड़े।
बलवंत सिंह राजपूत अपना जिंदगीनामा मीडिया से साझा करते हुए बताते हुए हैं कि जब अपना काम-धंधा संभल जाने के बाद वह सियासत में उतरे तो उनके कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं से ताल्लुकात होने लगे। उन्हें बड़े बिजनेस में हाथ आजमाने की सीख कांग्रेस के ही एक बड़े नेता सुरेंद्र सिंह राजपूत से मिली। जब वह घरेलू जीवन संभालने की जद्दोजहद कर रहे थे, उन्हें अपनी बहन को गंभीर हालत में एक दिन अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा लेकिन माली हालत इतनी कमजोर थी कि कुछ वक्त अस्पताल में ही गुजारने पड़े।
जब राजनीति में हैसियत ऊपर उठी तो वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार को सिद्धपुर सीट से पराजित कर दिया और विधानसभा पहुंच गए लेकिन अगला 2007 का चुनाव वह हार गए। उन्होंने तब भी मुश्किलों से हार नहीं मानी और सन 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर शानदार वोटों से निर्वाचित घोषित हो गए। उनके जुझारूपन का ही नतीजा था कि उनकी दिल्ली तक तूती बोलने लगी। कांग्रेस के भीतर की खींचतान से आजिज आकर एक दिन उन्होंने पार्टी छोड़ दी और अब भाजपा के साथ हैं। वह राजनेता शंकर सिंह बाघेला के रिश्ते में भी हैं।
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