सराहनीय: इस डीएम ने भी अपने बेटी को पढ़ने भेजा आंगनबाड़ी
दो माह पहले उत्तराखंड की डीएम स्वाति भदौरिया ने अपने बच्चे को किसी महंगे स्कूल की बजाए आंगनवाड़ी केंद्र में पढ़ने के लिए दाखिला कराया था, अब तमिलनाडु की डीएम शिल्पा प्रभाकर ने भी अपनी बच्ची को आंगनवाड़ी केंद्र में पढ़ाने का निर्णय लेकर लोगों के सामने अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है।
दो माह पहले चमोली (उत्तराखंड) की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया, अब तिरुनेलवेली (तमिलनाडु) की डीएम शिल्पा प्रभाकर ने भी अपनी बेटी को किसी प्राइवेट प्ले स्कूल में भेजने की बजाय आंगनवाड़ी केंद्र में भेजने का निर्णय लेकर दूसरों के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। स्वाति भदौरिया ने अपने दो वर्षीय बेटे को शहर के किसी मंहगे स्कूल में भेजने की बजाय गोपेश्वर गांव में स्थित आंगनवाड़ी केंद्र में दाखिल कराते हुए कहा था कि 'आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों के विकास के लिए जरूरी सभी प्रकार की सुविधाएं और समग्र वातावरण मौजूद है।'
हमारे देश में इस समय करीब 17 लाख आंगनवाड़ी केंद्र संचालित हो रहे हैं। मौजूदा समय में आंगनवाड़ी केंद्रों में करीब 27 लाख से ज्यादा कर्मचारी कार्य रहे हैं। अभी इन केंद्रों का संचालन महिला बाल विकास मंत्रालय की ओर से किया जा रहा है। देश भर के आंगनवाड़ी केंद्रों का संचालन अब प्री-नर्सरी और नर्सरी स्कूलों के रूप में होने की ओर है। सरकार इन्हें जल्द ही स्कूलों के रूप में मान्यता प्रदान कर सकती है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और महिला बाल विकास मंत्रालय के बीच इसे लेकर सैद्धांतिक सहमति बन गई है। सरकार इसकी घोषणा आने वाले कुछ महीनों में कर सकती है, जिसके तहत प्रत्येक गांव में नर्सरी स्कूलों को खोलने का ऐलान हो सकता है।
देश में प्री-नर्सरी और नर्सरी स्कूलों को खोलने की यह कवायद सरकार के भीतर उस समय तेज हुई, जब हाल ही में स्कूली शिक्षा में नर्सरी को भी शामिल किया गया। इसके बाद सरकार ने इसे लेकर कवायद शुरू की। इसके तहत कुछ राज्यों से चर्चा गई, जिसमें आंगनवाड़ी केंद्रों को ही नर्सरी स्कूलों के रूप में बदलने का प्रस्ताव आया। मंत्रालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो आंगनवाड़ी केंद्रों को इस मुहिम में इसलिए शामिल किया गया है, क्योंकि इसके पास बच्चे और छोटे बच्चों से जुड़ी जरूरी सुविधाएं पहले से मौजूद हैं।
देश में सरकारी स्कूलों और आंगनवाड़ी की हालत किसी से छिपी नहीं है, लेकिन तिरुनेलवेली (तमिलनाडु) की डीएम शिल्पा प्रभाकर इस इलाके में जबरदस्त तरीके से आंगनवाड़ी की मदद कर रही हैं। 2009 बैच की आईएएस शिल्पा प्रभाकर का कहना है, 'आंगनवाड़ी में बच्चों की सेहत पर नजर रखी जाती है। सभी बच्चों की सेहत पर ध्यान दिया जाए, इसलिए मैंने अपनी बेटी को आंगनवाड़ी में भेजा।'
जब उनसे पूछा गया कि ऐसा कदम उन्होंने किसकी सलाह या कहने पर उठाया, शिल्पा का कहना था, 'आंगनवाड़ी सरकार की योजना है। हम सरकार की तरफ से इसे प्रमोट कर रहे हैं।' वह कहती हैं, 'मेरे जिले तिरुनेलवेली में करीब एक हजार आंगनवाड़ी हैं। इनमें बहुत अच्छी टीचर्स हैं, जो बच्चों की देखभाल बहुत बेहतर तरीके से करती हैं। हमारी आंगनवाड़ियों में स्पोर्ट्स के सामान और तमाम सुविधाएं भी हैं। मेरी बेटी को वहां जाने पर समाज के सभी वर्गों के बच्चों को समझने में मदद मिलेगी। वह तमिल बच्चों के साथ खेलती है। वह वहां तमिल भाषा भी सीख जाएगी। जब वह बड़ी होगी, तो उसे समाज के हर वर्ग की समझ होगी और वह कंधे से कंधा मिलाकर चलेगी।'
गौरतलब है कि माता-पिता बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देते हुए प्राइवेट स्कूल में एडमीशन कराते हैं, ताकि उनको उच्च शिक्षा मिले लेकिन तिरुनेलवेली की जिला कलेक्टर ने अनी बेटी को प्राइवेट स्कूल को छोड़ आंगनवाड़ी केंद्र में भेजकर मिसाल पेश की है। अच्छी पहल, सरकार और सरकारी पदों से जुड़े लोगों के बच्चों का सरकारी स्कूलों में एडमिशन अनिवार्य कर दिया जाए, तो शिक्षा के नाम पर खुली दुकानें बंद हो सकती हैं। इन केंद्रों में शिक्षा, खेल और खाना सब साथ-साथ चलता है।
उत्तराखंड की डीएम स्वाति भदौरिया कहती हैं - 'मेरे पुत्र अभ्युदय ने अपने सहपाठियों के साथ खाना खाया और जब वह घर लौटा तो काफी प्रसन्न दिखाई दे रहा था।' स्वाति के पति नितिन भदौरिया भी एक आइएएस अफसर हैं और फिलहाल अल्मोड़ा के जिलाधिकारी के पद पर तैनात हैं।' स्वाति बताती हैं कि उनके इस निर्णय के पीछे एक कारण यह भी है कि इससे आंगनवाड़ी केंद्रों के प्रति आम दृष्टिकोण में बदलाव आएगा। आंगनवाड़ी केंद्र में एक स्वयंसेविका मंजू भट्ट कहती हैं, 'जब अभ्युदय पहली बार आंगनवाड़ी केंद्र आया तो उसने अन्य बच्चों के साथ खिचड़ी खाई।'
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