आखिर, कितना 'लोकतांत्रिक' है आईएएस कन्नन का 'इस्तीफा'!
देश आजाद होने के बाद से भारत में आईएएस-आईपीएस को सिस्टम का पिलर माना जाता है। मौजूदा व्यवस्था में उनके पास ही सबसे अधिक ताकतवर सर्विस होती है। फिर भी कन्नन गोपीनाथन के आईएएस पद से इस्तीफे ने 'अभिव्यक्ति के अधिकार' पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। उनसे पहले कई एक और आईएएस हाल के वर्षों में यह सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा ठुकरा चुके हैं।
हाल के वर्षों में जो एक सवाल बार-बार मुखर होने लगा है कि अभिव्यक्ति के अधिकार की सीमा क्या है और वह सीमा कहां खत्म हो जाती है, आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन के अपने पद से इस्तीफा देने के बाद एक बार फिर सुर्खियों में हैं। गोपीनाथन कहते हैं - 'मैंने सिर्फ इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि लोकतंत्र में लोगों को उनके मौलिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है। सरकार के निर्णयों पर जनता को प्रतिक्रिया देने का अधिकार है। मैं सरकार के ऐसा न करने देने के खिलाफ हूं।' गोपीनाथन की टिप्पणी के बाद एक और प्रश्न गूंजने लगा है कि क्या स्वयंसेवी संगठनों, समाज के रसूखदार लोगों, सेलेब्रिटी, उद्योगपतियों, बुद्धिजीवियों को अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए आवाज उठानी चाहिए? इस पर आइए, पहले दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस एसएन ढींगरा और अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' के एडिटर एन. राम की प्रतिटिप्पणियां जानते हैं।
अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' के एडिटर एन. राम का कहना है कि 'राजनीतिक दल और राजनीतिक विचारधाराएं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित कर रही हैं। आज के भारत के सामने तीन बड़ी चुनौतियां हैं, तर्कवादी लोगों पर हमला, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ख़तरा और लोगों को हाशिये पर धकेलने का यथार्थ। सुप्रीम कोर्ट अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर और बेहतर कर सकता है। बिना आपातकाल की घोषणा किए सूचनाओं की आवाजाही पर रोक लगा देना, इंटरनेट सेवाएं बंद कर देना ठीक नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद 19(1) में दिए गए अधिकारों का उल्लंघन है।' उल्लेखनीय है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिहाज से 2019 के सूचकांक में भारत की स्थिति खराब बताई गई है और कुल 180 देशों की सूची में भारत 140वें नंबर पर रेड जोन में रखा गया है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, हमारे देश में 1992 से 2018 तक 47 पत्रकार मारे जा चुके हैं। इनमें से 33 की हत्या हुई है।
अब आइए, आईएएस कन्नन गोपीनाथन और एडिटर एन.राम की बातों के मद्देनजर जस्टिस ढींगरा का अभिमत जानते हैं। जस्टिस ढींगरा बताते हैं कि अभिव्यक्ति का अधिकार हमारे संविधान के अनुच्छेद-19 (1)(ए) के तहत दिया गया है, लेकिन यह अधिकार 'पूर्ण अधिकार' नहीं है। इस अधिकार पर न्यायोचित रोक लगाई जा सकती है। अधिकार के साथ जिम्मेदारी भी है। संविधान के अनुच्छेद-19 (2) के तहत प्रतिबंधों की व्याख्या की गई है। अनुच्छेद-19 (2) के तहत सरकार कानूनी दायरे में न्यायोचित प्रतिबंध लगा सकती है। देश की संप्रभुता की रक्षा, देश की निष्ठा की रक्षा, देश हित को बनाए रखने के लिए, विदेशी रिलेशन को प्रोटेक्ट करने के लिए और पब्लिक ऑर्डर बरकरार रखने के लिए कानून का इस्तेमाल कर अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकार रोक लगा सकती है।
जहां तक आईएएस कन्नन के इस्तीफे की बात है, वह अभिव्यक्ति की आजादी के साथ कश्मीर मुद्दे की संवेदनशीलता से जुड़ा है। यद्यपि सात वर्ष तक भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहने के बाद 01 अगस्त 2019 को पद छोड़ देने वाले कन्नन कहते हैं कि सरकार का फैसला एक तरफ लेकिन उस पर प्रतिक्रिया देना मौलिक अधिकार है और उसका सम्मान होना चाहिए। देश की संस्थाओं, समाज, प्रजातंत्र और मीडिया से जो उम्मीदें थीं, पूरी नहीं हुईं। इसलिए उन्हे लगा कि आवाज उठानी चाहिए और सर्विस में रहते हुए ऐसा करना ठीक नहीं था, तो अपनी राय बताने के लिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। कन्नन गोपीनाथन इससे पहले वर्ष 2018 में केरल की बाढ़ के दौरान अपनी पहचान छिपाकर लोगों को मदद करते वक़्त पहली बार सुर्खियों में आए थे।
ऐसे में यह सवाल भी उठना लाज़िमी है कि आईएएस पद ज्वॉइन करते वक़्त देश की एकता, अखंडता, राष्ट्रीय अस्मिता की शपथ लेने वाले ये अफसर अचानक उसके महत्व से परहेज क्यों करने लगते हैं? क्या जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाना भारतीय गणराज्य का अधिकार नहीं है? उल्लेखनीय है कि भारत के आजाद के बाद से भारतीय प्रशासनिक सेवा देश में सबसे सम्मानित सर्विस मानी जाती है। हाल के वर्षों में देखा गया है कि आईएएस और आईपीएस अधिकारी अलग-अलग वजहों से ऐसी सर्विस ठुकराने भी लगे हैं। कन्नन गोपीनाथन का इस्तीफा सुर्खियों में आने के साथ ही जनवरी 2019 में चर्चित एवं 2010 बैच के आईएएस टॉपर आईएएस शाह फैसल ने भी इस्तीफा दे दिया था। अब वह खुद की बनाई राजनीतिक पार्टी चला रहे हैं। फिलहाल वह नजरबंद हैं।
गौरतलब है कि आईएएस टॉपर शाह फैसल और कन्नन गोपीनाथन से पहले, फरवरी 2019 में 2004 बैच के आईएएस फारूक अहमद शाह ने अनुच्छेद 370 हटाने के सरकार के फैसले पर इस्तीफा देते हुए कहा था- 'हम फैसले से चकित हैं और इसने हमें निराश कर दिया है क्योंकि इस अनुच्छेद के साथ हमारी भावनाएं जुड़ी थीं।'
इसी साल मार्च 2019 में मेरठ (उ.प्र.) में इनकम टैक्स विभाग की प्रिंसिपल कमिश्नर प्रीता हरित ने इस्तीफ़ा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। ओडिशा बैच की आईएएस अधिकारी अपराजिता सारंगी ने 2018 में अपने पद से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था। इसी तरह वर्ष 1963 में भारतीय विदेश सेवा के लिए चुने गए मणिशंकर अय्यर ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए वर्ष 1989 में वीआरएस ले लिया था।
वर्ष 1980 बैच के आईपीएस अधिकारी सत्यपाल सिंह वर्ष 2014 में मुंबई पुलिस आयुक्त पद से इस्तीफा देकर भाजपा के साथ हो लिए थे। रायपुर (छतीसगढ़) में कलेक्टर पद त्याग कर 2005 बैच के आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी अगस्त 2018 में भाजपा में शामिल होने के बाद खरसिया विधानसभा सीट से चुनाव हार गए थे। उड़ीसा के 1985 बैच के आईएएस गगन धल ने अभी इसी सप्ताह अपने पद से इस्तीफा दे दिया। अभी हाल ही में अपने तबादले के एक दिन बाद ही दिल्ली में आईएएस वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने भी वीआरएस का आवेदन कर दिया।