15 साल के आकाश ने ढूंढ निकाली 'साइलेंट' हार्ट अटैक को पहचानने की तकनीक
दादाजी की हृदयाघात से हुई मौत ने आकाश को किया एक नई तकनीक ढूंढने के लिए प्रेरित...
एक किशोर ने साइलेंट हार्ट अटैक का पहचान करने वाली तकनीक ढूंढ निकाली है। 15 साल के आकाश मनोज तमिलनाडु में रहते हैं और पढ़ाई कर रहे हैं। आकाश ने रक्त में उस खास प्रोटीन की मात्रा को मापने के तरीका निकाल लिया है जिससे किसी इंसान को रिस्क हो सकता है।
आकाश के दादा जी का ऐसे ही अचानक से हृदयाघात की वजह से देहावसान हो गया था। उनको इससे पहले इस बात की आशंका नहीं थी।इस घटना ने आकाश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है जिससे इस आपातकालीन स्थिति के बारे में पहले से पता लगाया जा सके। काफ़ी कड़ी मेहनत के बाद वो ये यंत्र बनाने में सफल हो गया।
साइलेंट हार्ट अटैक की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। ये सबसे घातक तरह के आघात होते हैं क्योंकि आपको पहले से किसी भी तरह के लक्षण नजर नहीं आ रहे होते हैं और एक दिन अचानक ये दस्तक दे देते हैं। अच्छे खासे स्वस्थ लोग कब इसकी चपेट में आ जाएं, कुछ पता नहीं चलता है।
एक किशोर ने साइलेंट हार्ट अटैक का पहचान करने वाली तकनीक ढूंढ निकाली है। 15 साल के आकाश मनोज तमिलनाडु में रहते हैं और पढ़ाई कर रहे हैं। आकाश ने रक्त में उस खास प्रोटीन की मात्रा को मापने के तरीका निकाल लिया है जिससे किसी इंसान को रिस्क हो सकता है। आकाश के दादा जी का ऐसे ही अचानक से हृदयाघात की वजह से देहावसान हो गया था। उनको इससे पहले इस बात की आशंका नहीं थी। इस घटना ने आकाश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है जिससे इस आपातकालीन स्थिति के बारे में पहले से पता लगाया जा सके। काफ़ी कड़ी मेहनत के बाद वो ये यंत्र बनाने में सफल हो गया। आकाश के मुताबिक, इस यंत्र से कइयों की जान बचाई जा सकती है।
इंडिया टाइम्स से बातचीत में आकाश ने बताया, साइलेंट हार्ट अटैक की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। ये सबसे घातक तरह के आघात होते हैं क्योंकि आपको पहले से किसी भी तरह के लक्षण नजर नहीं आ रहे होते हैं और एक दिन अचानक ये दस्तक दे देते हैं। अच्छे खासे स्वस्थ लोग कब इसकी चपेट में आ जाएं, कुछ पता नहीं चलता है। मेरे ग्रैंड फादर की सेहत भी एकदम बढ़िया थी लेकिन एक दिन अचानक से उनको अटैक पड़ा और वो गुजर गए।
कैसे काम करती है ये तकनीक-
आकाश की इस तकनीक के माध्यम से त्वचा को बिना पंक्चर किए खून में FABP3 नामक प्रोटीन की पहचान की जा सकती है। आकाश ने बड़ी चतुराई से इस प्रोटीन की संरचना को इस्तेमाल करते हुए इस तकनीक को विकसित किया है। दरअसल FABP3 प्रोटीन की तासीर नेगेटिव चार्ज वाली होती है इसलिए वो पॉजिटिव चार्ज को आकर्षित करता है, और इस तरह से आकाश ने अपनी तकनीक को रूप दिया। वो पॉजिटिव चार्ज का इस्तेमाल करके इस प्रोटीन की पहचान कर लेते हैं। इस प्रक्रिया के तहत त्वचा के ऊपर यूवी लाइट पास की जाती है और इसी दौरान प्रोटीन की मौजूदगी का पता लगा लिया जाता है। एक सेंसर प्रोटीन की मात्रा की गणना कर लेता है।
15 साल की छोटी सी उम्र में ही आकाश के पास अपने विजिटिंग कार्ड हैं। उनके विजिटिंग कार्ड में अभी से कॉर्डियोलॉजी के रिसर्चर के तौर पर परिचय दिया गया है। वो इतने स्मार्ट हैं कि घंटों तक अपने रिसर्च के बारे में लोगों को समझा सकते हैं। उन्हें अपनी परीक्षाओं के बारे में भी टेंशन नहीं है। वो कहते हैं कि उसकी क्या चिंता करना, पास तो हो ही जाना है।
होनहार बीरवान के होत चीकने पात-
आकाश जबसे आठवीं क्लास में थे तबसे बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की लाइब्रेरी में जाने लगे थे। ये लाइब्रेरी उनके घर से एक घंटे से भी ज्यादा दूरी पर है। आकाश के मुताबिक, वो जर्नल्स काफी मंहगे होते थे। इसलिए हर दिन लाइब्रेरी जाने के अलावा मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। जितने स्टडी मैटेरियल मैं पढ़ता था, उतना अगर खरीदने जाता तो करोड़ों का खर्च आता। साफ तौर पर, इतना खर्च मैं अफोर्ड नहीं कर सकता था। मुझे हमेशा से ही मेडिकल साइंस में काफी रुचि थी। मुझे वो जर्नल पढ़ना काफी पसंद था। कार्डियोलॉजी मेरा पसंदीदा विषय रहा है।
आकाश के इस आविष्कार के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है। साथ ही इनोवेशन स्कॉलर्स इन रेजिडेंस प्रोग्राम में भी आमंत्रित किया जा चुका गया है। इस कार्यक्रम के तहत नए आविष्कारकों, लेखकों और कलाकारों को एक हफ्ते से अधिक समय तक राष्ट्रपति भवन में रहने का मौका मिलता है।
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