बड़ी कंपनियों को ललचा रहे छोटे शहरों के बाजार
यह एक असाधारण स्थिति है। विश्व की बड़ी कंपनियों की नजर अब भारत के छोटे शहरों पर है, साथ ही सबसे अधिक प्रॉफिट वाले फूड एंड ग्रॉसरी बाजार पर। आधुनिक बाजार की राह अब देश के छोटे शहरों से होकर जा रही है, जहां के उपभोक्ता हाथोहाथ खरीदारी कर रहे हैं। ई-कॉमर्स खिलाड़ी भी उधर ही टकटकी लगाए हुए हैं।
भारतीय बाजार में ऑनलाइन ग्रॉसरी की खरीदारी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इससे तमाम छोटी-बड़ी कंपनियां इस बिजनेस में उतर आई हैं। दुनिया की जानी-मानी ई-कॉमर्स कंपनियों की नजर भारत में अधिक प्रॉफिट वाले बिजनेस पर है तो साथ ही परंपरागत रिटेल बाजार में भी वे तेजी से उतर रही हैं। भारत के फूड एंड ग्रॉसरी मार्केट का आकार पांच सौ अरब डॉलर के ऊपर पहुंच चुका है। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2020 तक टोटल रिटेल रेवेन्यू का करीब 66 प्रतिशत हिस्सा फूड ऐंड ग्रॉसरी से आने की संभावना जताई जा रही है। बाजार के लिए यह एक असाधारण स्थिति है। तमाम कंपनियां एक बड़ी जंग के लिए कमर कस रही हैं।
इनमें अमेजॉन और वॉलमार्ट सरीखी ग्लोबल ई-कॉमर्स कंपनियों के अलावा फ्यूचर ग्रुप, रिलायंस, टाटा, ग्रोफर्स, बिगबास्केट को भी इस मॉर्केट में अपने-अपने पैर जमाने की बेचैनी है। दूसरी तरफ, फूड एंड ग्रॉसरी बाजार में इतना बड़ा उछाल भले आ गया हो, कंपनियों के सामने भारतीय उपभोक्ताओं का डिजिटल रुझान समझना भी एक बड़ी चुनौती है। ग्राहकों का भरोसा जीतने, उनको ऑनलाइन खरीद से जोड़े रखने के लिए कंपनियों को भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। हाल में त्योहारी सेल के दौरान सर्च और खरीद की आदतों के रुझान पर भी कंपनियों की नजर रही। वे यह जानने में जुटी रहीं कि छुट्टियों के सेल वाले सीजन में लोग किस तरह खरीदारी करते हैं।
फ्लिपकार्ट ने त्योहारी सीजन के दौरान छह सौ से ज्यादा नए शहरों की दुकानों वाले ग्राहकों पर नजर रखी, जबकि उसके पैंतीस फीसदी ग्राहक मेट्रो शहरों में हैं। इससे खरीदारी करने वाले ग्राहकों की तादाद में लगभग 95 फीसदी तक की वृद्धि पाई गई। ब्रांड के प्रति ग्राहकों की वफादारी बढ़ी है। बाजार में इस समय सबसे ज्यादा सौंदर्य प्रसाधन, खिलौने, बेबी केयर, स्पोर्ट्स-फिटनेस, टेलीविजन और बड़े अप्लायंसेज और फैशन सामग्री की बिक्री हो रही है। इस बार त्योहारी सीजन में पिछले साल के मुकाबले प्राइवेट ब्रांडों से महिलाओं के परंपरागत परिधान की श्रेणी में दो सौ फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है।
देखिए न, कि अभी-अभी दिवाली में दीये का बाजार इको फ्रेंडली होने से किस कदर रोशन हुआ। पारम्परिक दीये की माँग आसमान छूने लगी। ई-कॉमर्स कम्पनियों से लेकर पारम्परिक बाजार तक में मिट्टी के दीयों की जमकर खरीदारी हुई। चीन से आयातित फैंसी दीये और इलेक्ट्रॉनिक लाइटिंग जैसी सामाग्रियाँ भी इनकी बिक्री को फीका नहीं कर सकीं। ऑनलाइन पोर्टल पर भी पारम्परिक दीये खूब बिके। उधर, पर्यावरण और स्वास्थ्य के मद्देनजर देशभर में बड़े पैमाने पर पारम्परिक दीये जलाने और पटाखों से परहेज करने पर कई संगठनों ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। गौरतलब है कि इलेक्ट्रॉनिक लड़ियों और फैंसी मोमबत्तियों के ई-वेस्ट एवं कचरे से बचाव के लिए गैर सरकारी संगठन पारम्परिक दीये जलाने का देशभर में कई साल से अभियान चला रहे हैं।
इस बार पारम्परिक दीयों की बिक्री पिछले वर्षों की तुलना में आश्चर्यजनक रूप से बहुत ज्यादा रही, जबकि चीन से आयातित सजावटी उत्पादों की बिक्री के बीच पारम्परिक बाजार के मुकाबले ई-कॉमर्स कम्पनियों की वेबसाइट पर पारम्परिक और सजावटी दीये काफी महँगे बिके। इस बीच स्मार्टफोन, फैशन के अलावा रोजाना इस्तेमाल होने वाली चीजें, सौंदर्य प्रसाधन, टेलीविजन और घर तथा किचन से जुड़ी चीजें इस साल अमेजॉन ग्रेट इंडियन फेस्टिवल में काफी लोकप्रिय रही हैं। अमेजॉन को 99 फीसदी पिनकोड पर कम से कम एक ऑर्डर जरूर मिला। ग्राहकों में करीब साठ फीसदी तक की वृद्धि देखी गई। हैरानी तो इस बात की है कि इनमें बयासी फीसदी छोटे शहरों के लोग हैं।
भारत के छोटे शहरों में यह हैरतअंगेज बदलाव सिर्फ बाजार ही नहीं, ट्रेवल सेक्टर में भी देखा जा रहा है। थॉमस कुक इंडिया के अध्यक्ष और कंट्री हेड राजीव काले का कहना है कि उत्तर भारत हमारे लिए एक बड़ा बाजार है और इससे हम अपने कारोबार में 25 फीसदी से अधिक की सालाना ग्रोथ देख रहे हैं। परिवार के साथ छुट्टियां मनाने वालों की संख्या में करीब 40 फीसदी का उछाल आया है। थॉमस कुक ट्रैवल बिजनेस से जुड़ी कंपनी है, लेकिन बाजार के ताजा रुझान को देखते हुए वह उत्तर भारत में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए 42 ग्राहक केंद्रों के साथ गोल्ड सर्किल फ्रेंजाइजी आउटलेट की ओर भी कदम बढ़ा रही है। इंश्योरेश सेक्टर भी मेट्रो सिटीज से ज्यादा देश के छोटे शहरों पर नजर रख रहा है।
महंगी मोटरसाइकिल बनाने वाली ब्रिटेन की ट्रायंफ मोटरसाइकिल कंपनी भारत के छोटे शहरों में अपने बाजार का विस्तार कर रही है। एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि भारत के छोटे शहरों में उपभोक्ता वस्तुओं का बाज़ार साढ़े तीन गुना बढ़ चुका है। माना जा रहा है कि अब भारतीय बाजार के विकास की राह छोटे शहरों से होकर जा रही है। एक से दस लाख की आबादी वाले देश के चार सौ शहरों में दस करोड़ मध्यम वर्ग के लोग हाथोहाथ बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुओं की बीस फ़ीसदी खरीदारी कर रहे हैं। बड़ी कंपनियां यह अच्छी तरह से जान चुकी हैं कि आने वाले समय में भारत की आर्थिक वृद्धि की रफ़्तार अगर कोई तय करेगा तो वह मध्यम वर्ग होगा, न कि बड़े शहरों का उच्च या उच्च मध्यम वर्ग।
ई-कॉमर्स खिलाड़ी भी उस ओर टकटकी लगाए हुए हैं। स्मार्ट मोबाइल्स उनके बाजार को छोटे शहरों के एक-एक घर से जोड़ने में सबसे ज्यादा मददगार हो रहे हैं। बाजार को डर है तो इस बात का कि उपभोक्ता डिजिटल खरीद माध्यमों को जल्द ही छोड़ देते हैं। परिधान और एक्सेसरीज ब्रांड सबसे तेजी से बदलने वाला ऑनलाइन सेगमेंट हैं और इसमें अरबों के नुकसान की भी सूचनाएं हैं। छोटे शहरों में अभी कंपनियों को ग्राहकों से संतोषजनक प्रतिक्रिया नहीं मिल पा रही है। लगभग पचहत्तर फीसदी परिधान और एसेसरीज सर्च करने वाले लोग अमूमन सामान्य वर्ग के हैं। पुरुषों के कपड़े लगभग सत्तर फीसदी और महिलाओं के कपड़े का नब्बे फीसदी सर्च भी सामान्य ही होते हैं। हालांकि फुटवियर और मोबाइल फोन बिक्री की कहानी थोड़ी अलग है। इस बार पिछले सीजन के मुकाबले जूते के सर्च में 1.3 गुना की वृद्धि दर्ज हुई है। ऑनलाइन मॉर्केट की एक बड़ी चुनौती ये भी है कि ऑनलाइन ग्राहकों के बीच मार्केटिंग का अभी कोई मजबूत विश्वसनीय तरीका जड़ नहीं जमा सका है। जागरूक खरीदार काफी छानबीन के बाद ही खरीदारी में हाथ डाल रहे हैं।
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