100 लोग, 6 राज्य, 4 साल, 3,000 शब्द: गोंडी भाषा की डिक्शनरी हुई तैयार
भारत में लगभग 1700 भाषाएं हैं। लेकिन इनमें से कई भाषाएं ऐसी हैं जो प्रोत्साहन के आभाव में दम तोड़ रही हैं। कई भाषाओं पर काम भी किया जा रहा है ताकि उन्हें संरक्षित किया जा सके। ऐसी ही एक भाषा है 'गोंडी'।
गोंडी भाषा मुख्य रूप से छह राज्यों- छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदायों के बीच बोली जाती है। हालांकि हर राज्य में इस भाषा को बोलने वालों की बोली में फर्क आ जाता है, लेकिन कुल मिलाकर लगभग 1.2 करोड़ लोग इस भाषा को बोलने वाले हैं...
इस पहल का मकसद गोंडी भाषा का एक मानक स्थापित करना था। इस काम में गोंड समुदाय के लोग पिछले चार साल से लगे हुए थे और अब जाकर यह काम एक मुकाम पर पहुंच पाया है।
भारत को विविधता से भरा हुआ देश कहा जाता है। भाषा, संस्कृति, वेशभूषा से लेकर खानपान में गजब की विविधता। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि भारत में लगभग 1700 भाषाएं हैं। लेकिन इनमें से कई भाषाएं ऐसी हैं जो प्रोत्साहन के आभाव में दम तोड़ रही हैं। कई भाषाओं पर काम भी किया जा रहा है ताकि उन्हें संरक्षित किया जा सके। ऐसी ही एक भाषा है 'गोंडी'। यह भाषा मुख्य रूप से छह राज्यों- छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदायों के बीच बोली जाती है। हालांकि हर राज्य में इस भाषा को बोलने वालों की बोली में फर्क आ जाता है, लेकिन कुल मिलाकर लगभग 1.2 करोड़ लोग इस भाषा को बोलने वाले हैं।
कुछ राज्यों में यह फर्क काफी ज्यादा हो जाता है इस वजह से एक ही भाषा होने के बावजूद गोंड समुदाय के लोग एक दूसरे से वार्तालाप करने में कठिनाई का सामना करते हैं। इस कठिनाई को दूर करने के लिए CGNet Swara और IGNCA ने संस्कृति मंत्रालय के साथ मिलकर एक पहल शुरू की। इस पहल का मकसद गोंडी भाषा का एक मानक स्थापित करना था। इस काम में गोंड समुदाय के लोग पिछले चार साल से लगे हुए थे और अब जाकर यह काम एक मुकाम पर पहुंच पाया है।
गोंड समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कन्नड़ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और ट्राइबल स्टडी के विभागाध्यक्ष के.एम मेत्री बताते हैं, 'यह प्रॉजेक्ट गोंड आदिवासियों के द्वारा गोंड आदिवासियों के लिए था, इसलिए इसे अनोखा अभियान कहा जा सकता है।' इन लोगों ने डिक्शनरी में लगभग 3,000 शब्द जोड़े हैं। इसमें प्रोफेसर से लेकर किसान और मजदूरों को भी शामिल किया गया था। ताकि भाषा के सभी आयामों को अच्छे से समझा जा सके। इसके लिए कई मीटिंग आयोजित की गईं। हाल ही में दिल्ली में 19 से लेकर 23 मार्च तक गोंड डिक्शनरी को तैयार करने के लिए आठवीं बैठक आयोजित की गई थी।
ये मीटिंग एक तरह से वर्कशॉप के तौर पर आयोजित होती हैं, जहां नई-नई मुश्किलें निकलकर आती हैं। 'CGNet स्वरा' संगठन की स्थापना करने वाले शुभ्रांशु चौधरी ने कहा कि उन्होंने 2004 में बीबीसी की नौकरी छोड़ने के बाद आदिवासियों के लिए काम करने का फैसला किया था। शुभ्रांशु का परिवार मूल रूप से बांग्लादेश का रहने वाला था जो विभाजन के दौरान मध्य प्रदेश में आकर बस गया। मध्य प्रदेश में शुभ्रांशु के कई सहपाठी गोंड समुदाय के थे। लेकिन बाद में वे पढ़ाई करने के बजाय नक्सलवाद की तरफ आकर्षित हो गए जो कि काफी चिंताजनक बात थी।
शुभ्रांशु बताते हैं कि इसके पीछे एक वजह यह थी कि गोंडी भाषा पर काम नहीं हुआ। इन गोंड समुदाय के लोगों को हिंदी समझना मुश्किल पड़ता है और सारे अध्यापक हिंदी भाषी होते हैं। इसलिए ये आगे की पढ़ाई भी नहीं कर पाते हैं। वह कहते हैं कि क्षेत्रीय भाषा में विविधता की वजह से वार्तालाप करना काफी मुश्किल होता है। इससे कई तरह की नई मुश्किलें पैदा होती हैं। सरकारी कर्मचारी भी इनकी भाषा नहीं समझ पाते जिससे इनके कई सारे काम रुक जाते हैं। इस प्रॉजेक्ट में काफी वक्त लग सकता है लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि गोंडी भाषियों की दिक्कतों को कम किया जा सकेगा।
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