Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में हर मुश्किल पार कर मरीज़ों तक पहुंचते हैं डॉक्टर अंसारी

नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में हर मुश्किल पार कर मरीज़ों तक पहुंचते हैं डॉक्टर अंसारी

Tuesday December 11, 2018 , 4 min Read

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पोटाली, ब्लॉक कुंआकोण्डा, जिला दंतेवाड़ा में पोस्टेड सहायक चिकित्सा अधिकारी डॉ अतिक अहमद अंसारी दंतेवाड़ा के इस सुकमा सीमावर्ती क्षेत्र के स्थानिय लोगों और सुरक्षा बलों के जवानों के लिए डॉ के रूप में देवता हैं। 

डॉक्टर अंसारी

डॉक्टर अंसारी


डॉ अंसारी बताते हैं कि इस इलाके में स्वास्थय हालातों में सुधार के लिए सीआरपीएफ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इनकी उपस्थिति की वजह से सड़कें बनीं जिससे आज एंबुलेंस ज्यादातर गांवों में पहुंच जाती है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर का नाम आते ही सबसे पहले जो तस्वीर दुनिया के सामने उभर कर आती है, वह है, हथियार लहराते नक्सली, सड़क, स्वास्थय और जनसुविधाओं की बदहाली। ऐसे इलाके में नौकरी करने वाले दो ही तरह के लोग होते हैं, एक जो यहां मजबूरी में होते हैं और दूसरे जो इस इलाके से समय के साथ प्यार कर बैठते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पोटाली, ब्लॉक कुंआकोण्डा, जिला दंतेवाड़ा में पोस्टेड सहायक चिकित्सा अधिकारी डॉ अतिक अहमद अंसारी दंतेवाड़ा के इस सुकमा सीमावर्ती क्षेत्र के स्थानिय लोगों और सुरक्षा बलों के जवानों के लिए डॉ के रूप में देवता हैं। जो दूसरे श्रेणी के लोगों में आते हैं। ये साल 2009 से इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। और काफी सक्रिय रहे हैं। जिसकी वजह से इन्हें जिला स्तर पर कई बार सम्मानित किया जा चुका है।

आपको बता दें कि कुंआकोण्डा वही ब्लॉक है जिसमें अभी हाल ही में विधानसभा चुनाव से पहले नक्सली हमले में दूरदर्शन के एक मीडियाकर्मी की मौत हो गई थी। डॉ अंसारी उस दिन भी घटनास्थल से चार किमी दूरी पर थे। डॉ अंसारी योरस्टोरी हिंदी से बातचित में बताते हैं कि जब 2009 में मैं यहां आया था तो सबसे बड़ी चुनौती थी स्थानीय जनजातीय लोगों को इलाज के लिए अस्पताल तक लेकर आना। ज्यादातर वो आज भी अस्पताल आने से पहले एक बार झाड़-फूंक करने वाले ( जिन्हें स्थानिय गोंडी भाषा में बड्डे या बैगा कहा जाता है) के पास ही जाते हैं। उन दिनों यह स्थिति भयावह थी। झाड़-फूंक करने वाले, मलेरिया बुखार होने पर मरीज के भौंह के उपर हिस्से के पास गर्म लोहे से दागते थे। पहले तो मरीज मलेरिया बुखार से परेशान उसके बाद झाड़-फूंक करने वाले के पास पहुंचने पर घाव का संक्रमण भी पाल लेता था। इस तरह मरीज के जान बचने की संभावना कम हो जाती थी।

उदास चेहरों पर हंसी बिखेरते डॉ. अंसारी

उदास चेहरों पर हंसी बिखेरते डॉ. अंसारी


दंतेवाड़ा-सुकमा बार्डर के एक कैंप में तैनात सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडर अमित कहते हैं कि डॉ अंसारी में गज़ब का जोश और सेवा भाव है। डॉ अंसारी और उनकी टीम की सक्रियता की वजह से आदिवासी लोगों के बीच स्वास्थ के प्रति जागरूकता में थोड़ा इजाफा हुआ है। हम जवानों को भी अपनी प्राथमिक स्वास्थय जरूरतों के लिए डॉ अंसारी की मौजूदगी एक सकारात्मक पक्ष है।

अमित आगे कहते हैं कि जब तक सरकारी महकमा जनता का दिल नहीं जीतेगा तब तक इस क्षेत्र का विकास नहीं हो सकता। डॉ अंसारी जैसे युवाओं की मौजूदगी ने अस्पताल के प्रति आदिवासी लोगों का विश्वास बढ़ाया है। डॉ अंसारी बताते हैं कि इस इलाके में स्वास्थय हालातों में सुधार के लिए सीआरपीएफ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इनकी उपस्थिति की वजह से सड़कें बनीं जिससे आज एंबुलेंस ज्यादातर गांवों में पहुंच जाती है। आज भी कई गांव बरसात में मुख्य मार्ग से कट जाते हैं तो कई सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशिल होने के कारण अन्य दिनों में भी।

मरीज़ों के बीच उनका हाल जानते डॉ. अंसारी

मरीज़ों के बीच उनका हाल जानते डॉ. अंसारी


इस इलाके में कुपोषण, मच्छर के काटने से होने वाली बिमारियां, साफ-सफाई नहीं रखने के कारण होने वाली त्वचा संबंधी बिमारियां और महिलाओं में एनिमिक आम हैं। इनसे निपटने के लिए जरूरी सावधानी बरतना और खान-पान में थोड़ा सुधार के लिए जागरूकता इस इलाके की आवश्यकता है जिसपर डॉ अतिक अहमद अंसारी जैसे चिकित्सक पूरे तन-मन-धन के साथ काम कर रहे हैं।

डॉ अंसारी कहते हैं कि शुरुआत में मैं भी इस क्षेत्र की संवेदनशीलता के चलते अपने करिअर को लेकर बहुत चिंतित था लेकिन यहां के लोगों से मिले बेइंतेहां प्यार और इसी क्षेत्र में तीस साल से कार्यरत एक नर्स गंगा जी मोटिवेशन का स्त्रोत बनीं। एक समय था जब मुख्य सड़क से कटे गांवों में हेल्थ कैंप लगाने के लिए पहले कई बार सात से आठ किलोमीटर पादल भी चलकर जाना पड़ता है। फिर दो से तीन बार विजिट के बाद हेल्थ कैंप लग पाता था। आज गांव वाले हेल्थ कैंप लगाने के लिए स्वयं आमंत्रित करते हैं।

यह भी पढ़ें: भारतीय संस्कृति को पर्यटन से जोड़ कर नई पहचान दे रहे दो आईआईटियन