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गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए कविता ने थाम ली स्टीयरिंग, कर ली मुंबई की सड़कों से दोस्ती

गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए कविता ने थाम ली स्टीयरिंग, कर ली मुंबई की सड़कों से दोस्ती

Saturday April 09, 2016 , 5 min Read

यूँ तो महिलाओं का घर के साथ-साथ ऑफिस की भी ज़िम्मेदारी संभालना अब ऐसी बात नहीं रह गई है जिसकी चर्चा कि जाए. लेकिन ज़रूरत पड़ने पर कविता ने जिस पेशे को अपनाया, वो ना सिर्फ चर्चा का विषय बना बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा की कहानी भी बन गई है. एक ऐसी कहानी जो बुरी से बुरी परिस्थितियों का सामना करने और अपना स्वाभिमान ना खोने की सीख देती है.

मराठवाड़ा के सूखाग्रस्त इलाके नांदेड की रहनेवाली कविता शादी के बाद मुंबई आई तो इस बड़े शहर को अपनाने में उन्हें थोडा वक़्त लगा. इससे पहले कविता ने कभी अपने गांव से भी बाहर कदम नहीं रखा था. गृहस्थी की गाड़ी ठीक-ठाक चल रही थी लेकिन बेटे के जन्म के बाद घर के हालात बदलने लगे. बेटे के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण पति की ज़्यादातर कमाई अस्पताल का बिल भरने में ही खर्च हो जाता था. बिटिया की पढाई और घर का बाकी खर्च चलाने के लिए पैसे की चिंता सताने लगी. दसवीं तक पढ़ी कविता चाहती तो कोई छोटी-मोटी नौकरी कर लेती लेकिन बच्चे की हालत ऐसी नहीं थी कि उसे घर छोड़ कर वो आठ से दस घंटे की नौकरी कर लेती. दूसरा विलल्प था झाड़ू-पोछे का काम, जिसे कविता करना नहीं चाहती थी. ऐसे मुश्किल हालात में ऑटो ड्राईवर पति ने रिक्शा चलाने का सुझाव दिया. लेकिन मुंबई जैसे शहर मे रिक्शा चलाना, कविता के लिए एवरेस्ट फ़तह करने से कम नहीं था.


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कविता कहती हैं, 

"मैं कभी अपने गाँव से बाहर नहीं गई थी. मुझे साइकिल चलाना भी नहीं आता था. अपने गाँव के गलियों के रास्ते, मुझे ठीक से याद नहीं थे. आज मैं मुंबई की सड़कों पर बेधड़क ऑटो चलाती हूँ. घर के खर्च में पति का साथ देती हूँ. अपने दिव्यांग बेटे के इलाज की ज़िम्मेदारी है मेरे कन्धों पर. मैंने हालात से समझौता नहीं किया. बल्कि उसका डटकर सामना किया."

मुंबई से सटे ठाणे शहर के वर्तक नगर के आसपास के इलाके में सुबह-सुबह ही आपको कविता का ऑटो दिख जायेगा. सुबह 7 बजे से शाम के 5 बजे तक कविता मुसाफिरों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती हैं. कविता का घर भी इसी इलाके में है. दोपहर को कविता घर जाती हैं, बच्चों के साथ खाना खाती हैं और फिर ऑटो लेकर निकल पड़ती हैं. कविता को ऑटो चलाते लगभग एक साल हो गए हैं. अपने शुरुआती दिनों को याद कर कविता आज भी भावुक हो जाती हैं,

"इतने बड़े शहर में ऑटो-रिक्शा चलाने के खयाल से ही मुझे डर लगता था. लेकिन धीरे-धीरे मैंने खुद को तैयार किया. अपने भीतर के डर का सामना किया और 6 महीने में ही रिक्शा चलाना सीख लिया."


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कविता के सामने ऐसी कई मुश्किलें आई जो किसी की भी हिम्मत तोड़ सकती थी. कविता ने जब अपना फैसला पक्का कर लिया तब उनके पति उन्हें रिक्शा चलाना सिखाने लगे. लेकिन ये भी कुछ लोगों से देखा नहीं गया. यह तय है कि लीक से हटकर जब भी कोई काम करेगा, उसके पैर खींचने वालों की बड़ी तादाद होगी. कविता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. पति का ऑटो किराये का था और किसी ने जाकर ऑटो के मालिक के कान भर दिए. फिर क्या था मालिक ने ऑटो वापस ले लिया. फिर कविता के पति ने दूसरे मालिक से बात की लेकिन जैसे ही उसे इस बात का पता चला कि ऑटो का इस्तेमाल कविता के पति उसे सिखाने के लिए भी करते हैं, उसने भी अपना ऑटो वापस ले लिया. पर इस खींचतान में कविता का विश्वास और पक्का होता गया. स्वाभिमान से जीने और पति का साथ देने के लिए कविता ने मन ही मन खुद को तैयार कर लिया. उनके पति ने तीसरा ऑटो किराये पर लिया और इस बार कविता, सीखने में कामयाब रही. महज़ 6 महीने में ही कविता ने रिक्शा चलाना सीख लिया. लेकिन कविता की मुश्किलें अभी ख़त्म नहीं हुई थीं. उसकी असली परीक्षा तो अभी शुरू होनी बाकि थी..

कविता कहती हैं, 

"जब मै अपना ऑटो लेकर सड़कों पर निकली तो मैंने एक ऐसे पेशे में कदम रखा जिस पर अब तक सिर्फ पुरुषों का ही एकाधिपत्य था. ऐसे में कई बार मेरा मज़ाक भी उड़ाया जाता था. कुछ रिक्शा चालक कहते थे कि हमारे धंधे में औरतों की कोई जगह नहीं. ये हमारा हक छीन रही हैं. कुछ देखकर हँसते थे. कुछ ताने कसते थे. लेकिन कुछ मुसाफिर ऐसे भी मिले जिन्होंने शाबाशी दी. आशीर्वाद दिया और कहा. अच्छा काम कर रही हो."


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आज कविता घर के खर्च में पति का साथ देती हैं. कविता की बड़ी लड़की 8 साल की है और स्कूल जाती है. कविता के बाहर रहने पर वो छोटे भाई की देखभाल भी करती है. कविता समय निकालकर दोपहर में घर आ जाती हैं और बच्चों को थोड़ा समय देती हैं. ऐसे में बच्चों को मां का साथ भी मिल जाता है और वो छोटे बेटे का भी हालचाल जान लेती हैं. घर पर ना रहने पर कविता के पडोसी भी बच्चों की थोड़ी बहुत देखभाल कर लेते हैं. कविता को ऑटो चलाते एक साल हो गया है. पहले कविता के पास किराये का रिक्शा था लेकिन अभी उन्हें परमिट मिल गया है और थोड़े दिनों बाद रिक्शा उनका अपना हो जायेगा.

हौसले और आत्मविश्वास से भरी कविता की कहानी, सबके लिए एक मिसाल है. कविता ने हमें सीख दी कि बुरी से बुरी परिस्थितियों का भी सामना किया जा सकता है. बस ज़रूरी है की आप अपने विश्वास और हिम्मत को बनाए रखें. कविता की ज़िन्दगी एक सबक है उनके लिए जो बुरे वक़्त में गलत कदम उठा लेते हैं या टूट जाते हैं. आज कविता अपने परिवार के साथ खुश है और ऑटो के स्टीयरिंग के साथ-साथ वो अपनी गृहस्थी की गाड़ी भी बखूबी चला रही हैं.