'डाकिया डाक लाया'. . . भारत में कब शुरू हुआ था ये सिलसिला
देश को जोड़ने, आर्थिक विकास में सहयोग और विचार और सूचना के प्रवाह को जारी रखने में डाकिये की भूमिका की जितनी सराहना की जाए कम है. इसलिए ही शायद भारत में प्रायः सभी क्षेत्रीय भाषाओं के लोक साहित्य में डाकिए की कहानियां और कविताएं मिल जातीं हैं. डाक सेवा या डाकिये के सामाजिक महत्त्व से इतर इसका एक कारोबारी और राजनैतिक महत्त्व भी रहा है. भारत में डाक सेवाओं इतिहास भारत के जटिल राजनीतिक इतिहास से निकटता से जुड़ा हुआ है.
बात है 18वीं सदी की जब भारत अंग्रेजों के अधीन था. ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने भारत में कलकत्ता (अब कोलकाता), मद्रास (अब चेन्नई) और बंबई (अब मुंबई) में डाकघर खोले.
हाइलाइट्स
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा संचालित भारत में डाक व्यवस्था स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य कंपनी के आर्थिक और राजनीतिक जरूरतों को पूरा करना था.
भारत में पहला डाकघर कलकत्ता (अब कोलकाता) में खोला गया था.
31 मार्च, 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने डाक सेवाओं को भारत की आम जनता के लिए उपलब्ध कराया.
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा संचालित डाक व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी के आर्थिक और राजनीतिक जरूरतों को पूरा करना था. शुरू में इस “कंपनी मेल” नाम से स्थापित किया गया.
1766 तक आते-आते लॉर्ड क्लाइव (Lord Clive) ने डाक सेवाओं का और विस्तार किया और 31 मार्च, 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) ने डाक सेवाओं को आम जनता के लिए उपलब्ध कराया.
1837 में डाक अधिनियम लागू किया गया ताकि तीनों प्रेसीडेन्सी में सभी डाक संगठनों को आपस में मिलाकर देशस्तर पर एक अखिल भारतीय डाक सेवा बनाई जा सके.
1854 में एक और डाकघर अधिनियम लाया गया जिसके आधार पर मौजूदा भारतीय डाक घर को पूरी तरह सुधारा गया. 1854 में डाक और तार दोनों ही विभाग अस्तित्व में आए. डाकघर और तार विभाग के क्रियाकलापों में एक साथ विकास होता रहा. 1914 के प्रथम विश्व युध्द की शुरूआत में दोनों विभागों को मिला दिया गया.
18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से, 1857 के विद्रोह के बाद, राजनीतिक सत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से खिसकने लगी. कंपनी को अंततः 1858 में समाप्त कर दिया गया और भारत सीधे ब्रिटिश संसद द्वारा शासित एक क्राउन कॉलोनी (The Crown colony) बन गया. जिसके बाद लॉर्ड डलहौजी द्वारा भारत में डाक सेवा को क्राउन के तहत एक सेवा में संशोधित किया. लॉर्ड डलहौजी ने भारत डाकघर अधिनियम 1854 को पारित करने में मदद की जिसके तहत ‘समान डाक दरों’ की शुरुआत हुई.
भारतीय डाक सेवा सिर्फ चिट्ठियां बांटने और संचार का साधन बने रहने तक सीमित नहीं रहा. शुरूआती दिनों में डाकघर विभाग, डाक बंगलों और सरायों का रख रखाव भी करता था. क्योंकि उस दौर में पालकी, नाव, घोड़े, घोड़ागाड़ी डाक ले जाने के साधन हुआ करते थे, इसलिए किसी भी यात्री को यह छूट थी कि एक निश्चित राशि जमा करने के बाद वह डाक ले जाने वाली इन गाड़ियों में सफ़र के लिए अपनी जगह आरक्षित करवा सकता था. यात्री रास्ते में पड़ने वाली डाक चौकियों में आराम भी कर सकता था. यही डाक चौकियां बाद में डाक बंगला कहलाईं.19वीं सदी के आखिर में प्लेग की महामारी फैलने के दौरान, डाकघरों को कुनैन की गोलियों के पैकेट बेचने का काम भी सौंपा गया था.
देश के आज़ाद होने के बाद, डाक सेवाओं की जिम्मेदारी भारत सरकार के पास आ गई. अब डाक सेवा मेल (डाक) पहुंचाने, मनीआर्डर द्वारा पैसे भेजने, लघु बचत योजनाओं के तहत जमा स्वीकार करने, डाक जीवन बीमा (पीएलआई) और ग्रामीण डाक जीवन बीमा (आरपीएलआई) के तहत जीवन बीमा कवरेज प्रदान करने और बिल संग्रह जैसी खुदरा सेवाएं प्रदान करने में शामिल है. डीओपी नागरिकों के लिए वृद्धावस्था पेंशन भुगतान और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) मजदूरी वितरण जैसी अन्य सेवाओं के निर्वहन में भारत सरकार के लिए एक एजेंट के रूप में भी कार्य करता है. 154,965 डाकघरों (मार्च 2017 तक) के साथ, इंडिया पोस्ट दुनिया का सबसे बड़ा डाक नेटवर्क है. भारत ऐसे विकासशील देश में डाक व्यवस्था देश के उन सुदूर गांवों को जोड़ने का एकमात्र साधन है, जो आज भी सूचना तथा संचार क्रांति से वंचित हैं.