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सोशल एंटरप्राइज के जरिए स्लम में रहने वाली महिलाओं को सशक्त कर रहीं रीमा सिंह

बेंगलुरु की रीमा सिंह ने शुरु किया एक ऐसा स्टार्टअप जो ज़रूरतमंद महिलाओं की आजीविका चलाने के साथ-साथ पर्यावरण को भी कर रहा है संरक्षित...

सोशल एंटरप्राइज के जरिए स्लम में रहने वाली महिलाओं को सशक्त कर रहीं रीमा सिंह

Tuesday January 30, 2018 , 4 min Read

बेंगलुरु में रहने वाली रीमा सिंह, यहां के स्लम और पिछड़े इलाकों में रहने वाली महिलाओं को आजीविका दिलाने में मदद कर रही हैं और उन्हें इसके माध्यम से सशक्त भी बना रही हैं। उन्होंने महिलाओं को एक अवसर देने के साथ ही सस्ते और टिकाऊ कपड़े उपलब्ध कराने की दिशा में काम किया था। रीमा पहले इंग्लैंड में रहती थीं। 2011 में उन्होंने वहां की कई यूनिवर्सिटीज़ के सर्वे के लिए भारत का दौरा किया। उन्होंने बताया, 'यह 2015 की बात है जब मैंने माथिकेरे की कुछ महिलाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें प्रॉडक्ट बेचना सिखाया था। 

असवारी में काम करती महिलाओं के साथ रीमा सिंह

असवारी में काम करती महिलाओं के साथ रीमा सिंह


उन्होंने इन महिलाओं को जूट बैग और फोल्डर बनाने की ट्रेनिंग देने से इस काम की शुरुआत की थी। रीमा आज महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ ही पर्यावरण हितों के लिए भी काम कर रही हैं। 

बेंगलुरु में रहने वाली रीमा सिंह, यहां के स्लम और पिछड़े इलाकों में रहने वाली महिलाओं को आजीविका दिलाने में मदद कर रही हैं और उन्हें इसके माध्यम से सशक्त भी बना रही हैं। उन्होंने महिलाओं को एक अवसर देने के साथ ही सस्ते और टिकाऊ कपड़े उपलब्ध कराने की दिशा में काम किया था। रीमा ने असवारी नाम से एक सोशल एंटरप्राइज शुरू किया है जिसमें लगभग 20 महिलाएं काम कर रही हैं। यह स्टार्टअप बेंगलुरु के माथिकेरे इलाके में स्थित है। यहां गरीब और पिछड़े इलाके की महिलाएं काम करती हैं। रीमा कहती हैं कि जब आप जमीनी स्तर पर जाकर काम करते हैं तब लोगों की असल कहानी पता चलती है।

रीमा पहले इंग्लैंड में रहती थीं। 2011 में उन्होंने वहां की कई यूनिवर्सिटीज़ के सर्वे के लिए भारत का दौरा किया। उन्होंने बताया, 'यह 2015 की बात है जब मैंने माथिकेरे की कुछ महिलाओं को ट्रेनिंग देकर उन्हें प्रॉडक्ट बेचना सिखाया था। जब उन्हें पहली तनख्वाह मिली तो मैंने उन सबके बैंक खाते खुलवाए, इसके बाद अब वे खुद से उसमें पैसे बचाने लगीं। इसके बाद मुझे जो खुशी मिली उसे बयां नहीं किया जा सकता।' वे अमेरिका के एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गैनाइजेशन के लिए काम कर रही थीं तो उन्हें कुछ स्टेशनरी प्रॉडक्ट की जरूरत पड़ी। रीमा ने इन महिलाओं द्वारा बनाए प्रॉडक्ट्स को वहां सप्लाई किया था।

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उन्होंने इन महिलाओं को जूट बैग और फोल्डर बनाने की ट्रेनिंग देने से इस काम की शुरुआत की थी। रीमा आज महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ ही पर्यावरण हितों के लिए भी काम कर रही हैं। वे कहती हैं, 'एक पेड़ लगा देने से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को नहीं बचाया जा सकता है। उसके लिए आपको उन चीजों पर भी अंकुश लगाना पड़ता जिनसे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा होता है।' 2015 में रीमा ने अपने बच्चे को जन्म दिया और उसे कुछ ही दिनों में स्किन की प्रॉब्लम होने लगी। डॉक्टर से मिलने के बाद उन्हें पता चला कि केमिकल डाई की वजह से उनके बच्चे को ऐसा हुआ है। इसके बाद रीमा ने पूरी तरह से नैचुरल प्रॉडक्ट यूज करने का प्रण ले लिया।

ठीक उसी दौरान वह नेलामंगला इलाके में वॉटर सर्वे करवा रही थीं। उन्होंने महिलाओं को जिंदगी के लिए संघर्ष करते देखा। अधिकतर महिलाएं ऐसी थीं जिनके पति या तो बीमार थे या फिर शराब के लती थे। इस हालत में भी वो अपने बच्चों की परवरिश कर रही थीं। सबसे खासी दिक्कत तो पानी की होती थी। कपड़ा उद्योग द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल्स से खतरनाक बीमारी फैलने का डर होता था। उस पानी से स्किन को भी काफी नुकसान होता था।

लोगों को नहीं पता होता कि केमिकल कलर प्रिंटिंग वाले कपड़े नुकसानदेय होते हैं। रीमा का स्टार्टअप असवारी हाथों से बने प्राकृतिक डाई किए कपड़े तैयार करवाती हैं। ये सारे कपड़े सामुदायिक स्तर पर नेलामंगला की महिलाओं द्वारा तैयार किए जाते हैं। ये महिलाएं आज अपनी आजीविका तो चला ही रही हैं साथ ही पर्यावरण को भी संरक्षित कर रही हैं। इसके बाद रीमा बैयप्पनहल्ली इलाके में ऐसे ही महिलाओं को सशक्त करने की शुरुआत करेंगी। वे नैचुरल कलर वाली डाई का मैन्युफऐक्चरिंग हब बनाना चाहती हैं। वे कहती हैं कि इस काम में सरकार का भी समर्थन मिल रहा है।

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