क्रेडेक्स द्वारा एसएमई के लिए नयी राह खोलने वाले बैंकर मनीष कुमार और अनुराग जैन
“भारत में एसएमई फाइनेंसिंग के बारे में जानने के दौरान आई आई टी कानपुर से पास दो बैंकर मनीष कुमार और अनुराग जैन ने देखा कि भारत में बहुत से ऐसे कर्ज़दार है जिनकी दूरदर्शिता बहुत अच्छी है। लेकिन फाइनेंस की कमी के कारण बिज़नेस नहीं कर पाते। इन व्यवसायों में से कुछ तो बंद हो गये हैं और कुछ 40-50 की ब्याज़ दरों से भुगतान कर रहे हैं।”
अंतर्राष्ट्रीय फाइनेंस कार्पोरेशन के शोध से पता चला है कि फाइनेंस उभरती अर्थव्यवस्थाओं में एसएमई के विकास के लिए बाधा बना हुआ है। बड़ी कम्पनियों के मुकाबले में छोटी कम्पनियों की फाइनेंसिंग अधिक है और कम आय वाले देशों में मध्यस्तर कम्पनियों का एक तिहाई बैंक लोन छोटी कम्पनियों को दिये जाने की सम्भावना है और जो बड़ी कम्पनियों को दिया जाता है उसका आधा। एसएमई को फाइनेंस करने के और भी तरीके है जैसे की लीजिंग और फैक्टरिंग, लेकिन ये अभी विकासशील देशों जैसे भारत में ज्यादा विकसित नहीं हुआ है।
बैंगलोर स्थित कंपनी क्रेडेक्स (पूर्व में मंडी) इस अवसर को भुनाना चाहती है। यह तीसरी पार्टी को रुपये देने की प्रणाली की परेशानियों से गुज़रे बिना ही फाइनेंसरों से धन जुटाने में मदद करता है।
क्रेडेक्स की स्थापना पहले मंडी के रूप में की गयी। सहसंस्थापक और आईआईटी-कानपुर के छात्र रह चुके मनीष कुमार के अनुसार, उन्होंने बिज़नेस की बारीकियाँ अपनी कंपनी खोलने के बाद सीखी। हालांकि वे रुपये कमा रहे थे, लेकिन नगदी के प्रवाह से लाभ का अनुभव नहीं कर सके और मजबूर हो कर बाजार से ऊँची दरों पर फाइनेंस लेना पड़ा। मनीष बताते है “हमने एहसास किया कि भारत में एमएसएमई के लिए फाइनेंस को सही दरों से नही बढ़ा सकते। दरें काफी ऊंची और निश्चित है। लोन देने के मामले में बैंक भी आनाकानी करता है और लोन की मंजूरी या रद्द के लिए तीन महीने लग जाते हैं।”
क्रेडेक्स ”स्थानीय बाजार” एक ऐसा प्लेटफार्म है जहाँ पर फाइनेंसर सत्यापित दलाल पंजीकृत सूची से अपने लिए उधारकर्ता चुन सकता है। और संतुलित जोखिम में अपने धन को बढ़ा सकता है। और व्यवस्थित बोली की प्रक्रिया के द्वारा लौटा सकता है।
मनीष कहते हैं “उधारकर्ता को स्थानीय बाज़ार की तुलना में अपेक्षाकृत कम दरों पर, आसान फाइनेंसिंग और जगह चुनने की आजादी का लाभ मिलता हैं। हम मार्किट में फाइनेंस बढ़ाने के लिए हैं, और हमारी शुरुआत करने का विचार सामान्य मंडी पर आधारित है जहाँ पर कोई भी आकर के बेहतर सौदा कर सकता है। हमने इसलिए इसका नाम मंडी रखा।”
भारत में एसएमई फाइनेंसिंग... मनीष बताते है “एमएसएमई अपना अधिकतर समय फाइनेंस जुटाने में बिताती है जबकि उन्हें कम्पनियों को अच्छा और बेहतर बनाने के लिए काम करना चाहिए, एमएसएमई को लगता है अवैतनिक चालान (अनपेड इनवॉइस) एक बड़ी समस्या है।
“आरबीआई मानता है कि अगर एमएसएमई को सारे चालान टाइम पर भर दिए जायें तो वह उनका लाभ 20 से 25 प्रतिशत तक कर सकते है। वह मानता है कि सरकार पूरी कोशिश कर रही है लेकिन समस्याएं ख़त्म नहीं हो रही हैं और जब तक इस बाजार में कुछ लोग नहीं आते तब तक ये समस्या खत्म नहीं होने वाली है। भारत में एसएमई फाइनेंसिंग में कम से कम 50 बिलियन डॉलर का अंतर है, जो कि अभी तक अव्यवस्थित है। बैंक इस अंतर को भर पाने में असमर्थ है। हम चाहते हैं कि रुपये लगाने वाला तथ्य, आंकड़े और विवरण के आधार पर निर्णय लें। हम एक और एनबीएफसी की फाइनेंसिंग सेवा नहीं लेना चाहते है। हम एक ऐसा फाइनेंसिंग निर्णय लेना चाहते है जो कि बिना भावनाओं वाली हो।”
कंपनी कैसे पैसे बनाता है?... यह पूरी तरह से कमीशन कंपनी है जिसकी कामयाबी उसके द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं पर टिकी है। कंपनी अपना निश्चित हिस्सा दलाल और फाइनेंसर से कमीशन के रूप में लेता है। जब दोनों के बीच में लेन-देन की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है तो दोनों पार्टी कमीशन फ़ीस दे देते हैं।
कंपनी का गणित... इस समय कम से सैकड़ों एमएसएमई कंपनी के माध्यम से पैसा लगाने को तैयार है। सह-संस्थापक इन्वेस्टर्स के 30 करोड़ लगाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मनीष और अनुराग कुछ और इन्वेस्टर्स से बात कर रहे हैं और 70 से 100 करोड़ कुछ हफ़्तों में लगाने की सोच रहे हैं। कंपनी ने अगले पांच साल के लिए 200 फीसदी की वार्षिक सीएजीआर के साथ, अपने अभियान के पहले वर्ष में 40 करोड़ रुपए की सकल व्यापार मूल्य प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य कर रही है। मनीष कहते हैं “हलांकि हम अपने इस साल के अनुमान से ज्यादा ही प्राप्त करेंगे।”
मनीष बताते हैं “वैसे तो कैपिटल फ्लोट या कुछ बैंक इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं परन्तु फाइनेंसर और दलालों को एक ही स्थान पर लाने की कोशिश किसी ने नहीं की। यूके स्थित एक कंपनी मार्किटइनवॉइस का मॉडल मंडी समान है और अभी तक का उनका व्यापार 500 मिलियन डॉलर हो चुका है। ब्रिटिश सरकार के द्वारा एक कंपनी चल रही है आरईसीएक्स। इसका भी मॉडल मंडी से मिलता जुलता है। आरईसीएक्स का गठजोड़ एनवाईएसई से है।
अनुभव...अनुराग और मनीष आईआईटी कानपुर में अपने कॉलेज के दिनों में एक ही विंग में रहते थे। इन दोनों को टेक्नोलॉजी और बैंकिंग का व्यापक अनुभव है। मनीष ने 12 साल सिटीग्रुप, एचएसबीसी और कैपिटल वन जैसी कंपनियों में काम किया है। अनुराग फाइनेंस के साथ टेक्नोलॉजी में भी अग्रणीय है और अपनी रियल एस्टेट डेवलपमेंट कंपनी खोलने से पहले ओरेकल और एचएसबीसी में काम कर चुके हैं। इस समय अनुराग भारत के उत्तर और पूर्व में कोलकाता के विकासशील बाजार में है और मनीष देश के दक्षिणी और पश्चिमी भाग को देख रहे है।
रुकावटे और मुश्किलें...हर एक व्यवसायी शुरुआत में अलग-अलग तरह के अनुभव को पाता है। शुरुआत के दिनों में इन्वेस्टर पैसा लगाने से डरते थे इन्वेस्टर मनीष और अनुराग से इसका सबूत मांगते थे। मनीष कहते है “अवैतनिक चालान पर निर्भर फाइनेंसिंग में जोखिम नहीं होता। यह एक ऐसा विश्वास है, जिससे बहुत से फाइनेंसर धोखे में रहते हैं। इससे हमें संचालन प्रक्रियाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करने में मदद मिली है और हमने काफी हद तक अपनी योजनाओं में सुधार किया है।”
प्रारंभ में मनीष और अनुराग ने अपना अधिकतर समय विचारों को लागू करने के बजाय टेक्नोलॉजी और डिज़ाइन में दिया। लेकिन अब वे अपने ग़लती को समझ गये हैं और अब पूरा ज़ोर कार्य में है, इनका मानना है कि इनकी यह कोशिश भारत में रहने वाले करोड़ों लोगों कि ज़िंदगी में बदलाव ला सकता है।
“हमारी कोशिश है कि हम टेक्नोलॉजी के माध्यम से “जिन लोगों के पास पैसा” और “जिन लोगों को बिज़नस के लिए पैसे की जरुरत है” को साथ लायें। और हम बहुत खुशी होगी अगर हम भविष्य में 10 प्रतिशत भी काम कर पाये।”
(मूल लेखक – आलोक सोनी)... (अनुवाद- भगवान सिंह छिलवाल)