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नव्या अग्रवाल ने उत्तर प्रदेश की हस्तकलाओं को दिया भारतीय फलक, कारीगरों को मिले रोज़गार के नये अवसर

युवा नव्या अग्रवाल ने परंपरागत चली आ रही हस्तकला में फूँकी नयी रूह...कारीगरों में भरा नया उत्साह..आई व्यैल्यू एवरी आइडिया की संस्थापक ने सीतापुर में रहकर ही बनायी देश के महानगरों तक पहुँच

नव्या अग्रवाल ने उत्तर प्रदेश की हस्तकलाओं को दिया भारतीय फलक, कारीगरों को मिले रोज़गार के नये अवसर

Saturday June 04, 2016 , 6 min Read

तीन वर्ष पूर्व शिक्षा पूरी कर अग्रवला अपने शहर सीतापुर लौटीं तो वह 23 वर्ष की थीं। लखनऊ से 90 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे से अविकसित शहर में, वह अपने फाइनल प्रोजेक्ट पर ध्यान दे रही थी। वह जानती थी कि वह कार्पोरेट जिंदगी जीने के लिए फिर से बड़े शहरों की ओर वापिस नहीं जाएगी, इसलिए उन्होंने अपने ही छोटे-से आई वैल्यू एवरी आइडिया (आईवीईएल) की स्थापना की।

यदि किसी भी संकल्प का उचित रचना कर दुनिया में सही जगह पेश किया जाए तो उससे कामयाबी की उम्मीद रहती है। इसी आईडिया के साथ नव्या ने 2013 में अपना स्टार्टप शुरू किया था। 

नव्या उन दिनों को याद करती हैं, - मैंने आठ कारपेंटरों को चुना और उनसे कहा कि वे जो कुछ बनाना चाहत हैं, उसके मीनिएचर रूप बनाएँ। मैं बस उनकी कुशलता देखना चाहती थी, लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ कि उन्होंने बहुत उत्तम चीज़ें बनायी थीं। बिना किसी आधुनिक टेकनोलोजी के सहयोग के उन्होंने केवल अपनी पारंपारिक तकनीकों का उपयोग किया था और अपने कला कौशल का उत्तम नमूना पेश किया था। मैंने सोचा कि ये हस्तकलाकार इतना कौशल रखने बावजूद पिछड़े हुए क्यों हैं?

एक्सपोजर की कमी के कारण वे शहरी बाज़ारों तक नहीं पहुँच सके, जहाँ बड़े ख़रीददार मौजूद हैं। उन्होंने अपनै कौशल को भी संवारने की ओर ध्यान नहीं दिया। इसके पीछे भी मुख्य कारण था उनकी गरीबी। रुपया न होने के कारण वे मुश्किलों में रहे। उन्होंने अपने इस कौशल को आय का मुख्य स्रोत बनाने के बजाय रोज़गार के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाश किये, क्योंकि उनकी कारीगरी में ग्राहकों की निरंतरता का अभाव बना रहता था।

लगभग 7 मिलियन हस्तकालाकार, 67000 दक्ष संस्थाएँ व रोज़गार का काफी बड़ा क्षेत्र होने के बावजूद देश के अधिकतर कारीगर पिछड़े वर्ग से ही संंबंध रखते हैं और देश के दूर दराज़ क्षेत्रों में काम करते हैं। उनके उत्थान के लिए प्रशिक्षण प्रदान करने तथा देश के बड़े बाजारों तक उनकी पहुँच बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्किल इंडिया मिशन जैसे कार्यक्रम का प्रारंभ किया।

हालाँकि फैब इंडिया, मदर अर्थ, दस्तकार बाजर जैसे कुछ बड़े नाम हैं जो हस्तकलाकारों को उत्थान के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन नव्या अग्रवाल की आईवीईआई जैसी संस्थाओं की भी आवश्यकता काफी महत्वपूर्ण है। नव्या ने देश भर की स्थिति की जानकारी प्राप्त करते हुए छोटा ही सही, लेकिन महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया। उन्होंने अपने पिता से 3.50 लाख रुपये ऋण लिया और आईवीईआई की स्थापना की।

इस कार्य में सबसे बड़ी चुनौती अपने ही कारोबार के बारे में हस्तकलाकारों के दिल में बसी संश्यता को दूर करना। उन्होंने अपने योजना पर नये ढंग से काम करना शुरू किया। वह उन हस्तकलाकारों को नयी तकनीकें सिखाना चाहती थीं।

- मैं उनकी कार्यशालाओं को गयी, मैंने उन्हें नये डिज़ाइन की ओर प्रेरित किया। उन्हें समझाने का प्रयास किया। मुझे उम्मीद थी कि एक दिन जब वो इसका महत्व समझेंगे तो ज़रूर तैयार हो जाएँगे। फिर कुछ कारीगर सामने आये और कहा कि वे सीखने के लिए तैयार हैं। उनमें नये अनुभवों के प्रति जुनून था, कुछ पाने की आस थी। वे आतुर थे।

नव्या ने 12 हस्तकलाकारों के साथ एक छोटी सी कार्यशाला शूरू की। उनमें ऐसे कलाकार भी थे, जो घरेलू स्तर पर लकड़ी की चूड़ियाँ बनाते थे। एक युवती मेंहदी डिज़ाइन करती थी। सब लोग मौखिक आश्वसान पर चले आये। नव्या ने उन्हें कई तरह के नये काम बताये, जैसे लकड़ी के सजावटी जहाज, पेन स्टैंड, दीवार की घड़ियाँ. नाश्ते के कटोरे आदि..। फिर नव्या ने उनके कौशल को सुधारना तथा संवारना शुरू किया, लेकिन सबसे बड़ा सवाल था कि इन उत्पादों को बेचा कैसे जाए।

नव्या बताती हैं, - उस समय हमारी बिक्री केवल 20,000 रुपये थी। मुझे नुक़सान भी उठाना पड़ा, लेकिन इस सब के पीछे जो प्रतिक्रिया मिल रही थी, उसका महत्व अधिक था। लोग उन उत्पादों की तारीफ़ कर रहे थे, यह काफी खुशी देने वाला था। इसका मतलब था कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

नव्या के लिए सबसे पहली बड़ी कामयाबी कुकु क्रेट का आर्डर मिलना था। यह स्टार्टप तब बच्चों के लिए डीआईवाई उत्पाद के लिए काम कर रहा था। 100 मिकी माउस और घड़ियाँ बनाने का आर्डर था, जिसे बच्चों ने रंगा था। हमारा उत्पादन मूल्य 100 रुपये था और हमने उसे 110 में बेचा। यह बहुत कम था, लेकिन इस आर्डर ने नयी दिशा में काम करने की प्रेरणा दी। नव्या बताती हैं,

- मैंने बड़े आर्डरों के पीछे भागने की ग़लती की थी, लेकिन कुकु क्रेट की घटना के बाद मैंने बुटीकों से संपर्क करना शुरू किया। एक साल के भीतर आईवीईआई के उत्पाद बैंगलूर, चेन्नई, मुंबई और हैदराबाद के असंख्य घरों तक पहुँच गये थे। व्यापार धीरे-धीरे फैलता गया और आर्डरों की संख्या बढ़ती गयी।

नव्या के जीवन में 2014 का वर्ष वहत्वपूर्ण रहा, जब उन्हें दिल्ली के इकोसेन्स से 500 व्हाइट बोर्ड का आर्डर मिला। इस परियोजना से उन्हें अच्छा लाभ हुआ, जिससे उन्होंने अपनी टीम को भी लाभान्वित किया। आईवीईआई को इसके बाद फ्लिपकार्ट, स्नैपडीत तथा अमैज़ान जैसी ई कामर्स कंपनियों के साथ-साथ कार्पोरेट कंपनियों के आर्डर भी मिलने लगे।

नव्या के पास इस समय 18 फुल टाइन क्राफ्ट्स मैन हैं। इससे पूर्व वे 200 रुपये प्रतिदिन कमाते थे। अब उनकी आय बढ़ गयी है। हर एक 60 रुपये प्रति घंटा कमाते हैं। कार्पोरेट उपहार, घरेलू साज सज्जा की वस्तुएँ, तथा भेंट वस्तुएँ बनाये जा रहे हैं पहले साल आईवीआई ने 1 लाख रुपये राजस्व कमाया था। नव्या यहाँ रुकी नहीं, दिनरात अथक प्रयास जारी रहे और इसे उनकी टीम ने पिछले वर्ष 18 लाख तक पहुँचाया है।

नव्या कहती हैं, - यह काफी बड़ी रक़म है। इतनी रकम हमारी टीम में से किसी ने नहीं देखी थी। यह हमारे उत्साह और बड़ा सोचने और बड़े सपने देखने का नतीजा है।

जब नव्या से पूछा जाता है कि वह अपने जीवन से दूसरों को क्या सीख देना चाहेंगी, वह बताती हैं कि जगह कोई मयने नहीं रखती। शुरू में मुझे लगता था कि मैं सीतापुर में बैठकर बाज़ार कैसे तलाश करूँगी, लेकिन ऑन लाइन बाज़ार बहुत बड़ा है। लोग कैसी चीज़ें खरींदेंगे, इस पर ज्यादा समय बर्बाद करने की बजाय गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देना होगा।

नव्या बताती हैं कि उन्होंने कभी भी अपनी टीम के सदस्यों को अपना वैकल्पिक रोज़गार छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया, बल्कि उन्हें जब भी समय मिलता है, वे चले आते हैं, यही कारण है कि उन्होंने कारीगरों को प्रतिघंटा आय की व्यवस्था रखी। नव्या इस वर्ष के अंत तक 40 कारीगरों को काम देने की योजना रखती हैं। वह चाहती हैं कि वे खुशी से काम करें।

( मूल लेखिका- श्वेता विट्टा.. अनुवादक एफ एम सलीम)