भारत में कच्चे माल की पर्याप्तता न्यूट्रास्युटिकल इंडस्ट्री के लिए वरदान
भारतीय न्यूट्रास्युटिकल इंडस्ट्री में विभिन्न प्रकार के कच्चे माल का उत्पादन तथा आपूर्ति करने और सप्लीमेंट उत्पादों की बड़ी रेंज तैयार करने के अलावा ओवर-द-काउंटर उत्पादों को बाजार में लाने की क्षमता है.
महामारी ने जब से दस्तक दी है तब से बाजार में हिस्सेदारी और उपभोक्ता जागरूकता के मामले में न्यूट्रास्यूटिकल इंडस्ट्री में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी और उन्नति देखी जा रही है. न्यूट्रास्यूटिकल्स से न केवल बेहतर खानपान की जरुरत पूरी होती है बल्कि इससे कई लाइफस्टाइल की बीमारियों जैसे कि हृदय की बीमारी, किडनी की बीमारी, डायबिटीज, आदि से निपटने में भी मदद मिलती है. इस इंडस्ट्री ने फ़ूड इंडस्ट्री और फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री से भी ज्यादा लाभ प्राप्त करना शुरू कर दिया है. क्योंकि भारत में इस इंडस्ट्री के लिए कच्चे माल की कमी नहीं है और इसके उत्पादों को कई तरह के चिकित्सीय फायदे के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और वर्तमान समय में ऐसा बहुत सारे लोगों द्वारा किया भी जा रहा है.
पर्याप्त स्त्रोत
सिद्ध, यूनानी और होम्योपैथी जैसी दवा पद्धति भारत में विकसित हुई और लोगों के बीच में लोकप्रिय हुई. आयुर्वेद, चिकित्सा की सबसे पुरानी, सबसे ज्यादा उपयोगी और विश्वसनीय दवा पद्धति है. आयुर्वेद आधुनिक न्यूट्रास्यूटिकल्स की नींव है. ये सभी दवा पद्धतियाँ पौधे आधारित कच्चे माल पर निर्भर करती हैं. इस तरह के कच्चे माल भारत में मूल रूप से और प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. ये स्वदेशी पौधे न्यूट्रास्युटिकल इंडस्ट्री के लिए कच्चे माल के स्रोत के रूप में काम करते हैं.
भारतीय पृष्ठभूमि पर 15 अलग-अलग कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं, जहाँ पर हिमालय से लेकर समुद्री और रेगिस्तान से लेकर वर्षावन क्षेत्र का ईको सिस्टम मौजूद हैं. इन सभी क्षेत्रों में कई तरह के देशी पौधें उगते हैं. राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) के अनुसार भारत में औषधीय फूलों के पौधों की 7000 से ज्यादा प्रजातियां मौजूद हैं. इन सभी पौधों की प्रजातियों से कई चिकित्सीय लाभ मिलते हैं.
प्रमाणित विरासत
न्यूट्रास्युटिकल शब्द चलन में आने से पहले ही भारत कई तरह की आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और मसालों का निर्यात कर रहा था. भारत सरकार के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में हर्बल वस्तुओं का निर्यात 539.57 मिलियन डॉलर था. अश्वगंधा, त्रिफला, जीरा, जंगली हल्दी, और सेना जैसे अन्य हर्बल उत्पादों के बीच साइलियम सबसे बड़ा निर्यात किया जाने वाला उत्पाद है. भारतीय आयुर्वेदिक सप्लीमेंट्स ने बाजार की बढ़ती मांग और प्राकृतिक स्वास्थ्य और पर्सनल केयर के बारे में जागरूकता पैदा करना शुरू कर दिया है.
न्यूट्रास्युटिकल सेक्टर का स्कोप
भारतीय न्यूट्रास्युटिकल इंडस्ट्री में विभिन्न प्रकार के कच्चे माल का उत्पादन तथा आपूर्ति करने और सप्लीमेंट उत्पादों की बड़ी रेंज तैयार करने के अलावा ओवर-द-काउंटर उत्पादों को बाजार में लाने की क्षमता है. यह अभी भी माना जाता है कि इस इंडस्ट्री में और ज्यादा उन्नति के दरवाजे खोलने के लिए और अधिक कदम उठाने की जरुरत है.
वर्तमान समय में बाजार का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि भारत कच्चे माल और निर्मित फॉर्मूलेशन का एक प्रमुख स्रोत बनने की ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर सकता है. कृषि-जलवायु परिस्थितियां यहाँ ज्यादा होने के कारण भारत मौजूदा न्यूट्रास्युटिकल देशों से आगे निकल सकता है. व्यावहारिक प्रबंधन प्रथाओं और जानकारी से इंडस्ट्री औषधीय फसल की पैदावार में सुधार कर सकता है. इसके अलावा प्रभावी योजना और प्रयासों से भारतीय न्यूट्रास्यूटिकल उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत गुणवत्ता मानकों और प्रमाणपत्रों को प्राप्त कर सकते हैं. ये दोनों फैक्टर भारत को प्रमुख फार्मा और न्यूट्रास्युटिकल लीग में शामिल करने में मददगार साबित हो सकते हैं.
उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता बढ़ने और अच्छे स्वास्थ्य के प्रति लोगों की बदली मानसिकता के कारण न्यूट्रास्युटिकल सेगमेंट में विकास दर पिछले कुछ समय में अच्छी रही है. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रशासन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत का न्यूट्रास्यूटिकल्स सेगमेंट 2025 के अंत तक 18 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुँच सकता है, जिसमें 65% बाजार हिस्सेदारी पूरी तरह से सप्लीमेंट डाइट की होगी.
भारत उन्नति को बढ़ाने के लिए कई लाभकारी फैक्टर्स को अमल में ला रहा है और न्यूट्रास्यूटिकल्स इंडस्ट्री में वैश्विक नेता के रूप में उभर रहा है. भारतीय और विदेशी बाजारों में क्यूरेटिव (उपचारात्मक) से प्रीवेन्टिव हेल्थकेयर (निवारक स्वास्थ्य देखभाल) के कारण इस इंडस्ट्री के द्वारा प्रदान किये जाने वाले उत्पादों की मांग दिन ब दिन बढ़ने वाली है. इस मामले में भारत के पास बड़ा मौका है क्योंकि भारत अपने खुद के सप्लाई चैनल की मदद से बढ़ती मांग को पूरा कने में सक्षम है.
(लेखक संजीव जैन - एकम्स ड्रग्स & फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं.)