पहले अमेरिकी फेड ने बढ़ाई ब्याज दरें, अब रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचा रुपया, शेयर बाजार में मचेगा हाहाकार?
अगर अमेरिका में एक मामूली हलचल भी होती है, तो उसका असर भारत पर दिखता है. अमेरिकी फेड ने ब्याज दरें बढ़ाईं और रुपया ऑल टाइम लो लेवल पर पहुंच गया. भारत के शेयर बाजार पर इसका असर दिखने लगा है.
कहते हैं अमेरिका को छींक भी आ जाए तो भारत को जुकाम हो जाता है. इसी हफ्ते बुधवार को अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 75 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी (Fed Rates Hike) की. उसके अगले ही दिन भारत में पहले शेयर बाजार (Share Market) पर उसका बुरा असर दिखा और गिरावट दर्ज की गई. साथ ही रुपये में भी भारी गिरावट (Why Rupee Falling) देखने को मिली. इसी के साथ रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर (Rupee Record Low Level) पर पहुंच गया है. गुरुवार को रुपये में 42 पैसे की गिरावट दर्ज की गई. इसी के साथ रुपया 80.30 रुपये के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. वहीं डॉलर इंडेक्स (Dollar Index) 2 दशकों के उच्चतम स्तर 110.87 पर पहुंच चुका है.
फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें 0.75 फीसदी बढ़ाईं
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है और अब नई दरें 3-3.25 फीसदी की रेंज में जा पहुंची हैं. टेंशन की बात तो ये है कि फेडरल रिजर्व ने इसे भविष्य में फिर से बढ़ाए जाने के संकेत दिए हैं. भारत में भी महंगाई की वजह से रिजर्व बैंक की तरफ से रेपो रेट 3 बार बढ़ाया जा चुका है. अमेरिका में महंगाई 40 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है. ऐसे में फेडरल रिजर्व के पास ब्याज दरें बढ़ाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. केंद्रीय बैंक का अनुमान है कि साल 2023 तक फेड रेट्स बढ़ते-बढ़ते 4.6 फीसदी तक पहुंच सकते हैं. साल के अंत तक ही बेंचमार्क रेट को 4.4 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है. भारत में भी महंगाई से निपटने के लिए ब्याज दर बढ़ाए जाने का अनुमान है.
रुपया गिरने का क्या है मतलब?
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिकी मुद्रा (डॉलर) के मुकाबले रुपया गिरने का मतलब है कि भारत की करंसी कमजोर हो रही है. इसका मतलब अब आपको आयात में चुकाई जाने वाली राशि अधिक देनी होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि ग्लोबल स्तर पर अधिकतर भुगतान डॉलर में होता है. यानी रुपया गिरता है तो भारत को अधिक विदेशी मुद्रा खर्च करनी होती है, जिससे हमारा विदेशी मुद्रा भंडार कम होने लगता है. यही वजह है कि विदेशी मुद्रा भंडार पर संकट आते ही सबसे पहले तमाम देश आयात पर रोक लगाते हैं.
एक उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिए आपको कुछ आयात करने में 1 लाख डॉलर देने पड़ रहे हैं. साल की शुरुआत में डॉलर की तुलना में रुपया 75 रुपये पर था. यानी तब जिस आयात के लिए 75 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे, अब उसी के लिए 80 लाख रुपये से भी अधिक चुकाने पड़ेंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि अब डॉलर के मुकाबले रुपया 80 रुपये के भी ऊपर निकल चुका है.
रुपया गिरते ही क्यों टूटने लगता है शेयर बाजार?
शेयर बाजार की चाल काफी हद तक सेंटिमेंट पर निर्भर करती है. ऐसे में अगर कोई महामारी जैसे कोरोना, राजनीतिक अस्थिरता या कोई बड़ा वित्तीय फ्रॉड सामने आ जाता है, तो लोग डरकर अपना पैसा निकलने लगते हैं. ऐसे में विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया कमजोर होने लगता है तो उसका सीधा असर शेयर बाजार पर देखने को मिलता है. रुपया गिरता है तो एक बात साफ हो जाती है कि अब आयात महंगा हो जाएगा. रुपया गिरने के वजह से विदेशी मुद्रा भंडार तुलनात्मक रूप से तेजी से कम होता है, ऐसे में उसका असर बाजार पर दिखता है.
इस बार तो रुपये में गिरावट की एक बड़ी वजह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरें बढ़ाया जाना भी है. ऐसे में शेयर बाजार पर दोहरी मार देखने को मिल सकती है. गुरुवार को तो भारतीय शेयर बाजार में शाम होते-होते गिरावट काफी हद तक रिकवर हो गई थी, लेकिन आज रुपये के सबसे निचले स्तर पर पहुंच जाने की खबर से बाजार में भारी गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा है. खैर, सुबह की शुरुआत तो गिरावट के साथ हुई है और बाजार खुलने के करीब 1 घंटे में ही सेंसेक्स 500 प्वाइंट से भी अधिक गिर चुका है.