Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

49 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन को महिलाओं का ‘बुनियादी संवैधानिक अधिकार’ कहा और फिर उसे छीन लिया

किसी चीज को प्रतिबंधित करने का मतलब ये नहीं कि वो बंद हो जाएगी. वो गैरकानूनी तरीकों से होगी, वो छिपकर होगी, वो असुरक्षित होगी. अबॉर्शन बंद नहीं होंगे, औरतों की सेहत और जिंदगी ज्यादा खतरे में रहेगी.

49 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन को महिलाओं का ‘बुनियादी संवैधानिक अधिकार’ कहा और फिर उसे छीन लिया

Monday June 27, 2022 , 8 min Read

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने रो बनाम वेड (Roe v Wade) केस के 49 साल पुराने ऐतिहासिक फैसले को पलटते हुए देश में हर तरह के गर्भपात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है. इस फैसले के मुताबिक अब देश में किसी भी उम्र की कोई भी लड़की या महिला किसी भी कारण से हुए अनचाहे गर्भ से मुक्ति नहीं पा सकती. चाहे वह गर्भ बलात्‍कार के कारण हुआ हो, अनचाहे थोपे गए इंसेस्‍ट (पारिवारिक खून के संबंधों) से या और किसी वजह से. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक अमेरिका में अब गर्भपात पूरी तरह प्रतिबंधित है.

अमेरिकी कानून के मुताबिक हर राज्‍य के पास अपना अलग कानून बनाने का विशेषाधिकार सुरक्षित है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर हर राज्‍य पर पड़ेगा. रिपब्लिकन बहुल 13 राज्‍य, जहां पहले से गर्भपात का अधिकार सीमित या प्रतिबंधित है, वहां तत्‍काल ही गर्भपात पूरी तरह प्रतिबंधित हो जाएगा. बाकी 12 राज्‍यों में अधिकार सीमित हो जाएंगे. कुल मिलाकर तकरीबन 6 करोड़ अमेरिकी  महिलाओं के जीवन पर कोर्ट के इस फैसले का सीधा असर पड़ेगा.

49 साल पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि गर्भपात पर प्रतिबंध ‘किसी महिला के चयन के अधिकार‘ उल्‍लंघन है, उसके बाद 32 सालों तक अमेरिका के तकरीबन हर राज्‍य में कुछ नियमों और शर्तों के साथ महिलाओं को गर्भपात का अधिकार मिला हुआ था.

डोनाल्‍ड ट्रंप के सत्‍ता में आने के बाद एक के एक चार राज्‍यों ने गर्भपात पर प्रतिबंध लगा दिया. सबसे ज्‍यादा तीखी बहस मई, 2019 में अलाबामा में गर्भपात पर प्रतिबंध लगने के बाद हुई क्‍योंकि वहां के कानून में गर्भपात करने वाले डॉक्‍टर, नर्स या उस काम में सहयोग करने वाले किसी भी व्‍यक्ति के लिए 99 साल की कैद की सजा का प्रावधान किया गया. यह उतनी ही सजा थी, जो सबसे जघन्‍य हत्‍या के केस में दी जाती है.

अलाबामा की पॉपुलेशन का जेंडर अनुपात ऐसा है कि वहां 51 फीसदी महिलाएं और 49 फीसदी मर्द हैं, लेकिन सीनेट में 25 मर्द और सिर्फ 3 औरतें थीं. उस दिन 25 वोट गर्भपात को प्रतिबंधित करने के पक्ष में पड़े थे और 3 विरोध में. विरोध करने वाली तीनों औरतें थीं, जो कह रही थीं, “बात प्रो-लाइफ होने की नहीं, बात औरतों के जीवन को कंट्रोल करने की है.”

सुप्रीम कोर्ट के जजों का रूढि़वादी इतिहास

दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों में से जिन चार ने गर्भपात के अधिकार के पक्ष में वोट डाला था, उनमें से दो महिलाएं थीं. सुप्रीम कोर्ट में इस वक्‍त सिर्फ तीन महिला जज हैं, जिनमें से एक ऐमी कोनी बैरेट पिछले दो दशकों से एंटी अबॉर्शन कैंपेन का चेहरा हैं.

सितंबर, 2020 में रूथ बादेर गिंसबर्ग की मृत्‍यु के बाद डोनाल्‍ड ट्रंप ने कंजरवेटिव ऐमी कोनी बैरेट को सुप्रीम कोर्ट जज के लिए नामित किया. ऐमी बैरेट का इतिहास कोर्टरूम में गर्भपात के अधिकार के खिलाफ दलील करने का रहा है. वह दो दशक तक रिपब्लिकंस और कंजरवेटिव्‍स का एंटी अबॉर्शन कैंपेन लीड करती रहीं. ऐमी बैरेट हर उस मूल्‍य के खिलाफ थी, जिसके लिए रूथ बादेर गिंसबर्ग ने अपना जीवन लगाया था. इस फैसले का देश भर में विरोध हुआ, लेकिन बैरेट सुप्रीम कोर्ट की जज बन गई.

american-supreme-court-overturns-landmark-roe-v-wade-ruling-on-abortion-rights

गर्भपात को प्रतिबंधित करने के पक्ष में वोट डालने वाले जज क्‍लेरेंस थॉमस का भी विरोध हुआ था, जब 1991 में जॉर्ज बुश सीनियर ने सुप्रीम कोर्ट जज के लिए थॉमस को नामित किया. क्‍लेरेंस थॉमस पर सेक्‍सुअल हैरेसमेंट का गंभीर आरोप था, जिसकी पूरी तरह अनदेखी करते हुए उसे फिर भी जज बनाया गया.   

राष्‍ट्रपति जो बाइडेन की ऐतिहासिक भूलें

अमेरिका के राष्‍ट्रपति जो बाइडेन ने इस फैसले को ऐतिहासिक भूल बताया है, लेकिन ये बताते हुए वो भूल गए कि उस ऐतिहासिक भूल में खुद उनका भी योगदान है. बाइडेन बड़ी आसानी से खुद अपना इतिहास भूल गए हैं, जिसकी कुछ नजीरें ये रहीं-

  1. - 1974 में गर्भपात का अधिकार दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जो बाइडेन ने कहा था, “मैं अबॉर्शन पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सहमत नहीं हूं. मुझे नहीं लगता कि यह तय करना अकेले महिलाओं का अधिकार है कि उनके शरीर के साथ क्‍या फैसला लिया जाए.”
  2. - 1982 में मि. बाइडेन ने स्‍टेट सीनेट को Roe v Wade केस के फैसले को पलटने दिया.
  3. - 1988 में मि. बाइडेन ने “हाइड एमेंडमेंट” में इसके विरोध में वोट  किया कि रेप और इंसेस्‍ट कारणों से होने वाले गर्भपात को भी इसमें शामिल न किया जाए. 
  4. - 2006 में जो बाइडेन ने कहा था, “मैं अबॉर्शन को महिलाओं की चॉइस और अधिकार की तरह नहीं देखता हूं.”

कमाल की बात ये है कि पिछले 200 सालों से हमारे शरीर से जुड़े इस महत्‍वपूर्ण फैसले का अधिकार उन लोगों के हाथों में सुरक्षित है, जो खुद कभी प्रेग्‍नेंट नहीं होते. जिन्‍हें खुद बलात्‍कार, इंसेस्‍ट या धोखेबाज प्रेमी के हाथों अनचाही प्रेग्‍नेंसी का शिकार नहीं होना पड़ता, न अनचाहे बच्‍चे पैदा करने पड़ते हैं. जो फैसला औरत के शरीर, उसकी सेहत और उसकी जिंदगी से जुड़ा है, वह फैसला मर्द

ले रहे हैं.

जब औरतों ने पहचान छिपाकर अपनी कहानी लिखनी शुरू की

28 अक्‍तूबर, 2012 को आयरलैंड में सविता हलप्‍पनावर नाम की एक भारतीय महिला की मौत हो गई. उसकी प्रेग्‍नेंसी कॉम्‍प्‍लीकेटेड थी, जान को खतरा था, लेकिन डॉक्‍टरों ने अबॉर्शन करने से इनकार कर दिया क्‍योंकि यह उस देश का कानून था.

american-supreme-court-overturns-landmark-roe-v-wade-ruling-on-abortion-rights

सविता की मौत के बाद देश भर में हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच सोशल मीडिया पर एक अकाउंट बना, जिसमें अपना नाम और पहचान छिपाकर महिलाओं ने अपनी अनचाही प्रेग्‍नेंसी, असुरक्षित और गैरकानूनी तरीके से अबॉर्शन करवाने की उनकी कोशिशों की कहानियां लिखना शुरू किया.

आयरलैंड की पॉपुलेशन में 24 लाख महिलाएं हैं. उस वेबसाइट पर 7 लाख से ज्‍यादा महिलाओं ने अपनी कहानियां शेयर की थीं. मतलब कि तकरीबन हर तीसरी औरत की जिंदगी में अबॉर्शन से जुड़ी कोई न कोई दुखद कहानी थी. ये दुख उनके हिस्‍से में इसलिए आया था कि क्‍योंकि उनके देश की संसद में बैठे कानून बनाने वाले मर्दों को लगता था कि यह तय करना उनका विशेषाधिकार है कि औरत कब बच्‍चा पैदा करेगी.

‘व्हैन अबॉर्शन वॉज इललीगलः अनटोल्ड स्टोरीज’

1992 में अमेरिकन फिल्‍ममेकर डोरोथी फैडीमेन ने एक डॉक्‍यूमेंट्री फिल्म बनाई थी, ‘व्हैन अबॉर्शन वॉज इललीगलः अनटोल्ड स्टोरीज,’ जिसे ऑस्‍कर से नवाजा गया. इस फिल्‍म में अपनी कहानी सुना रही औरतें अब बूढ़ी हो चुकी हैं. उनकी पीठ झुक गई है, चेहरे पर झुर्रियां हैं. वो 40-50 साल पुरानी कहानी सुना रही हैं. लेकिन उनकी डबडबाई आंखें और भर्राई हुई आवाज कहती है कि वो दुख इतना गहरा था कि उम्र गुजर जाने के बाद भी गया नहीं.

दुख सिर्फ ये नहीं था कि उनमें से किसी के साथ रेप हुआ था, किसी के अपने कजिन, रिश्‍तेदार ने कच्‍ची उम्र में उन्‍हें प्रेग्‍नेंट कर दिया था, दुख ये भी था कि उस अबोध उम्र में हुए इस हादसे के बाद उनकी मदद करने वाला कोई नहीं था. अस्‍पतालों और डॉक्‍टरों के क्लिनिक में उनके लिए जगह

नहीं थी.

देश के कानून के हिसाब से अबॉर्शन गैरकानूनी था. अनचाहा गर्भ गिराने के लिए उन्‍हें अंधेरी, अकेली, सीलन भरी जगहों पर जाना पड़ा, विचित्र, लालची लोगों पर भरोसा करना पड़ा. अबॉर्शन प्रतिबंधित होने से रेप, इंसेस्‍ट और कच्‍ची उम्र के प्रेम में उनका प्रेग्‍नेंट होना नहीं रुका हुआ था. सुरक्षित अबॉर्शन का अधिकार जरूर रुक गया था. जो लड़के प्रेग्नेंट करने में साझेदार थे, वो अबॉर्शन में मददगार नहीं हुए. देश और कानून भी मददगार नहीं हुआ. ये लड़ाई भी उन औरतों ने अकेले ही लड़ी.  

हर साल 30,000 महिलाओं की मौत

यूएन की रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में हर साल असुरक्षित तरीके से गर्भपात कराने की कोशिश में साढ़े चार करोड़ औरतें अपनी जान खतरे में डालती हैं और 30,000 महिलाओं की मौत हो जाती है. कितना वक्‍त गुजर चुका है, लेकिन मानो कुछ भी नहीं गुजरा. वक्‍त की सूई घूम-फिरकर वहीं आ जाती है. 70 साल लड़कर औरतों को एक अधिकार मिला था, 50 साल पूरे होने से पहले ही वो अधिकार वापस छीन लिया गया.  

अलाबामा की सीनेट में उस दिन अबॉर्शन राइट के पक्ष में वो डालने वाली तीन महिला सदस्‍यों में से एक कोलमैन मेडिसन ने कहा था, “किसी चीज को प्रतिबंधित करने का मतलब ये नहीं कि वो बंद हो जाएगी. वो गैरकानूनी तरीकों से होगी, वो छिपकर होगी, वो असुरक्षित होगी. अबॉर्शन बंद नहीं होंगे, औरतों की सेहत और जिंदगी ज्यादा खतरे में रहेगी.” सीनेट के 25 मर्दों ने उन औरतों की बात नहीं सुनी. बिल पास हो गया.

सुप्रीम कोर्ट में भी उस दिन यही हुआ. 1973 में 9 में से 7 जजों ने अबॉर्शन के जिस अधिकार को “महिलाओं का बुनियादी संवैधानिक अधिकार” बताते हुए महिलाओं को चयन की आजादी दी थी, 49 साल बाद दुनिया के सबसे ताकतवर देश ने वह अधिकार औरतों से छीन लिया.