अपना दूध दान करके अनगिनत बच्चों की ज़िंदगी बचाने वाली माँ
हमारे रूढ़िवादी समाज में अगर कोई औरत बाकी की औरतों से थोड़ा अलग हट कर कोई काम करने निकलती है, तो हो सकता है उसे डराया जाये या उस पर टिप्पणियां की जायें, लेकिन शरण्या जैसी महिलाएं बिना किसी की परवाह के न जाने कितने नवजातों की जिंदगी बचाने में लगी हैं।
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मदर मिल्क बैंक में तीन तरह की महिलाएं दूध दान करती हैं। पहली वे जिनका दूध ज्यादा बनता है, दूसरी वे जिनके बच्चे ICU में भर्ती होने की वजह से दूध नहीं पी सकते और तीसरी वे जिनके बच्चों की मौत हो जाती है, साथ ही कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिन्हें दूध तो बनता है लेकिन किसी वजह से वे अपने शिशुओं को अपना दूध पिला नहीं पातीं, ऐसे में दूध को दान कर देना सबसे बेहतर विकल्प है।
शरण्या के पति रेगुलर ब्लड डोनर हैं। कभी भी जरूरत पड़ने पर वह रक्त दान करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। दान करने की प्रेरणा शरण्या ने अपने पति से ही ली है।
भारत में शिशु मृत्यु दर काफी अधिक है। यहां हर साल 1,000 में से 37 नवजातों की किसी न किसी कारण से मौत हो जाती है। लेकिन इन मौतों की सबसे बड़ी वजह है कुपोषण। कुपोषण यानी बच्चो को सही से पोषण न मिल पाना। नवजातों को मां के दूध की सबसे अधिक जरूरत होती है। अगर किसी वजह से मां का दूध बच्चे को नहीं मिल पाता है, तो मुसीबत खड़ी हो जाती है। क्योंकि मां के दूध का कोई विकल्प नहीं होता। इस समस्या को दूर करने के लिए देश में ऐसे कई मदर मिल्क बैंक बनाए गए हैं, जहां महिलाएं दूध दान करती हैं।
चेन्नई की शरण्या ऐसी ही एक महिला हैं, जो शहर के कांची चाइल्ड ट्रस्ट अस्पताल के मिल्क बैंक में दूध दान कर रही हैं। शरण्या दूसरी बार मां बनी हैं और पिछले दो महीने से लगातार दूध दान कर रही हैं। इस नेक काम की शुरुआत के बारे में बताते हुए शरण्या कहती हैं, कि जब वो प्रेग्नेंट थीं तो उन्हें फेसबुक के जरिए पता चला कि मां का दूध न मिलने की वजह से कई बच्चों की मौत हो जाती है और फिर उन्हें मदर मिल्क बैंक के बारे में पता चला जहां पर अपना दूध दान किया जा सकता था। वह हर पांच दिन पर मिल्क बैंक जाती हैं और 150ml तक दूध दान करती हैं। मदर मिल्क बैंक में तीन तरह की महिलाएं दूध दान करती हैं। एक तो वे जिनका दूध ज्यादा बनता है, दूसरी वे जिनके बच्चे ICU में भर्ती होने की वजह से दूध नहीं पी सकते हैं और तीसरी वे जिनके बच्चों की मौत हो जाती है। कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिन्हें दूध तो बनता है लेकिन किसी वजह सेे वे अपने शिशुओं को दूध पिला नहीं पातीं।
कैसे दान करती हैं माँऐं मिल्क बैंक में दूध?
महिलाओं का दूध पंप या इलेक्ट्रिक पंप के जरिए निकालकर मिल्क बैंक में इकट्ठा कर लिया जाता है। ये दूध 6 महीने तक स्टोर किया जा सकता है। दूध लेने से पहले महिला की एचआइवी और हेपटॉइटिस जैसे कुछ रोगों की जांच की जाती है। इकट्ठा किये गये दूध को पॉश्चरीकृत कर जमा किया जाता है।
शरण्या ने जब दूध दान करना शुरू किया, तो उन्होंने सोचा कि ये उन बच्चों के लिए होगा, जिनकी मां दूध पिलाने में सक्षम नहीं होती हैं, लेकिन जब वो अस्पताल के बच्चों वाले वॉर्ड में गईं तो दंग रह गईं। उन्होंने देखा कि वहां पर कई शिशु ऐसे भी थे जो समय से पहले पैदा हो गए थे। कुछ का साइज तो हथेली के बराबर था। यही वो मौका था जब शरण्या ने सोच लिया, कि वह किसी भी हालत में दूध दान करने आया करेंगी।
अपने परिवार के बारे में बताते हुए शरण्या कहती हैं, कि उनके परिवार वाले इस काम में उनका काफी सपोर्ट करते हैं। शरण्या की एक बेटी भी है, जो उनके साथ अस्पताल तक जाती है। वह मां से कहती है कि आप जब तक चाहें दूध दान करना जारी रख सकती हैं। शरण्या के पति रेगुलर ब्लड डोनर हैं। कभी भी जरूरत पड़ने पर वह रक्त दान करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। दान करने की प्रेरणा शरण्या ने उनसे ही ली है। शरण्या इस बात की पूरी जानकारी रखती हैं, कि उनका दूध किसी बच्चे को दिया जा रहा है। वह उस शिशु की मां से भी मिलती हैं। वह बताती हैं कि जब पैरेंट्स उनसे पूछते हैं कि इसके लिए कितने पैसे दें तो इससे उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। वह लोगों से कहती हैं, कि 'मां का दूध अनमोल है, इसे किसी को बेचा नहीं जा सकता।'
हमारे रूढ़िवादी समाज में अगर कोई महिला इस तरह का काम करने निकले तो हो सकता है कि उसे डराया जाये या उस पर टिप्पणियां की जायें, लेकिन शरण्य जैसी महिलाएं बिना किसी परवाह के न जाने कितने नवजातों की जिंदगी बचाने में लगी हैं। शरण्या खुश होकर गर्व के साथ ये बात कहती हैं, कि वे कई नवजात शिशुओं की जिंदगी बचाने का काम कर रही हैं।