राजस्थान पुलिस में पहली बार ट्रांसजेंडर कॉन्सटेबल को मिली नौकरी
संघर्ष से मिली सफलता...
राजस्थान की गंगा कुमारी को पुलिस की परीक्षा और बाकी सभी जरूरी टेस्ट पास करने के बाद भी नौकरी पाने में 3 साल लग गए। हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब जाकर कहीं उनको नियुक्ति मिली है।
हाई कोर्ट ने अब आदेश दिया कि पुलिस विभाग गंगा कुमारी को कांस्टेबल के रूप में नियुक्त करे। इसके बाद 24 वर्षीय गंगा कुमारी ने मंगलवार को पुलिस फोर्स जॉइन कर लिया।
गंगा को नौकरी के लिए 3 साल का इंतजार करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई तरह की प्रताड़नाएं झेलीं। उन्हें नियुक्ति भले ही मिल गई हो लेकिन इन तीन सालों के संघर्ष का हिसाब कौन देगा?
हमारा संविधान नागरिकों को कितने भी अधिकार दे दे लेकिन जब तक सिस्टम के लोग ईमानदार नहीं होंगे उन्हें सही से लागू नहीं किया जा सकेगा। संविधान देश के तृतीय लिंग यानी ट्रांसजेंडरों को बाकी दूसरे इंसानों की तरह सामान्य अधिकार प्रदान करता है और उन्हें ट्रांसजेंडर होने की वजह से नौकरी या स्कूलों में दाखिला न देना अधिकार का उल्लंघन मानता है। लेकिन राजस्थान की गंगा कुमारी को पुलिस की परीक्षा और बाकी सभी जरूरी टेस्ट पास करने के बाद भी नौकरी पाने में 3 साल लग गए। हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब जाकर कहीं उनको नियुक्ति मिली है।
गंगा कुमारी राजस्थान के जालौर जिले की रहने वाली हैं। उन्होंने जून 2013 में कांस्टेबल भर्ती परीक्षा दी थी। 2014 में उस भर्ती का परिणाम आया और उन्हें उसमें सफलता भी मिली। इसके बाद 2015 में इंटरव्यू और फिटनेस टेस्ट हुआ जिसमें उन्होंने बाजी मारी। लेकिन ट्रांसजेंडर होने की वजह से उन्हें पोस्टिंग नहीं दी जा रही थी जबकि उनके साथ के अन्य 207 अभ्यर्थियों को पोस्टिंग दी जा चुकी थी। इसके बाद उन्होंने पुलिस महकमे के आला अधिकारियों से लेकर हाई कोर्ट तक गुहार लगाई। हाई कोर्ट में उनके मामले की सुनवाई चल रही थी।
हाई कोर्ट ने अब आदेश दिया कि पुलिस विभाग गंगा कुमारी को कांस्टेबल के रूप में नियुक्त करे। इसके बाद 24 वर्षीय गंगा कुमारी ने मंगलवार को पुलिस फोर्स जॉइन कर लिया। जालौर जिले की गंगा कुमारी की कहानी बेहद संघर्षों से भरी है। वे जब 6 साल की थीं तभी उनके किन्नर होने का पता परिवार को चल गया था। हालांकि एक बात अच्छी हुई कि परिवार वालों ने उन्हें स्वीकार कर लिया। परिवार में 6 भाई-बहनों में सबसे छोटी गंगा की परवरिश भी उसी तरह से हुई जैसे बाकी की हुई। गंगा खुद भी कहती हैं कि मेरे माता-पिता ने खूब प्यार दिया और मैं जैसी हूं मुझे वैसे ही स्वीकार किया। उनके प्यार और अपनेपन की वजह से ही मैं पढ़ पाई।
लेकिन असली संघर्ष तो समाज और उस मानसिकता से था जो ट्रांसजेंडर को इंसानी अधिकार देने की बात ही नहीं करता। उन्होंने पास के ही एक कॉलेज से बीए किया और साथ ही प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगीं। वर्ष 2013 में 12 हजार पदों के लिए सरकार ने कॉन्स्टेबल भर्ती के लिए नोटिफिकेश जारी किया जिसका फॉर्म गंगा ने भी भरा। इसके बाद परीक्षा हुई और परीक्षा में प्रदेश के सभी जिलों में सवा लाख अभ्यार्थियों ने हिस्सा लिया था। इसमें से पुलिस ने 11,400 अभ्यार्थियों का कॉंस्टेबल पद के लिए चयन कर लिया था। जिसमें गंगा कुमारी का भी नाम था।
दुख की बात ये थी कि गंगा को नियुक्ति नहीं मिल पा रही थी। जब जांच शुरू हुई तो मालूम चला कि ट्रांसजेंडर होने की वजह से उनकी फाइल ऊपर भेज दी गई। जालौर के तत्कालीन एसपी ने आईजी जोधपुर जीएल शर्मा से नियुक्ति को लेकर राय मांगी थी। ऐसा मामला पहली बार आने पर आईजी ने तीन जुलाई, 2015 को फाइल पुलिस मुख्यालय भेज दी, लेकिन यहां पर भी पुलिस के अधिकारी कुछ निर्णय नहीं कर पाए। ऐसे में पुलिस मुख्यालय ने राय जानने के लिए फाइल गृह विभाग को भेजी। लेकिन इसे सिस्टम की संवेदनहीनता ही कहेंगे कि गृह विभाग में फाइल गए करीब 9 महिने गुजर लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो पाई।
इसके बाद उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया और तब जाकर उनके साथ न्याय हो पाया। ध्यान देने वाली बात है कि जालौर में गंगा कुमारी के साथ ही 208 अभ्यर्थी अंतिम रूप से नौकरी के लिए चयनित हुए थे। उसे छोड़कर सभी को नियुक्ति दी जा चुकी है। सभी अभ्यर्थियों को वर्ष 2015 में पोस्टिंग मिल चुकी है। गंगा को नौकरी के लिए 3 साल का इंतजार करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई तरह की प्रताड़नाएं झेलीं। उन्हें नियुक्ति भले ही मिल गई हो लेकिन इन तीन सालों के संघर्ष का हिसाब कौन देगा?
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