coto – एक ऐसा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, जहां सिर्फ महिलाओं को मिलेगा प्रवेश, बिना आईडी प्रूफ के एंट्री नहीं
coto – ये जगह है महिलाओं की, महिलाओं के लिए, महिलाओं के द्वारा.
20 साल लंबे जर्नलिस्टिक कॅरियर को छोड़कर 45 साल की अपर्णा अचरेकर एक ऐसा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बना रही हैं, जो सिर्फ महिलाओं के लिए होगा. Zee5 और बिग एफएम जैसे बड़े मीडिया हाउस में लीडरशिप पोजीशन में रह चुके तरुण कटियाल के साथ अपर्णा
नाम के एक एप की को-फाउंडर हैं. यह बाकी दूसरे एप्स की तरह नहीं है, जिसके दरवाजे हर किसी के लिए खुले हों.यह जगह है महिलाओं की, महिलाओं के लिए, महिलाओं के द्वारा.
महिलाओं का अपना एक सुरक्षित कोना, जहां वह खुलकर बिना किसी डर और असुरक्षा के हर विषय पर बात कर सकती हैं. अपना ग्रुप बना सकती हैं. अपनी रुचि के दूसरे ग्रुप्स में शामिल हो सकती हैं. बात, बहस, संवाद कर सकती हैं. दिल खोलकर जो मन हो, कह सकती हैं. हंस सकती हैं, रो सकती हैं, लड़ सकती हैं. उन्हें डर नहीं कि अपनी पहचान छिपाकर अचानक कोई मर्द नमूदार होगा और उन्हें कैरेक्टर सर्टिफिकेट देकर गायब हो जाएगा.
वरना ऐसा कहां होता है. इतनी बड़ी दुनिया में ऐसी कितनी ही जगहें हैं, जहां स्त्रियां बिना किसी डर, संकोच और भय के अपनी बात कह सकें. उन्हें इस बात की फिक्र न हो कि कोई उन्हें जज कर रहा है. कोई उन पर फब्तियां कस रहा है. कोई उनका मजाक उड़ा रहा है. कोई उन्हें स्टॉक कर रहा है. कोई उन्हें सिर्फ इसलिए रेप करने और एसिड डालने की धमकियां दे रहा है क्योंकि उस स्त्री की बात उसे पसंद नहीं आई.
coto के पीछे भी है ऐसी ही एक कहानी
अपर्णा बताती हैं कि उनके सहयोगी तरुण कटियाल की पत्नी मोनिशा सिंह कटियाल को कोई व्हॉट्सएप पर स्टॉक कर रहा था. वो खुद एक जानी-मानी मीडिया पर्सनैलिटी और पुलिस ऑफिसर की बेटी हैं, लेकिन ऑनलाइन अब्यूज से वह खुद भी नहीं बच सकीं. वह कहती हैं कि पुलिस-कानून अपनी जगह है, लेकिन सच तो ये है कि ऐसी स्थितियों में पुलिस से भी ज्यादा मदद नहीं मिलती. मानसिक तनाव और अवसाद अकेले ही झेलना पड़ता है. वह कहती हैं, “ऑनलाइन स्पेस एक ऐसा रावण है, जो किसी भी महिला को अपने शिकंजे में ले सकता है.”
जब तरुण और उनके दोस्तों ने मोनिशा से पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की बात कही तो वह बोलीं, “अगर हम पुलिस के पास चले भी जाते हैं तो पुलिस आखिर क्या कर लेगी.” इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था. लेकिन इस सवाल ने यह सोचने पर जरूर मजबूर कर दिया था कि महिलाओं के लिए सोशल मीडिया और ऑनलाइन स्पेस में एक सुरक्षित जगह होनी बहुत जरूरी है. यहीं से coto का आइडिया जन्मा.
कैसे काम करेगा coto
coto एक Web3 टेक्नोलॉजी सपोर्ट वाला एक सोशल मीडिया एप है, जो किसी भी स्मार्ट फोन में बाकी एप्स की तरह डाउनलोड किया जा सकता है. अगस्त के अंत तक एप लांच होने की संभावना है, जो शुरू में भारत, मिडिल ईस्ट और इंडोनेशिया में लांच होगा.
जेंडर आइडेंटिटी को सुनिश्चित करने के लिए अकाउंट बनाने से पहले किसी भी व्यक्ति को विभिन्न डॉक्यूमेंट्स जैसे आधार, पासपोर्ट या ड्राइविंग लाइसेंस आदि के जरिए यह साबित करना होगा कि फेक फीमेल आईडी के साथ कोई पुरुष तो स्पेस में नहीं घुस रहा.
coto के साथ एक खास बात यह है, जो इसे इस तरह के दूसरे प्लेटफॉर्म जैसे ‘हर सर्कल’, हर ट्राइब आदि से अलग बनाती है. इसे ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के साथ भी जोड़ा गया है, जिससे यह ज्यादा सुरक्षित होगा. साथ ही यूजर्स को यहां हरेक एक्शन के बाद रिवॉर्ड भी मिलेगा.
अपर्णा बताती हैं कि coto पूरी तरह मुफ्त है. कोई भी महिला यहां अपना अकाउंट बना सकती है. कोई डॉक्टर महिला स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं और सवालों पर बात कर सकती है. बाकी महिलाएं बिना शर्म, संकोच के अपने सवाल पूछ सकती हैं. कोई अपनी कविताएं और कहानियां साझा कर सकती है, कोई अपने चित्र पोस्ट कर सकती है, कोई बिजनेस के आइडिया बता सकती है. अपनी कम्युनिटी बना सकती है. कोई गाना गा सकती है, कोई फिल्म बना सकती है, कोई राजनीतिक बहस कर सकती है, कोई सामाजिक बदलाव की बात कर सकती है.
इसके अलावा आंत्रप्रेन्योर या अपना कोई छोटा घरेलू बिजनेस कर रही महिलाएं भी यहां एक मार्केट प्लेस बना सकती हैं. अपने प्रोडक्ट बेच सकती हैं. अपना कंज्यूमर नेटवर्क बना सकती हैं.
अपर्णा कहती हैं, “हर महिला यहां हर वो बात कर सकती है, जो वो कहीं और नहीं कर पाती.”
क्या कहती हैं इंटरनेशनल रिपोर्ट्स और आंकड़े
महिलाओं के लिए एक एक्सक्लूसिव स्पेस की जरूरत क्यों है, इसकी तसदीक ये सर्वे और रिपोर्ट्स कर रहे हैं.
प्लान इंटरनेशनल की साल 2020 की रिपोर्ट कहती है कि पूरी दुनिया में 60 फीसदी लड़कियां और महिलाएं ऑनलाइन अब्यूज का शिकार होती हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर पांचवी लड़की पुरुषों की गालियों, अश्लील टिप्पणियों और अभद्र व्यवहार की वजह से सोशल मीडिया से दूरी बना लेती है.
इस सूची में पहला नंबर फेसबुक का है, जहां साल 2020 में 39 फीसदी लड़कियों ने अब्यूज की शिकायत की. इंस्टाग्राम (23 फीसदी) व्हॉट्सऐप्प (14 फीसदी) स्नैपचैट (10 फीसदी) और ट्विटर (9 फीसदी) का नंबर उसके बाद आता है.
एकेडमिक जरनल ‘पॉलिसी एंड इंटरनेट’ की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में 18 से 24 वर्ष की 26 फीसदी लड़कियों ने साइबर स्टॉकिंग की शिकायत की. रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट और सोशल मीडिया के टेलीकम्युनिकेशन टूल का इस्तेमाल करके इन महिलाओं को स्टॉक किया गया.
ऑनलाइन अब्यूज, ट्रोलिंग और डर क्या होता है, यह हर वह लड़की और महिला जानती है, जिसने कभी भी ऑनलाइन स्पेस में पूरी निडरता और ईमानदारी से अपनी बात कहने की कोशिश की है.
इस मिसोजिनी की एक बानगी यूनिवर्सिटी ऑफ मिसूरी-कोलंबिया की रिपोर्ट से मिलती है. इस रिपोर्ट में 40,000 से ज्यादा ऑनलाइन ब्लॉग्स का अध्ययन किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिखे ब्लॉग्स और आर्टिकल की ज्यादा तीखी आलोचना होती है. यह आलोचना सिर्फ उनकी लिखी बातों की नहीं होती. टिप्पणियों में बड़ी संख्या सेक्सुअली वॉयलेंट टिप्पणियों की भी है. यूनेस्को ने 2018 में ऑनलाइन अब्यूज पर अपनी एक रिपोर्ट में इस तथ्य को शामिल किया कि महिलाओं की बायलाइन वाले लेखों पर तीखी और अभद्र आलोचना का अनुपात पुरुषों के लिखे लेखों के मुकाबले 56 फीसदी ज्यादा है.
कहानी अपर्णा अचरेकर की
1977 में मुंबई के खार में एक उच्च-मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी अपर्णा इस देश की तमाम महिलाओं के मुकाबले काफी प्रिवेलेज्ड रही हैं. पढ़ाई में हमेशा से अव्वल थीं. स्कूल में हमेशा क्लास में फर्स्ट आईं, मुंबई यूनिवर्सिटी से बायोटेक्नोलॉजी और माइक्रो बॉयलॉजी की पढ़ाई की. इतने साल साइंस पढ़ने के बाद अपनी स्ट्रीम बदल ली और ई बिजनेस, कम्युनिकेशन और मीडिया स्टडीज में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. देश के टॉप मीडिया संस्थानों में लीडरशिप पदों पर रहीं. टाइम्स ऑफ इंडिया में 7 साल काम किया. जी5 के डिजिटल कॉन्टेंट को हेड किया, जी डिजिटल बिजनेस की कोर टीम का हिस्सा रहीं. बिजनेस की दुनिया की दिग्गज हस्तियों के इंटरव्यू किए.
अपर्णा समाज के जिस तबके से आती हैं, कॅरियर में उन्होंने जो मुकाम पाया है और जिस तरह अपनी काबिलियत और लीडरशिप को साबित किया है, कोई कह सकता है कि अपर्णा को भला क्या डर. वो तो कहीं भी खुलकर नि:संकोच अपनी बात कह ही सकती हैं. फिर चाहे वह घर का ड्रॉइंग रूम हो या फिर इंटरनेट स्पेस.
लेकिन ये सच नहीं है. अपर्णा कहती हैं, “मुझे कभी ऑनलाइन ट्रोलिंग का शिकार तो नहीं होना पड़ा, लेकिन मेरा दिल जानता है कि कितनी बार मैंने सच बोलने से खुद को रोका है. आज भी इतनी जिंदगी जीने और काम करने के बाद भी पब्लिक स्पेस में बोलने में थोड़ा संकोच होता है. डर लगता है कि पता नहीं कौन इस पर कैसे रिएक्ट करेगा. कौन क्या सोचेगा. ये सच है कि पब्लिक स्पेस में अपनी निजी राय व्यक्त करने में मुझे आज भी थोड़ा संकोच होता है. औरतों के अवचेतन में हमेशा इस जजमेंट का डर रहता ही है और पब्लिक स्पेस में तो और भी ज्यादा.”
अपर्णा कहती हैं, “अपने राजनीतिक विचार व्यक्त करने में तो मुझे हमेशा ही संकोच होता रहा है. कई बार कुछ बातों और घटनाओं पर बहुत गुस्सा भी आया, लेकिन मैंने अपने गुस्से को जाहिर नहीं किया.”
भारत में इंटरनेट यूजर्स का जेंडर अनुपात
भारत में इस वक्त इंटरनेट यूजर्स का जेंडर अनुपात बहुत निराशाजनक है. 73 फीसदी मर्द और सिर्फ 27 फीसदी महिलाएं ऑनलाइन स्पेस में कंटेंट कंज्यूम कर रहे हैं. लेकिन वो 27 फीसदी औरतें भी बोल नहीं रही हैं. वो किसी तरह की सार्वजनिक बहस में हिस्सेदारी नहीं कर रही.
हाल ही में फेसबुक की मदर कंपनी मेटा ने अपनी इंटर्नल रिपोर्ट में कहा है कि भारत में महिलाएं सुरक्षा कारणों से तेजी से फेसबुक से दूरी बना रही हैं. पिछले एक साल में फेसबुक इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या घटी है. रॉयटर्स में छपी इस रिपोर्ट में आंकड़ों का खुलासा तो नहीं किया गया है कि लेकिन कहा है कि भारत में 75 फीसदी फेसबुक यूजर पुरुष हैं.
कुछ साल पहले न्यूयॉर्क टाइम्स और द गार्डियन में रिपोर्ट छपी थी कि ऑनलाइन कंटेंट कंज्यूमर्स में पुरुष-महिला का अनुपात 70:30 का है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने आर्टिकल में लिखा, “मुख्यधारा मीडिया की बड़ी चिंता यह है कि वे अपने महिला पाठकों की संख्या में कैसे इजाफा करें. इतना ही नहीं, उन्हें पब्लिक पोस्ट पर कमेंट करने, बहस में हिस्सेदारी करने के लिए कैसे प्रोत्साहित करें”
राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट है कि पिछले साल 2021 में 31,000 महिलाओं ने ऑनलाइन अब्यूज की शिकायत दर्ज की है.
कैसा होता है वह स्पेस, जहां सिर्फ महिलाएं हों
ओपेन स्पेस में औरतों के साथ ट्रोलिंग, अब्यूज और हैरेसमेंट है. लेकिन बंद, सुरक्षित और सिर्फ औरतों वाली जगह कैसी है?
एक ईरानी फिल्म है- ‘तेहरान टैबू.’ उस फिल्म में बेहद रूढि़वादी, सामंती परिवार की औरतें मर्दों की मौजूदगी में हमेशा चुप रहती हैं, सिर ढंकती हैं, आंखें नीची रखती हैं और सिर झुकाकर काम करती हैं. लेकिन जब वो औरतों के समूह में होती हैं तो सिर से दुपट्टा उतर जाता है, स्कर्ट उठकर जांघों तक पहुंच जाती है. वो पैर फैलाकर बैठती हैं, ठहाके लगाकर हंसती हैं, वाइन पीती हैं और सेक्स के बारे में बात करती हैं. दो अलग दुनियाओं में उनके दो बिलकुल अलग रूप हैं. मर्दों की जजमेंटल, नैतिकवादी, फैसलाकुन दुनिया में और अपनी आजाद दुनिया में, जहां कोई उनके चरित्र का बहीखाता लेकर नहीं बैठा.
अपर्णा हंसकर कहती हैं, “हां, सिर्फ औरतों वाला स्पेस कुछ ऐसा ही होगा.”
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