सिर्फ दीपिका पादुकोण को ही नहीं लाखों अन्य भारतीयों को भी प्रेरित करती है एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी की कहानी
एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के साहस ने आज दुनियाभर के लोगों को प्रेरित किया है। उनके जीवन पर फिल्म आ रही है जिसमें दीपिका पादुकोण लक्ष्मी का किरदार निभाती दिखेंगी। लक्ष्मी कहती हैं, "लोग हमेशा कहते हैं कि आपके अंदर की सुंदरता और कड़ी मेहनत महत्वपूर्ण होती है लेकिन वास्तव में, कुछ लोग इस भौतिक सुविधाओं से परे जाते हैं। किसी व्यक्ति की क्षमता, योग्यता और कड़ी मेहनत से अधिक, जॉब देने वाले उस व्यक्ति के लुक्स पर फोकस करते हैं।" 28 वर्षीय लक्ष्मी जानती हैं कि वह किस बारे में बात कर रही है, क्योंकि वह एक क्रूर हेट क्राइम और एसिड अटैक सर्वाइवर रही हैं। इस घटना ने उनकी जिंदगी को हमेशा-हमेशा के लिए बदल दिया। आज उनके जीवन का मिशन: एसिड अटैक में बचे लोगों को नौकरी पाने में मदद करना, और स्वतंत्र और गरिमापूर्ण जीवन का नेतृत्व करना है।
दीपिका पादुकोण अभिनीत बॉलीवुड की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'छपाक' भले ही लक्ष्मी और उनके अभियान को अधिक पहचान दे सकती है, लेकिन उनके प्रेरक धर्मयुद्ध ने एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए कुछ उम्मीद जरूर जगाई है। योरस्टोरी के साथ बातचीत में, लक्ष्मी बोताती हैं कि कैसे एक दिन में उनका उद्देश्य स्पष्ट हो गया।
वह कहती हैं, “समाज क्रूर है और यहां तक कि एक सामान्य चमड़ी वाले व्यक्ति को भी ताना मारा जाता है, तो मैं कौन थी? मैं पीड़ित थी और मेरे लिए इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं थी। मैंने फैसला किया कि मैं अपने लिए खेद महसूस नहीं करूंगी और इसके बजाय अपने परिवार के लिए खुद को आगे बढ़ाऊंगी। मैं दुनिया को अपनी कहानी बताने के लिए जिंदा रहूंगी ताकि किसी और को भी इस तरह की स्थिति का सामना न करना पड़े या अपने समुदाय द्वारा रिजेक्ट किए जाने पर आत्महत्या के बारे में सोचना न पड़ा।”
द अटैक
वह 22 अप्रैल 2005 का दिन था, जब लक्ष्मी के चेहरे पर तेजाब फेंका गया था। दिल्ली के खान मार्केट में लक्ष्मी पर उनके परिचितों गुड्डू और राखी ने हमला किया था। उस समय लक्ष्मी 15 साल की थीं। उन पर हमला इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने अपनी दोस्त के भाई गुड्डू से शादी करने से इंकार कर दिया था। 2014 में इंटरनेशनल वुमन ऑफ करेज अवार्ड जीतने वाली लक्ष्मी याद करते हुए कहती हैं, "शुरुआत में, जब मुझ पर हमला हुआ तो मैं समझ नहीं पाई कि यह क्या हो रहा था। मैं सदमे में थी। एसिड अटैक के बाद दो-ढाई महीने तक मैंने अपना चेहरा भी नहीं देखा था, न ही आईने देखा था।''
लोग, विशेष रूप से महिलाएं, उन्हें ताना मारती थीं, उनको तरह-तरह के नाम से पुकारती थीं और यहाँ तक कि उनके और परिवार के बारे में काफी गलत बोलती थीं। उन्होंने लक्ष्मी की परवरिश पर सवाल उठाया और हमले के लिए उसे ही दोषी ठहराया। लेकिन उनके माता-पिता के समर्थन ने लक्ष्मी को उनकी जरूरत की कई सर्जरी के साथ आगे बढ़ने का साहस दिया। हालांकि लक्ष्मी एसिड अटैक के कारण होने वाली शारीरिक विकृति के बारे में जानती थीं, लेकिन फिर भी वह उस चेहरे दो देखने के लिए तैयार हुई। उन्हें अपना चेहरा घटना के 100 दिन बाद आइने में देखने को मिला।
बुरे दिन
लक्ष्मी को इतना आघात पहुंचा कि उन्होंने आत्महत्या करने तक का सोच लिया। लेकिन यह सोचकर कि वह ऐसा करने पर अपने माता-पिता के लिए दर्द का कारण बनेगी, उन्होंने आत्महत्या के के विचारों को खत्म करने का फैसला किया। इसके बजाय, लक्ष्मी ने अपने माता-पिता में विश्वास करना चुना, जिन्होंने उन्हें परामर्श लेने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके साथ ही, उन्होंने अपने मामले को अदालत में ले जाने का फैसला किया, और मुकदमा चार साल तक चला। नतीजा: गुड्डू को 10 साल की जेल हुई और राखी को सात साल की।
इन सब से पहले, लक्ष्मी हमले के मानसिक और शारीरिक दर्द के चलते बहुत बुरे समय से गुजरीं। महीनों तक, वह कोई कपड़ा पहनने में असमर्थ थीं और एक कंबल के नीचे रहीं। पीरियड्स के दौरान सफाई को मैनेज करना बेहद मुश्किल था। लक्ष्मी की सात साल के दौरान सात सर्जरी हुंई और इसका खर्चा लगभग 20 लाख रुपये आया। उस समय उनके पिता की बचत और उनकी कंपनी ने परिवार को आर्थिक रूप से खर्चा उठाने में मदद की।
अंधेरे से उभरना
अब बदलाव लक्ष्मी के लिए ही था, जिसने अपने साथ हुए अन्याय को खुद को गुलाम बनाने से इंकार कर दिया। धीरे-धीरे, अपने माता-पिता के समर्थन के साथ, उन्होंने आत्मविश्वास हासिल किया और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग, दिल्ली में व्यावसायिक प्रशिक्षण में डिप्लोमा शुरू करने का फैसला किया। और 2009 में, उन्होंने एक और बड़ा बदलाव देखा। वह याद करती हैं, “एक दिन, मैंने खुद को आईने में देखा और सोचा कि अगर मुझे अपना चेहरा ढंककर ही रखना है तो फिर इस सौंदर्यीकरण और टेलरिंग कोर्स करने का क्या फायदा?’ मैंने फैसला किया कि मुझे इसमें कुछ भी शर्म करने की कोई जरूरत नहीं है और मैंने चेहरे से दुपट्टे को हटा दिया और चलने लगी। फ्री होकर।“ लक्ष्मी के इस कदम को उनके समुदाय और उनके संस्थान की लड़कियों द्वारा काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। लेकिन लक्ष्मी बेफिक्र थीं। अपने शिक्षक और संस्थान के सहयोग से, लक्ष्मी ने अपना डिप्लोमा पूरा किया।
अपना उद्देश्य खोजना
2013 में, लक्ष्मी एसिड अटैक आंदोलन का एक हिस्सा बन गईं; आलोक दीक्षित और आशीष शुक्ला द्वारा 'स्टॉप एसिड अटैक्स’अभियान शुरू करने के एक महीने बाद, उनका ये प्रयास 2014 में छांव फाउंडेशन में बदल गया। उन्होंने आक्रामक तरीके से अभियान चलाया और देश में एसिड हिंसा के बारे में चर्चा शुरू की। आगे, फाउंडेशन के माध्यम से, लक्ष्मी सैकड़ों पीड़ितों तक पहुंची और उन्हें उपचार, कानूनी सहायता और पुनर्वास के लिए सहायता करना शुरू की। पेशेंट को उनके दिल्ली स्थिति फैसिलिटी में रखा जाता है, जहाँ उन्हें परामर्श और उपचार दिया जाता है, और पुनर्वास के लिए तैयार किया जाता है।
वह कहती हैं, “जब मैं अपने जैसे और सर्वाइवर्स से मिली, तो मैं काफी गुस्से में थी। कई अन्य पीड़ित थे। कुछ को माता-पिता का समर्थन भी नहीं मिला; उन्हें पैसे और नौकरी के अवसरों की आवश्यकता थी। अपराधियों के बजाय समाज ने उन्हें किनारे कर दिया था। तब मैंने सोचा कि बस बहुत हुआ! हम अब और चुप नहीं रह सकते।” बलात्कार और महिला सुरक्षा के खिलाफ सार्वजनिक रूप से लोगों का गुस्सा निर्भया बलात्कार मामले के बाद सबसे तेज था, और इससे लक्ष्मी के उत्साह और एसिड हिंसा के खिलाफ लड़ने के जुनून को बढ़ावा मिला। आगरा के व्यस्त फतेहाबाद रोड में अपने कैफे, शीरोज (Sheroes) के माध्यम से, उन्होंने एसिड अटैक पीड़ितों को रोजगार देना शुरू किया और आजीविका के अवसर प्रदान किए। वह बताती हैं, “एक नौकरी का अवसर न केवल सर्वाइवर के विश्वास को बढ़ाता है, बल्कि उसके परिवार को भी आत्मविश्वास देता है। उसी समय यह एफर्ट जनता और हम दोनों को यानी सर्वाइवर्स को, खुलकर बातचीत करने और संवेदनशील बनने के लिए प्रोत्साहित करता है।” अपने फाउंडेशन के माध्यम से, वह एसिड सर्वाइवर्स की दुर्दशा के बारे में जागरूकता फैलाने की उम्मीद करती हैं और साथ ही समाज के पुरुषों को महिलाओं की इज्जत करने, उनकी सहमति को समझने और महिला अधिकारों के बारे में शिक्षित करती हैं।
कानूनी लड़ाई
भारत में एसिड अटैक सर्वाइवर्स को अब विकलांग जनों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत अधिकार दिए गए हैं। 2006 में लक्ष्मी की रिट याचिका के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 में, उन आदेशों को पारित किया, जिनके चलते एसिड की बिक्री को लेकर, पीड़ितों के लिए मुआवजा, देखभाल, और सर्वाइवर्स के लिए पुनर्वास, सरकार से सीमित मुआवजा, शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण, और नौकरियों तक आसान पहुंच को लेकर रेगुलेशन बने।
हेल्थकेयर दृष्टिकोण
हालांकि, कानूनी ढांचे के बावजूद, एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए जमीनी हकीकत धुंधली है। नौकरी के अवसरों में कमी, सोशल स्टिग्मा, बढ़ती स्वास्थ्य सेवा और सर्जरी की लागत अक्सर सामान्य जीवन जीने में एक बड़ी चुनौती होती है। एसिड पीड़ितों की पुनर्वास प्रक्रिया में लक्ष्मी के प्रमुख फोकस क्षेत्रों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि वे पर्याप्त उपचार और स्वास्थ्य सेवा के विकल्प प्राप्त करें। मरहम लगाने से पहले डॉक्टरों को घावों पर पानी डालना बहुत आवश्यक है। किसी विशेषज्ञ से उचित परामर्श के बाद स्किन ग्राफ्टिंग प्रक्रिया को करने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए ध्यान रखा जाना चाहिए कि पीड़ित की आंख एसिड से प्रभावित न हो क्योंकि यहां तक कि केमिकल की एक बूंद भी पलकों को पिघला सकती है।
लक्ष्मी बताती हैं, “बहुत बार पुलिस पीड़ित को नजदीकी अस्पताल ले जाती है और वहां छोड़ देती है। उन्हें लगता है कि उनकी जिम्मेदारी केवल मामला दर्ज करने, प्राथमिकी दर्ज करने और रोगी को अस्पताल ले जाने तक ही सीमित है। उन्हें इससे भी मतलब नहीं होता कि उसे किस तरह का ट्रीटमेंट मिल रहा है। न ही उन्हें इस बात की फिक्र होती है कि क्या वह अस्पताल एसिड बर्न मामलों से निपटने के ठीक है।" इसलिए, अपनी फाउंडेशन के माध्यम से, लक्ष्मी रोगियों को हमले के मामले में फॉलो करने के लिए सही प्रक्रियाओं के बारे में बताती है और यहां तक कि पब्लिक को स्किन डोनेट करने के लिए भी प्रोत्साहित करती हैं।
कॉर्नेल लॉ स्कूल - द्वारा प्रकाशित 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश, भारत, और कंबोडिया में दुनिया में सबसे अधिक एसिड अटैक हुए हैं। इसका एक बड़ा कारण एसिड की सस्ती और आसान उपलब्धता है। आज, एसिड को काउंटर पर मात्र 30 रुपये से कम में बेचा जाता है। इसी स्टडी में कहा गया है कि 2002 से 2010 तक, भारत में एसिड अटैक अपराधियों में 88 प्रतिशत पुरुष थे और 72 प्रतिशत पीड़ित महिलाएं थीं।
लेकिन भारत में एसिड अटैक के बारे में बहुप्रतीक्षित बातचीत की शुरुआत लक्ष्मी की तरह बचे लोगों द्वारा दिखाई गई बहादुरी की बदौलत शुरू हुई है। लक्ष्मी अंत में कहती हैं, "मैं अपनी कहानी माता-पिता और पीड़ितों को आशा देने के लिए अपनी कहानी सुनाती हूं। अपनी कहानी के माध्यम से, मैं सभी महिलाओं को एक-दूसरे का समर्थन करने, हमारी ताकत बनने और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के इस खतरे से लड़ने में मदद करना चाहती हूं। यह किसी के साथ भी हो सकता है और हम इसे रोक सकते हैं अगर हम एक साथ लड़ें और बच्चों को महिलाओं का सम्मान करने के बारे में शिक्षित करें।”