अशोक कुमार पुण्यतिथि: हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार, जिनका रिकॉर्ड शाहरुख और सलमान भी नहीं तोड़ पाए
अशोक कुमार का 77 साल लंबा फिल्मी कॅरियर रहा, जिसमें उन्होंने तकरीबन ढाई सौ फिल्मों में काम किया.
आज हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार की पुण्यतिथि है. हिंदी सिनेमा से जुड़ा एक ऐसा शख्स, जिसके आसपास का माहौल उनकी पहली सुपरहिट फिल्म के एंटी-हीरो की तरह एंटी-सिनेमा था. घर में फिल्में देखने की इजातत नहीं थी क्योंकि फिल्मों को बुरा और बिगाड़ने वाला माना जाता था. जवान हुआ तो कोई उसे अपनी बेटी देने को राजी न हुआ क्योंकि लोगों का मानना था कि फिल्मों में काम करने वाले सभ्य-संस्कारी नहीं होते. एक ऐसा सुपरस्टार, जो कभी सुपरस्टार नहीं बनना चाहता था. वो तो दरअसल जर्मनी जाकर इंजीनियर बनना चाहता था. पिता चाहते थे कि वो वकील बने.
लेकिन जब किस्मत किसी को सितारा बनाने पर आमादा हो जाए तो कोई क्या करे. उन्होंने न सिर्फ फिल्मों में काम किया, बल्कि ऐसी कामयाबी और शोहरत की बुलंदियां देखी, जो हिंदी सिनेमा के लिए नई बात थीं.
हम बात कर रहे हैं अशोक कुमार की.
सदी के महान अभिनेता अशोक कुमार. हिंदी सिनेमा का पहला अभिनेता, जो स्क्रीन पर अभिनय नहीं करता था, फिर भी तमाम किरदारों में ऐसे ढल जाता मानो वो अशोक कुमार नहीं, पर्दे पर दिख रहा चरित्र ही है. अशोक कुमार का 77 साल लंबा फिल्मी कॅरियर रहा, जिसमें उन्होंने तकरीबन ढाई सौ फिल्मों में काम किया. जबकि पहली ही फिल्म के लिए अशोक कुमार को राजी करने में बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु कुमार को काफी पापड़ बेलने पड़े थे.
लॉ की परीक्षा में फेल होकर मुंबई जा पहुंचे
अशोक कुमार की इकलौती बड़ी बहन सती देवी का विवाह जिस संस्कारी शख्स से हुआ था, विवाह के बाद वो बंबई जा बसे और हिंदी सिनेमा में काम करने लगे. नाम था शंखधर मुखर्जी. वही, जिन्होंने बाद में फिल्मिस्तान स्टूडियो बनाया. जो सदी के महान संगीतकार मदन मोहन के पिता थे.
अशोक कुमार के पिता कुंजीलाल गांगुली चाहते थे कि अशोक कानून की पढ़ाई करें. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीएससी करने के बाद वो कोलकाता चले गए लॉ पढ़ने, लेकिन पहली ही एग्जाम में फेल हो गए. पिता की डांट से बचने के लिए जा पहुंचे बड़ी बहन के पास बंबई.
खंडवा से बंबई पिता का फोन पहुंचा, तुरंत वापस आओ. बहन ने पिता को समझाया, थोड़े दिनों की बात है. वो दोबारा एग्जाम देने जाएगा. तब तक यहीं रहने दीजिए.
शंखधर मुखर्जी तब बॉम्बे टॉकीज में सीनियर पद पर हुआ करते थे. उन्होंने अशोक कुमार को टॉकीज में लैब असिस्टेंट लगवा दिया ताकि वो कोलकाता लौटने से पहले चार पैसे कमा सकें. वहीं हिमांशु राय की नजर उन पर पड़ी. उन्हें लगा कि ये लड़का तो हीरो बन सकता है, लेकिन अशोक कुमार पल्ला झाड़कर निकल लिए. पिता का बड़ा खौफ था.
बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘जीवन नैया’ तब बन ही रही थी. लेकिन तभी एक हादसा हो गया. हीरो का नज्म-उल-हसन हिमांशु राय की पत्नी और फिल्म की हिरोइन देविका रानी को लेकर फरार हो गया. फिल्म रुक गई. कुछ दिनों बाद देविका रानी तो लौट आईं, लेकिन नज्म-उल-हसन फरार ही रहा. हिमांशु ने पत्नी से तो कुछ नहीं कहा. सीधे लैब में काम कर रहे अशोक कुमार के पास पहुंचे और बोले, “फिल्म बन रही है. हीरो तुम हो.”
अशोक सकपका गए. दो महीने बाद उन्हें कलकत्ते वापस जाना था लॉ की परीक्षा देने. उनका तो ये सोचकर दिल बैठा जा रहा था कि पिता को पता चला तो कयामत ही आ जाएगी. लेकिन हिमांशु राय अशोक कुमार को हीरो बनाने की ठान चुके थे. उनके बहन-बहनोई ने किसी तरह पिता को समझाया कि बस एक फिल्म की बात है. आपका लड़का बनेगा तो सफल बैरिस्टर ही.
फिलहाल 1936 में फिल्म ‘जीवन-नैया’ रिलीज हुई और सुपरहिट रही. इस फिल्म के लिए अशोक कुमार ने वो गीत भी गाया था- “कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा.” संगीत था सरस्वती देवी का, जो हिंदी सिनेमा की पहली महिला संगीतकार थीं.
पहली ही फिल्म ने अशोक कुमार को इतनी शोहरत, पैसा और नाम दे दिया कि फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पिता को यह स्वीकार करने में थोड़ा वक्त लगा कि लड़का अब पूरी तरह फिल्मों का ही हो चुका है. बाद में उनके दोनों छोटे भाई, उनसे उम्र में 16 साल छोटे अनूप कुमार और किशोर कुमार भी फिल्मों में आ गए और बहुत सफल रहे.
हिंदी सिनेमा की पहली ब्लॉकबस्टर फिल्म
1943 का साल था. दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था. उसी साल रिलीज हुई थी बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘किस्मत’. निर्देशक थे ज्ञान मुखर्जी, हीरोइन मुमताज शांति और हीरो अशोक कुमार. यह हिंदी सिनेमा की पहली ब्लॉकबस्टर फिल्म थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. फिल्म तीन साल तक सिनेमा हॉल में लगी रही.
तब फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर एक करोड़ रुपए की कमाई की. आज के लिहाज से मानें तो तकरीबन 700 करोड़ रुपए. इतने पैसे तो अब तक आमिर और सलमान की सबसे सुपरहिट फिल्मों ने भी नहीं कमाए हैं. किस्मत आज भी हिंदी सिनेमा का ऐसा रिकॉर्ड है, जिसे कोई तोड़ नहीं सका.
फिल्म ने रातोंरात अशोक कुमार को सुपरस्टार बना दिया. स्क्रिप्ट, कहानी और कंटेंट के लिहाज से यह एक ट्रेंड सेटर फिल्म थी. 60-70 के दशक का हिंदी सिनेमा का वो जाना-माना फॉर्मूला जिसमें भाई बचपन में बिछड़ जाते हैं और जवानी में मिलते हैं, जिसने बाद में ‘यादों की बारात’, ‘अमर अकबर एंथोनी’ जैसी हिट यादगार फिल्में दीं, उसकी बुनियाद दरअसल फिल्म किस्मत ने ही रखी थी.
फिल्म का एक गाना “दूर हटो ऐ दुनियावालों, हिन्दुस्तान हमारा है” काफी पॉपुलर हुआ था. ठीक छह महीने पहले महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत की थी, जिसकी झलक लोगों को इस गाने में दिखाई दी. फिल्म की अपार सफलता की एक बड़ी वजह ये गाना भी था.
अशोक कुमार के ब्याह का किस्सा
कई साल पहले दूरदर्शन ने उनके जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी. इस फिल्म में अशोक कुमार अपने ब्याह का किस्सा कुछ यूं बयां करते हैं. यह जानकर कि लड़का फिल्मों में काम करता है, कोई उनके साथ अपनी लड़की ब्याहने को तैयार नहीं होता था. तभी एक दिन अचानक पिता का खंडवा से तार आया, “जल्दी आ जाओ. इमर्जेंसी है.” अशोक कुमार तुरंत मुंबई-हावड़ा मेल में बैठ गए. जब ट्रेन खंडवा पहुंची और वो ट्रेन से उतरने को थे, तभी पिता ट्रेन में आए और बोले, “उतरने की जरूरत नहीं. बैठे रहो. हम कलकत्ते जा रहे हैं.” ट्रेन के अगले डिब्बे में उनकी भाभी भी थीं.
पूरे रास्ते किसी ने उन्हें न बताया कि ये अचानक कलकत्ते जाने की ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी. वहां पहुंचकर पता चला कि उन्हें लड़की दिखाने लाया गया है. शोभा बंदोपाध्याय नाम था उनका. उनके परिवार वालों को लड़के के सिनेमा में काम करने से गुरेज नहीं था.
शोभा ने हां कर दी और दोनों का ब्याह हो गया. और इस तरह अशोक के सरकारी नौकरी में जाने का पिता का रहा-सहा सपना भी चकनाचूर हो गया.
हुआ ये था कि अशोक के ब्याह के लिए परेशान पिता को लगा कि जब तक लड़का फिल्मों में रहेगा, उसे लड़की मिलने से रही. सो वो जा पहुंचे रविशंकर शुक्ल के पास और उनसे अपने बेटे को सरकारी नौकरी देने की गुजारिश की. उन्होंने दो पोस्ट ऑफर की थीं. या तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में चैयरमैन बन जाओ या पोस्टल इंस्पेक्टर. लेकिन फिर ब्याह हो गया और सरकारी नौकरी बाट ही जोहती रह गई.
होम्योपैथी के बिना डिग्री वाले डॉक्टर और निरोग धाम के लेखक
अशोक कुमार हिंदी सिनेमा के संभवत: इकलौते ऐसे सितारे थे, जो सिनेमा के साथ-साथ होम्योपैथी के भी मास्टर हुआ करते थे. जिन लोगों ने अपने बचपन में इंदौर से निकलने वाले हेल्थ-मैगजीन निरोगधाम देखी है, उन्हें याद होगा, पत्रिका के आखिरी पन्ने पर छपने वाला दादामुनि का लेख. हिंदी सिनेमा के यह सुपरस्टार उस पन्ने पर होम्योपैथी की दवाइयों से लेकर बीमारियों के इलाज के घरेलू नुस्खों और स्वस्थ सतुंलित जीवन-शैली पर बहुत महत्वपूर्ण बातें बताया करते थे. 90 के दशक तक यह पत्रिका काफी पॉपुलर थी और उत्तर भारत के घर-घर में देखी जा सकती थी.
इतना ही नहीं, बाद के दिनों में जब उन्होंने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया तो घर पर ही अपना होम्योपैथी का क्लिनिक चलाने लगे. मीना कुमारी से लेकर मनोज कुमार तक कई फिल्मी सितारों का उन्होंने इलाज किया. उनके क्लिनिक में सामान्य लोगों की भी भीड़ जुटती, जिसमें कई बार वो जरूरतमंदों का मुफ्त में इलाज करते थे.
तीन कमरों वाला घर और मिडिल क्लास जिंदगी
फिल्मों में अशोक कुमार ने इतना पैसा और नाम कमाया था कि वो चाहते तो अपने समय के बाकी लोगों की तरह बहुत भव्य और ऐशो-आराम वाली जिंदगी जी सकते थे. लेकिन मुंबई चेंबूर इलाके में उन्होंने तीन कमरों का जो पहला घर खरीदा था, उसी घर से वो दुनिया से गए. बहुत ऐशो-आराम और भव्य जीवन शैली की चाह कभी नहीं रखी. उनकी पत्नी शोभा को चेंबूर की सब्जी मंडी और किराने की दुकानों में कभी भी देखा जा सकता था. बच्चे बस से स्कूल जाते थे. कोई विदेश पढ़ने नहीं गया.
देव आनंद से लेकर मधुबाला तक
अपने जीवन के आखिरी दिनों में जब वो अकेले और काफी बीमार रहने लगे थे, रोज शाम को हृषिकेश मुखर्जी का फोन आता था. वो कितने भी व्यस्त हों, दिन में एक बार उनका हालचाल लेना नहीं भूलते थे.
आखिर हृषिकेश मुखर्जी को फिल्मों में लाने वाले अशोक ही थे. देव आनंद को फिल्म ‘बाजी’ में पहला ब्रेक अशोक कुमार ने दिया था. मधुबाला को फिल्मों में लाने वाले वही थे.
ऐसे कम ही लोग हुए हैं हिंदी सिनेमा में, जो अपने स्टारडम को लेकर बिलकुल असुरक्षित नहीं थे. वो नए लोगों को मौका देने, मेंटर करने, आगे बढ़ाने में कभी हिचके नहीं. देव आनंद हिंदी फिल्मों के अगले सुपरस्टार हुए. मधुबाला आज भी कल्ट हैं. हृषिकेश मुखर्जी के रूप में हिंदी सिनेमा को जो मिला, उसके लिए पूरा देश उनका ऋणी है.
देश के पहले राष्ट्रपति अशोक कुमार के रूममेट थे
फिल्मों में जाने से पहले जब अशोक कुमार कोलकाता यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई कर रहे थे तो कॉलेज के हॉस्टल में उनके कमरे में दो और लड़के रहते थे- राजेंद्र प्रसाद और रविशंकर शुक्ल. ये वही राजेंद्र प्रसाद थे, जो आगे चलकर देश के पहले राष्ट्रपति बने और रविशंकर शुक्ल मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री.
अशोक कुमार की मुहब्बत के चर्चे
मशहूर कहानीकार सादत हसन मंटो ने अपने संस्मरण में अशोक कुमार और देविका रानी का जिक्र किया है. वो लिखते हैं कि देविका रानी अशोक कुमार से प्रेम करने लगी थीं. उन्होंने एक दिन अपने प्रेम का इजहार भी कर दिया, लेकिन अशोक ये कहकर निकल गए कि उनका रिश्ता सिर्फ प्रोफेशनल है. देविका रानी ने बात को संभालने के लिए कह दिया कि वो तो मजाक कर रही थीं.
अशोक कुमार अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि ये सलाह उन्हें हिमांशु राय ने दी थी, जब वो बड़े स्टार बन गए. उन्होंने कहा था कि दिन में चाहे तुम जहां रहा, जितने भी व्यस्त रहो, शाम होते ही समय पर घर पहुंच जाना. अशोक कुमार आजीवन साढ़े छह बजते ही घर में होते थे, अपनी पत्नी और बच्चों के पास.
हिंदी सिनेमा का पहला रैपर
याद है फिल्म 1968 में बनी फिल्म ‘आशीर्वाद’ का वो गाना “रेलगाड़ी-रेलगाड़ी, छुक-छुक-छुक-छुक रेलगाड़ी.” वो हिंदी सिनेमा का पहला रैप सांग था और पहले रैपर थे अशोक कुमार. गाना जिस छोटी बच्ची पर फिल्माया गया था, वो कोई और नहीं, बल्कि मशहूर अभिनेत्री सारिका थीं.