Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

अंग खो चुके लोगों के लिए कृत्रिम समाधान प्रदान कर रहा है आईआईएससी के दो पूर्व छात्रों का ये स्टार्टअप

अंग खो चुके लोगों के लिए कृत्रिम समाधान प्रदान कर रहा है आईआईएससी के दो पूर्व छात्रों का ये स्टार्टअप

Monday August 26, 2019 , 7 min Read

अपने शरीर के अंग खो चुके लोगों के लिए प्रोस्थेटिक सलूशन अर्थात कृत्रिम अंग समाधान काफी हद तक आरामदायक, सुविधाजनक और सस्ते होते हैं। ये कृत्रिम अंग ऐसे लोगों की जिंदगी में बदलाव ला सकते हैं जो दूसरों पर डिपेंडेंट हैं। सोचिए अगर इन कृत्रिम अंगों में तकनीकी क्षमताएं जोड़ दी जाएं ताकि व्यक्ति को उन पर बेहतर नियंत्रण और समझ मिल सके तो कितना अच्छा होगा। बेंगलुरु स्थित ग्रास्प बायोनिक्स ( Grasp Bionics) द्वारा विकसित कृत्रिम अंग पूरक (Purak) इस दिशा में एक बड़ा कदम है। 


पुरक के जरिए इस बूटस्ट्रैप्ड प्रोस्थेटिक सॉल्यूशंस स्टार्टअप का उद्देश्य अंग खो चुके लोगों को क्षमतावान बनाकर उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना है।



Co-founders of Grasp Bionics, Vinay V and Nilesh Walke

ग्रास्प बायोनिक्स के को-फाउंडर विनय वी और नीलेश वालके



स्टार्टअप आइडिया में बदली थीसिस


विनय वी (34 वर्षीय) और नीलेश वालके (33) दोनों ही आईआईएससी के पूर्व छात्र हैं। दोनों ने CPDM से डिजाइन में मास्टर किया है। वहीं अरविंद कुमार साहू (27) चीफ इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन इंजीनियर हैं। अरविंद ने इलेक्ट्रॉनिक्स (वीएलएसआई डिजाइन) में एसएसजीआई (श्री शंकराचार्य ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस) से एमटेक किया है। इस स्टार्टअप की नींव एक थीसिस प्रोजेक्ट से पड़ी। विनय वी और नीलेश वाल्के 2011 में आईआईएससी में अपने एमडीएस (मास्टर इन डिजाइन) के हिस्से के रूप में एक थीसिस पर काम कर रहे थे।


अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद, उन्होंने लगभग चार-पाँच वर्षों तक विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए काम किया और 2016 की शुरुआत में वे वापस वहीं आकर मिले जहां उन्होंने अपनी थीसिस छोड़ी थी।


विनय कहते हैं,

"हमारे पास अपनी थीसिस के दौरान अवधारणा का एक मूल प्रमाण था, लेकिन बाद में हमारे प्रोफेसर ने हमें फिर से उसी प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू करने के लिए बुलाया।"


आईआईएससी में CPDM (सेंटर फॉर प्रोडक्ट डिजाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग) के प्रोफेसर दिबाकर सेन ने उन्हें अपना काम जारी रखने के लिए वेलकम ट्रस्ट ग्रांट दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनकी पूरी यात्रा में उनका मार्गदर्शन किया। फरवरी 2016 तक, ट्रस्ट ग्रांट पीरियड के दौरान पूरक को यूजर टेस्टिंग और डिजाइन बदलाव के कई दौर से गुजारा गया। 


वो क्या था जिसने पूरक के लिए प्रेरित किया? दरअसल 2011 में, विनय और नीलेश आईआईएससी (Indian Institute of Science) में अपनी वर्कशॉप के दौरान एक मशीनिस्ट से मिले जो अपना एक हाथ खो चुका था। उसके लिए काम करना मुश्किल था क्योंकि उसने प्रोस्थेटिक नहीं पहना था और वह केवल एक हाथ से काम कर रहा था।


विनय कहते हैं,

“जब हमने इस स्पेस को देखा, तो हमने पाया कि हमारे देश में इस मशीनिस्ट की तरह बहुत से लोग हैं। हमने ये भी देखा कि देश में उपलब्ध कृत्रिम विकल्प और उनकी वास्तविक आवश्यकता के बीच बहुत बड़ा है।” 


नीलेश कहते हैं,

“हम भी डिवाइस बनाने के लिए हमारी एजुकेशन, नॉलेज और लर्निंग्स का उपयोग करना चाहते थे। हम भी एक ऐसी डिवाइस बनाना चाहते थे जो जरूरतमंदों के लिए उनकी खास जरूरतों को पूरा कर सके। हमने CPDM, IISc में अपने MDes (मास्टर इन डिजाइन) के दौरान प्रोस्थेटिक लिम्ब (बेसिक प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट) बनाने के लिए काम किया, जिसने अंततः हमें ग्रास्प बायोनिक्स शुरू करने के लिए प्रेरित किया।”


वह आगे कहते हैं,

“हमें उम्मीद है कि हमारा प्रोडक्ट इस फाइनेंसियल इयर के अंत से पहले लॉन्च हो जाएगा। पूरक को भारत के आठ शहरों में 50 यूजर्स के बीच परीक्षण किया गया है, और हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।"

ये स्टार्टअप कर्नाटक सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग की एक पहल, एलिवेट 100 प्रोग्राम में विजेताओं में से एक था।



विनय वी और नीलेश वालके

विनय वी और नीलेश वालके



कम्फर्टेबल मैकेनिज्म


इस स्पेस में और भी कई कंपटीटर्स हैं लेकिन जो चीज पूरक को सबसे अलग करती है वो है कृत्रिम अंग के लिए एक विशेष रूप से डेवलप्ड मैकेनिज्म। नीलेश बताते हैं,

''पूरक ने स्पेशली मैकेनिज्म डेवलप किया है, जिसके तहत यूजर्स अपनी सभी पांचों उंगलियों का इस्तेमाल कर सकता है, सभी अलग-अलग शेप और साइज की वस्तुओं को पकड़ सकता है, वस्तुओं को जोर लगाकर भी पकड़ सकता और उसे ये भी अहसास होता है कि उस वस्तु को उसने किस तरह से पकड़ा हुआ है। वहीं अन्य के प्रोडक्ट्स की बात करें तो उनमें हाथ की तीन अंगुलियों का ही उपयोग कर सकते हैं और केवल मुठ्टी खोलने और बंद करने के फंक्शन ही काम करेंगे।"


पूरक का वजन 400 ग्राम से 600 ग्राम के बीच होता है। पूरक हाथ को खोलने और बंद करने के लिए यूजर्स की इंटेंशन को मायो-मैकेनिकल बेस्ड सेंसिंग का उपयोग करके कैप्चर करता है, जो अधिक सहज है। नीलेश बताते हैं,

“कंट्रोल का यह तरीका यूजर्स के लिए कृत्रिम अंग के बारे में तेजी से सीखने और कंट्रोल करने में मदद करता है। हमारे टेस्ट रिजल्ट्स ने साबित कर दिया है कि सभी यूजर्स इसे पेश किए जाने के 20 मिनट के भीतर डिवाइस का उपयोग करना शुरू कर देते हैं।"


विनय बताते हैं कि मायो-मेकेनिकल (myo-mechanical) बेस्ड सेंसिंग, मायो-इलेक्ट्रिकल सेंसिंग से अलग है। ये क्यों अलग है इस पर बात करते हुए नीलेश कहते हैं,

“अन्य सप्लायर्स द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मायो-इलेक्ट्रिकल बेस्ड सेंसिंग मांसपेशियों की सतह से इलेक्ट्रिकल सिग्नल लेती है। इस मामले में, सेंसर को हाथ (स्टंप) के अवशिष्ट भाग में रखा जाता है। उष्णकटिबंधीय देश होने के चलते भारतीय लोगों को पसीना बहुत आता है, इसलिए इसमें गलत सिग्नलिंग की संभावना अधिक होती है।”


दूसरी ओर, मायो-मेकेनिकल सेंसिंग में, सेंसर हाथ पर पहने गए स्टॉकइनेट (stockinette) के ऊपर रखा जा सकता है। वह कहते हैं,

"जब यूजर अपने हाथ को हिलाने की कोशिश करता है तब मांसपेशियों में विस्तार होता है - हम उस मूवमेंट को उस सेंसर के माध्यम से पकड़ते हैं जो हाथ के अवशिष्ट भाग पर रखा जाता है।" संस्थापकों ने पूरक के लिए पेटेंट के लिए आवेदन किया है। वर्तमान में, स्टार्टअप केवल कोहनी से नीचे तक के कृत्रिम अंग का सलूशन दे रहा है। 





प्रभावी और किफायती समाधान की ज़रूरत


विनय बताते हैं कि अपना हाथ या पैर खो देने वाला व्यक्ति डिपेंडेंट हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उसके अंदर कम आत्मसम्मान और समाज से बहिष्कार की भावना पैदा होती है। वे कहते हैं,

“वर्तमान में उपलब्ध समाधान दो प्रकार के हैं। ऐसे उपकरण हैं जो कम लागत में भी उपलब्ध हैं लेकिन भारी हैं और उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं हैं। इसके विपरीत, ऐसे उपकरण भी हैं जो काम ठीक से करते हैं लेकिन इम्पोर्टेड होते हैं और बहुत महंगे भी होते हैं।"

वे कहते हैं,

“हम प्रोडक्ट डिजाइन बैकग्राउंड से आते हैं इसलिए हमारे उत्पाद को शुरू से सही यूजर-सेंट्रिक अप्रोच के साथ डेवलप किया गया है। हमारा सलूशन इन समस्याओं को एड्रेस करता है।”


वर्तमान में, इम्पोर्टेड कृत्रिम अंगों की कीमत लगभग 20 लाख रुपये है। ग्रास्प बायोनिक अपने प्रोडक्ट को लगभग 1 लाख रुपये प्रति यूनिट पर बेचना चाहता है। भारत में कोहनी के नीचे के लिए उपलब्ध मेड इन इंडिया कृत्रिम अंगों की डिजाइन बहुत पुरानी है और वे ज्यादातर शरीर-संचालित हैं, उनकी कीमत लगभग 10,000 से 30,000 रुपये है।


भारत में, अपर लिम्ब डिसेबलिटीज वाले के लगभग 15 लाख लोग हैं और यह संख्या सालाना 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए, विनय कहते हैं,

“हमारी योजना एक साल में कोहनी के ऊपरी हिस्से के लिए कृत्रिम अंग विकसित करने की है। हम इस मार्केट स्पेस में अंतर को खत्म करना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि विकलांगता वाले लोग अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए दूसरों पर बिना किसी निर्भरता के विश्वास के साथ अपना जीवन जीएं।''