कभी झोपड़ी में गुजारे थे दिन, आज पीएम मोदी के लिए सिलते हैं कुर्ते
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कुर्ता सिलने वाले उन दो भाईयों की कहानी, जो कभी रहते थे झोपड़ी में और अब उनकी कंपनी पा रही है ढाई सौ करोड़ों का टर्नओवर...
आप उस स्थिति की कल्पना कीजिए जब घर का सारा खर्च उठाने वाला सदस्य यानी कि पिता अचानक सन्यासी बनने का फैसला कर ले और अपने पीछे छोटे-छोटे बच्चों और पत्नी को बेसहारा छोड़ दे। कुछ ऐसी ही अजीब और मुश्किल परिस्थितियों से निकलकर दो भाइयों, जितेंद्र चौहान और बिपिन चौहान ने न केवल अपने परिवार को सहारा दिया बल्कि अपने पुश्तैनी पेशे में इतनी सफलता हासिल कर ली, कि आज वे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कपड़े बनाते हैं और साथ ही ढाई सौ करोड़ का टर्नओवर देने वाली कंपनी के मालिक भी हैं।
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कम उम्र में पिता का हाथ जिन बच्चों के सिर से हट गया हो, वे या तो पूरी तरह से बरबाद हो जाते हैं या फिर आबाद, जिनमें बरबाद होने वालों की संख्या ज्यादा हुआ करती है और जो आबाद होते हैं वे उदाहरण बन जाते हैं। उन्हीं उदाहरणों में से एक हैं चौहान ब्रदर्स, यानि कि 'जितेंद्र चौहान' और 'बिपिन चौहान'। छोटी-सी उम्र में इन दो भाईयों ने पिता के घर छोड़ने के बाद अपने परिवार को टेलरिंग करके पाला और आज वे 'Jadeblue' जैसी बड़ी और नामी कंपनी के मालिक हैं, जिसका टर्नओवर ही करोड़ों में है, साथ ही इन भाईयों की पहचान भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुर्ते सिलने वालों के रूप में भी होती है...
जितेंद्र चौहान और बिपिन चौहान जेडब्लू मेन्सवेयर स्टोर के मालिक हैं। इनकी कंपनी देश की मशहूर हस्तियों के लिए कपड़े बनाती है। इन्होंने 1981 में अपनी कंपनी स्थापित की थी। आज ये देश के शक्तिशाली नेताओं जैसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, गुजरात के कांग्रेस नेता अहमद पटेल, मशहूर उद्योगपति गौतम अडाणी और करसनभाई पटेल जैसे लोगों के लिए कपड़े बनाने के साथ ही अपने सपने को साकार कर रहे हैं। इनकी कंपनी में पूरे देश में लगभग 1200 लोग काम करते हैं। आज ये अपने बिजनेस के सिलसिले में देश-विदेश की यात्रा भी करते रहते हैं, लेकिन आज से पचास साल पहले इनकी हालत देखकर कोई नहीं कह सकता था, कि ये इस मुकाम तक पहुंचेंगे।
"दोनों भाई जब छोटे थे तब ये अपने परिवार के साथ अहमदाबाद के एक स्लम इलाके के एक चॉल में रहा करते थे। इनके पैतृक टेलरिंग का काम करते थे। बिपिन और जितेंद्र टेलरिंग का काम करने वाली छठवीं पीढ़ी हैं। मूल रूप से अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर लिम्बिडी से ताल्लुक रखने वाले बिपिन उस वक्त सिर्फ 4 साल के थे जब उनके पिता चिमनालाल चौहान ने 1966 में घर छोड़कर सन्यासी बनने का फैसला किया था।"
चौहान ब्रदर्स के पिता को टेलरिंग में महारत हासिल थी। उन्होंने उस जमाने में मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में दुकानें खोलीं, लेकिन कहीं भी 3-4 साल से ज्यादा टिक नहीं सके। बिपिन बताते हैं कि उनके पिता काफी धार्मिक प्रवृत्ति के इन्सान थे। हमेशा पूजा-पाठ और धर्म-कर्म में लीन रहते थे। इसके अलावा वे समाज की भलाई और जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे। यहां तक कि अगर उन्हें कोई ऐसा इंसान मिल जाता जिसके तन पर कपड़े नहीं होते तो वे अपनी शर्ट उतारकर उसे दान कर देते थे। जब उन्होंने सन्यास लेने का फैसला किया तो उनकी दुकान अहमदाबाद में साबरमती आश्रम के पास हुआ करती थी। उस दुकान का नाम 'चौहान टेलर्स' था। उनके पिता उस दुकान को लेकर इतने उत्साहित रहते थे, कि शहर के सिनेमाघरों में उस दुकान के ऐड चलते थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब तक उनके पिता परिवार के साथ रहे तब तक परिवार का गुजारा अच्छे से होता था और सभी सम्मानजनक जिंदगी बिता रहे थे, लेकिन पिता के सन्यास के बाद हालात मुश्किल होते गए और सिर्फ एक साल के भीतर पूरे परिवार को अहमदाबाद शहर में नाना-नानी के घर आना पड़ गया। यहां बिपिन के नाना और मामा की 'मकवाना ब्रदर्स' नाम से टेलरिंग की शॉप थी।
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मामा और नाना की 'मकवाना ब्रदर्स' नाम की ये दुकान काफी प्रसिद्ध थी और उस वक्त वहां हर रोज लगभग 100 कुर्ते सिले जाते थे। जितेंद्र और बिपिन से बड़े भाई दिनेश इस दुकान में टेलरिंग काम सीखते थे। बिपिन और जितेंद्र स्कूल में पढ़ाई करने जाते थे और वहां से वापस आने के बाद वे भी टेलरिंग के काम में लग जाते थे। पिता की कमी न खले इसके लिए उनकी मां कठोर परिश्रम करती थीं और सुबह 6 बजे उठकर देर रात तक काम करती रहती थीं। वह कपड़ों में गोटे और बटन लगाने का काम करती थीं। बिपिन और उनके दो भाई और दो बहन शहर के म्युनिसिपल स्कूल में पढ़ते थे। बिपिन के भाई और बहनों को पढ़ाने का सारा श्रेय उनके मामा को जाता है, जिन्होंने सबको कॉलेज भेजा। बिपिन ने साइकॉलजी में ग्रेजुएशन किया।
"बड़े भाई दिनेश चौहान जब 22 साल के थे, तो उन्होंने 1975 में अपने मामा को सपोर्ट करने के लिए अपनी अलग दुकान खोल ली। उस दुकान का नाम 'दिनेश टेलर्स' था। बिपिन उस वक्त सिर्फ 15 साल के थे और स्कूल जाया करते थे। जितेंद्र 19 साल के थे और कॉलेज में पढ़ाई पूरी कर रहे थे। हालांकि दोनों पढ़ाई से फुरसत निकाल के भाई की दुकान में काम किया करते थे।"
जितेंद्र हर रोज 14 से 15 घंटे काम किया करते थे और हर रोज 16 शर्ट सिल कर तैयार कर देते थे और ये किसी भी हाल में आसान नहीं हुआ करता था। इस लक्ष्य को पाने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ती थी। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों भाईयों ने नौकरी न करने की बजाय अपने पुश्तैनी पेशे को ही आगे बढ़ाने का फैसला किया और 1981 में सुप्रमो क्लॉथिंग एंड मेंसवेयर नाम से अहमदाबाद में टेलरिंग शॉप खोल ली। उन्होंने इसके लिए बैंक से 1.50 लाख का लोन भी लिया और ओल्ड अहमदाबाद के एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में 250 स्क्वॉयर फीट की दुकान डाल दी। एक ओर जहां बिपिन क्रिएटिव आदमी हैं वहीं जितेंद्र दूर की सोचा करते थे। सुप्रीमो क्लॉथिंग दोनों भाईयों के लिए लॉन्चिंग पैड साबित हुई और उन्होंने अपनी स्ट्रेंथ बढ़ानी शुरू कर दी।
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जितेंद्र ने सोचा कि कपड़े सिलने के लिए शहर में तो तमाम टेलर हैं, लेकिन यहां के प्रभावशाली लोगों के लिए कपड़े तैयार किए जाएं तो बिजनेस अच्छा-खासा ग्रो कर सकता है। उन्होंने उसी वक्त प्राइम मिनिस्टर के कपड़े सिलने का सपना देख लिया। उस वक्त उन्हें ऐसे ग्राहकों का कोई अंदाजा नहीं था। उस वक्त नरेंद्र मोदी एक आरएसएस प्रचारक हुआ करते थे और इन्हीं की दुकान से पॉली फैब्रिक के कपड़े सिलवाया करते थे, क्योंकि उसमें जल्दी से सिकुड़न नहीं आती। उस वक्त दोनों भाइयों को अंदाजा भी नहीं था कि यही इंसान एक दिन इस देश का प्रधानमंत्री बन जाएगा।
बिपिन बताते हैं, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1989 से हमारे यहां कुर्ते सिलवाते रहे हैं। बड़े लोगों के कपड़े सिलने की वजह से उनकी दुकान को ख्याति मिलने लगी और धीरे-धीरे शहर के सभी बड़े और अमीर लोग उनकी ही दुकान से कपड़े सिलवाने लगे। 1985 से उन्होंने रेडीमेड कपड़े बनाने शूरू कर दिया और 9 साल बाद 1995 में अहमदाबाद से सीजी रोड में 2800 स्क्वॉयर फीट की जगह में कमर्शियल सेंटर खोल दिया। इस शॉप का नाम जेडब्लू रखा गया। उनका बिजनेस दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता गया और आज देश भर में उनके 51 से ज्यादा रीटेल स्टोर हैं। इन सभी स्टोर्स से उन्हें हर साल ढाई सौ करोड़ से भी ज्यादा का टर्नओवर हासिल होता है।