नीरजा भनोट: जिसकी शहादत पर रोया भारत और पाकिस्तान
नीरजा के बलिदान पर भारत ही नहीं पूरा पाकिस्तान भी रोया था। भारत सरकार ने इस काम के लिए नीरजा को बहादुरी के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया।
भारत सरकार ने इस काम के लिए नीरजा को बहादुरी के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया। नीरजा यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला रहीं।
नीरजा अभिनेता राजेश खन्ना की बहुत बड़ी फैन थीं और अक्सर उनके डायलॉग बोला करती थीं। नीरजा ने लगभग 22 विज्ञापनों में काम किया था।
महज 23 साल की छोटी-सी उम्र में कोई इतना बहादुर कैसे हो सकता है कि खुद को फना कर 360 लोगों की जिंदगी बचा जाए। जी हां बात हो रही उस अजीमोशान शख्सियत की जिसका हौसला हिमालय से ऊंचा और किरदार की बुलंदी ऐसी कि इंसानियत भी फक्र करे। अपने फर्ज को अंजाम देते हुये जब वह औरत दुनिया-ए-फानी को अलविदा कहती है तो हिंदुस्तान, पाकिस्तान और अमेरिका की आवाम की आंखे नम हो जाती हैं। उस प्रेरणादायी किरदार का नाम है नीरजा भनोट और 5 सितंबर 1986 ही वो तारीख थी, जिस दिन आज से 31 साल पहले नीरजा ने अपनी जान देकर लोगों की जान बचाई थी।
नीरजा के इस बलिदान पर भारत ही नहीं पूरा पाकिस्तान भी रोया था। भारत सरकार ने इस काम के लिए नीरजा को बहादुरी के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया। नीरजा यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला रहीं। इतना ही नहीं, नीरजा को पाकिस्तान सरकार की तरफ से 'तमगा-ए-इंसानियत' और अमेरिकी सरकार की तरफ से 'जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड' से नवाजा गया। याद हो कि नीरजा की जिंदगी पर पिछले साल एक फिल्म भी आई थी, जिसमें सोनम कपूर ने नीरजा का किरदार निभाया था। नीरजा की पुण्यतिथि पर हम एक बार फिर आपको बताते है देश की उस बहादुर लड़की की प्रेरणास्पद कहानी।
7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ के एक पंजाबी परिवार में जन्मी नीरजा ने 5 सिंतबर 1986 को यानी आपने 23वें जन्मदिन से केवल 2 दिन पहले को पैन एएम की फ्लाइट 73 में सीनियर पर्सर थीं, ये फ्लाइट मुंबई से अमेरिका जा रही थी लेकिन पाकिस्तान के कराची एयरपोर्ट पर इसे 4 हथियारबंद लोगों ने हाईजैक कर लिया। इस फ्लाइट में 360 यात्री और 19 क्रू मेंबर्स थे। जब आतंकियों ने प्लेन हाईजैक किया तब नीरजा की सूचना पर चालक दल के तीनों सदस्य यानी पायलट, को-पायलट और फ्लाइट इंजीनियर कॉकपिट छोड़कर भाग गए।
ये चारो आतंकवादी अबू निदान ऑर्गेनाइजेशन के थे और अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाना चाह रहे थे। दरअसल आतंकी प्लेन को इजराइल में किसी निर्धारित जगह पर क्रैश कराना चाहते थे लेकिन नीरजा ने उनका प्लान फेल कर दिया। इस घटना से बचकर निकले यात्री माइकल थेक्सटन ने एक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में माइकल ने दावा किया कि उन्होंने हाईजैकर्स को बात करते हुए सुना था कि वे जहाज को 9/11 की तरह इजराइल में किसी निर्धारित निशाने पर क्रैश कराना चाहते थे। हाईजैक के दौरान आतंकियों ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया और कहा कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करें ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सकें।
नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकट्ठे किए लेकिन विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिए। आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजा तो वह उसको मार देंगे। लेकिन नीरजा ने उस आतंकी से बात करके ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया। प्लेन का ईंधन समाप्त हो चुका था और अंधेरा भी गहराने लगा था। नीरजा इसी वक्त का इंतजार कर रही थी। अंधेरे में उसने तुरंत विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिए। यात्री उन दरवाजों से बाहर कूदने लगे। यात्रियों को अंधेरे में प्लेन से कूदकर भागता देख आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी।
इसमें कुछ यात्री घायल जरूर हुए लेकिन इनमें से 360 पूरी तरह से सुरक्षित थे। सभी यात्रियों को बाहर निकाल नीरजा जैसे ही प्लान से बाहर जाने लगी तभी उन्हें बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया था। नीरजा ने बच्चों को खोज निकाला और जैसे ही वे प्लेन के इमरजेंसी गेट की ओर बढऩे लगी। तभी चौथा आतंकी सामने आ गया। नीरजा ने बच्चों को नीचे धकेल दिया और उस आतंकी से भिड़ गई। आतंकी ने नीरजा के सीने में कई गोलियां उतार दीं। नीरजा के इस बलिदान पर भारत ही नहीं पूरा पाकिस्तान भी रोया था।
नीरजा उस पितृसत्तात्मक समाज के मुंह पर एक जवाब भी है जो सदैव स्त्री की शारीरिक क्षमता को लेकर स्त्री की क्षमता को सीमित करता रहा है।
भारत सरकार ने इस काम के लिए नीरजा को बहादुरी के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया। नीरजा यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला रहीं। इतना ही नहीं, नीरजा को पाकिस्तान सरकार की तरफ से 'तमगा-ए-इंसानियत' और अमेरिकी सरकार की तरफ से 'जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड' से नवाजा।
आज कुर्बानी का प्रतीक बन चुकी नीरजा, का नाम सुनते ही शरीर में एक सिरहन-सी पैदा हो जाती है। आंखें नम और सिर गर्व से झुक जाता है। नीरजा उस पितृसत्तात्मक समाज के मुंह पर एक जवाब भी है जो सदैव स्त्री की शारीरिक क्षमता को लेकर स्त्री की क्षमता को सीमित करता रहा है।
सफल मॉडल और घरेलू हिंसा की शिकार थीं नीरजा
नीरजा का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ के एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई चंड़ीगढ़ के सैकरेड हार्ट सीनियर सेकेंडरी स्कूल से की, लेकिन बाद में उनका परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया। नीरजा ने मुंबई के बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से अपनी आगे की पढ़ाई की और मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इसके बाद नीरजा को मॉडलिंग असाइनमेंट मिला जिसके बाद उनके मॉडलिंग करियर की शुरुआत हुई। नीरजा अभिनेता राजेश खन्ना की बहुत बड़ी फैन थीं और अक्सर उनके डायलॉग बोला करती थीं। नीरजा ने लगभग 22 विज्ञापनों में काम किया था।
नीरजा तब केवल 22 साल की थीं जब उनकी शादी कर दी गई। मार्च 1985 में 22 साल की उम्र में उनकी अरेंज्ड मैरिज हुई और वो अपने पति के साथ कतर रहने चली गईं लेकिन ससुरालवालों की तरफ से दहेज की बेबुनियाद मांगों से परेशान होकर वो 2 महीने में ही अपने अभिभावकों के पास वापस मुंबई आ गईं। नीरजा ने जब फ्लाइट अटेंडेंट की जॉब के लिए 'पैन एएम' में अप्लाई किया तब वह एक सफल मॉडल थीं। साल 1985 में उन्होंने पैन एएम के लिए आवेदन किया और चयन के पश्चात उन्हें फ्लाइट अटेंडेंट के तौर पर प्रशिक्षण हेतु मियामी और फ्लोरिडा भेजा गया लेकिन वो वापस पर्सर के तौर पर आईं। पैन एएम के साथ- साथ ही नीरजा मॉडलिंग भी कर रही थीं।
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