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आयुष्मान भारत: सुपरबग्स से लड़ाई देश को देगी इस बीमारी से आजादी

आयुष्मान भारत: सुपरबग्स से लड़ाई देश को देगी इस बीमारी से आजादी

Thursday August 15, 2019 , 7 min Read

दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले सुपरबग्स की वजह से ज्यादा मौतें भारत में हो रही हैं। पिछले साल सुपरबग की वजह से भारत में मृत्यु दर 13 प्रतिशत थी जो बड़ी चिंता का विषय है। भारत सुपरबग से संबंधित रोगों की संख्या और मृत्यु दर के बहुत अधिक केंद्र में है, फिर भी इस देश की राजनीति में इसकी चर्चा कम ही होती है। ये काफी दुर्लभ है कि हमारे देश के वरिष्ठ नेता इस मुद्दे पर कोई स्ट्रॉन्ग ओपिनियन नहीं देते हैं और न ही कोई आर्टिकल लिखते हैं। 


सच्चाई यह है कि सुपरबग्स के कारण होने वाले ड्रग रेजिस्टेंट इन्फेक्शन हमारे देश में व्याप्त हैं, और हम बहुत तेजी से इसके खिलाफ लड़ाई हार रहे हैं। बतौर कम्युनिटी, हमने एंटीबायोटिक्स को बिना प्रिसक्रिप्शन के अधिक मात्रा में उपयोग करके उनका दुरुपयोग किया है। प्रोटीन फूड की जगह एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करते हैं और बाद में फार्मास्यूटिकल वास्ट को पानी में जाने के लिए छोड़ देते हैं।


इसके परिणामस्वरूप ऐसे बग्स का उदय होता है जिस पर अधिकांश फ्रंटलाइन एंटीबायोटिक काम नहीं करती। मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंस और पैन-ड्रग रेजिस्टेंस (बाजार में उपलब्ध सभी एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी) भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं।



आज़ादी


इस जंग के लिए बड़े चेहरे की जरूरत


दुनिया में लगभग दस लाख लोग सुपरबग्स की वजह से मौत के शिकार होते हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण हिस्सा भारत का है। अब, एंटीबायोटिक समस्या केवल "वन हेल्थ" दृष्टिकोण का उपयोग करके ठीक की जा सकती है जिसके तहत जानवरों, पर्यावरण और मानव-उपयोग को तालमेल में लाना होगा ताकि तीनों पहलुओं में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग कम हो।


अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए, तो दुनिया 2050 तक एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) से 10 मिलियन लोगों को खो देगी, जिसमें एशिया में ये दुखद आंकड़ें सबसे ज्यादा होंगे। 


आलसी मानसिकता वाले लोगों को लगता है कि यह मुद्दा बहुत गूढ़ है और ऐसे ही गुजर जाएगा। लेकिन सच्चाई कुछ और ही अशुभ है। विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा किए गए क्लीनिकल पैथोजेनिक स्ट्रैन्स के विभिन्न अनुमानों से पता चलता है कि शहरों में, फ्लोरोक्विनोलोन, कार्बेपेनीम जैसे आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक्स का रेजिस्टेंस वास्तव में बहुत अधिक है, यह 60 और 90 प्रतिशत होता है। ये चौंकाने वाले आंकड़े हैं और रोक-थाम करने के संकेत दे रहे हैं।


डेटा बताता है कि डॉक्टरों द्वारा दिए गए अधिकांश एंटीबायोटिक्स और बिना प्रिस्क्रिप्शन के लोगों द्वारा लिए गए एंटीबायोटिक्स अप्रभावी (इनइफेक्टिव) होते हैं। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि अधिकांश एंटीबायोटिक्स भारत में काउंटर (ओटीसी) पर उपलब्ध हैं, भले ही वे शेड्यूल एच के तहत हों, जिन्हें निश्चित रूप से एक वैलिड प्रिस्क्रिप्शन की आवश्यकता होती है।


यह अत्यधिक संभावना है कि इनइफेक्टिव एंटीबायोटिक्स लेने वाले कई रोगी उन दवाओं से नहीं बल्कि उनकी जन्मजात प्रतिरक्षा क्षमता से ठीक होते हैं। ड्रग रेजिस्टेंट इन्फेक्शन से सबसे अधिक शिशुओं, मधुमेह पीड़ित, पोस्ट-कीमोथेरेपी पेशेंट और बुजुर्ग पेशेंट पीड़ित होते हैं। 


इसका मतलब है कि जिस ओर मृत्यु दर इशारा कर रही है दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया का आक्रमण उससे कहीं अधिक हो सकता है। कई स्वास्थ्य पेशेवरों का मानना है कि हम दुर्भाग्य से, एक "रॉक हडसन" मूमेंट की प्रतीक्षा कर रहे हैं अर्थात जब किसी सेलिब्रिटी या किसी फेमस पर्सनालिटी की मृत्यु इस समस्या के चलते होगी तब लोगों का ध्यान इस ओर जाएगा। याद होगा प्रसिद्ध अमेरिकी फिल्म स्टार रॉक हडसन की मृत्यु एड्स की वजह से हुई थी, उनकी मृत्यु ने न केवल लोगों की एड्स के प्रति जागरुकता बढ़ाई बल्कि इसके इलाज पर काम कर रहे लोगों को भी प्रेरित किया है।


स्थिति को आंशिक रूप से कम करने के लिए उठाएं कदम


सबसे पहले तो एंटीबायोटिक दवाओं के लिए शेड्यूल एच को कठोरता से लागू करना चाहिए जो कि ओटीसी पर इसकी बिक्री को रोकता है। शेड्यूल एच ड्रग एक्ट के तहत दवाओं को कोई भी रिटेलर डॉक्टर की बिना पर्ची के नहीं बेच सकता है।


भारत में पोल्ट्री (poultry) में मानव द्वारा उपयोग किए जाने वाले एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगे या नियम बनाना चाहिए जहां मानव और पशु एंटीबायोटिक्स अलग-अलग हों, इस प्रकार क्रॉस-रेजिस्टेंस की संभावना को कम किया जाता है। लेकिन उद्योग की मजबूरियों के कारण यह हासिल करना मुश्किल है।


एक सकारात्मक कदम उठाते हुए मौजूदा सरकार ने पोल्ट्री उद्योग में एंटीबायोटिक्स कोलिस्टिन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। लगभग 10-20 प्रतिशत की रेजिस्टेंट रेट्स के साथ कोलिस्टिन लास्ट रिजॉर्ट ह्युमन एंटीबायोटिक्स है।


सुपरबग्स के कारण भारत में मृत्यु का प्राथमिक कारण हॉस्पिटल एक्वायर्ड इन्फेक्शन (एचएआई) नामक डोमेन में हैं। जो लोग अन्य बीमारियों या किसी सर्जिकल संबंधी प्रक्रियाओं के लिए इलाज के लिए आते हैं, वे अस्पताल के वातावरण में तैरते हुए सुपरबग से संक्रमित हो सकते हैं। क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कॉमप्रोमाइज्ड होती है और ड्रग रेजिस्टेंट बैक्टीरिया को संभालने के लिए पर्याप्त मौजूदा एंटीबायोटिक्स अच्छे नहीं हैं। 


यह कुछ हद तक मैकाब्रे की कहावत की तरह है कि "ऑपरेशन सफल रहा, लेकिन मरीज की मौत हो गई"। अस्पताल के वातावरण को स्टरलाइज करने के लिए नई तकनीक और प्रक्रियाओं को तुरंत पेश करने की आवश्यकता है। रोकथाम इलाज की तुलना में बहुत बेहतर है, और एक समाज के रूप में हमारे घरों, समुदायों और अस्पतालों में स्वच्छ वातावरण बनाए रखने के लिए हमें बहुत कुछ करना है।


समाज के सबसे कमजोर सेक्शन में से एक बच्चे हैं, और नवजातों में संक्रमण व मौतें बढ़ रही हैं। यह सर्वविदित है कि जो शिशु ज्यादा एंटीबायोटिक दवाओं से गुजरते हैं कुछ हद तक उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कम हो जाती है, जिसके चलते उन्हें पूरे जीवन में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 


डायग्नोस्टिक और नई थैरेपी दोनों के लिए तत्काल निवेश की आवश्यकता है। हमारे पास सबसे बड़ी बीमारी का बोझ है और सरकार को नए डायग्नोस्टिक टूल्स के विकास के लिए अपनी फंडिंग को आगे बढ़ाना है ताकि संक्रमण और अच्छे चिकित्सीय समाधानों की खोज और अच्छी एंटीबायोटिक दवाओं के विकास सहित कई चीजों का त्वरित और सटीक निदान किया जा सके।


इनोवेशन के लिए रिस्क के अलावा काफी लागत लगती है लेकिन इसके परिणामस्वरूप जो फल मिलेगा वह न केवल भारत बल्कि दुनिया को बड़े पैमाने पर मदद करेगा। भारतीय कंपनियां इनोवेशन बैरियर को तोड़ने और संक्रमणों को रोकने, उनका पता लगाने और उनका इलाज करने के लिए समाधान के साथ तैयार हैं। इन कंपनियों को हमारी सरकार और स्थानीय स्टार्टअप इकोसिस्टम द्वारा पोषित करने की आवश्यकता है, जिसमें निवेशक भी शामिल हैं। 


हमारे वाटर ग्राउंड और फूड चैन में एंटीबायोटिक फार्मास्यूटिकल वास्ट मटेरियल की डंपिंग को रोकने के लिए सख्त कानून पास किए जाने चाहिए। जो कंपनी ऐसे कानूनों को तोड़ें उनके लिए भारी दंड की आवश्यकता है। भारत में सुपरबग संकट से सीधे तौर पर एंटीबायोटिक दवाओं को डंप करने का पर्यावरणीय प्रभाव कैसे दिखाई दे रहा है, इसके बारे में बहुत सारे केस स्टडी हैं।


आशा की किरण


हालांकि यह सब इतना भी निराशाजनक नहीं हो सकता है क्योंकि भारत सरकार धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से सुपरबग्स और ड्रग रेजिस्टेंस मुद्दों की कठोर वास्तविकताओं के प्रति जाग रही है। वर्तमान में, इसमें एंटीबायोटिक दवाओं के लगभग रैंडम उपयोग को सुव्यवस्थित करने के लिए सख्त नीति और उपचार दिशानिर्देश दिए गए हैं।


समितियों की स्थापना की गई है जिन्होंने नैदानिक डेटा सामंजस्य (clinical data harmonisation) के मुद्दों को गंभीरता से लिया है, जो भारत में अधिक नैदानिक परीक्षणों का मार्ग प्रशस्त करेगा।


जी 20 राष्ट्र ने सुपरबग्स को अपनी प्राथमिकता में रखा है और उम्मीद है कि फंड और पहल जल्द ही बाद में एक नई सुबह की शुरुआत करेंगे। जहां सुपरबग्स का खात्मा हो सकेगा। मुझे यह भी उम्मीद है कि हमारे माननीय प्रधान मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों की रोकथाम, पता लगाने और उपचार को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे और हर साल लाखों लोगों को बचाएंगे।