नौकरी छोड़ शुरू की गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने की मुहिम, तरीका जानकर खुश हो जाएंगे
इसे विडंबना ही कहेंगे कि एक तरफ भारत खाद्य उत्पादन की दिशा में आत्मनिर्भर होने का दावा करता है, लेकिन दूसरी तरफ भुखमरी के आंकड़ों में दिनोदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है। 2015 में खाद्य और कृषि संगठन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में 194.6 मिलियन लोग कुपोषित हैं और हर दिन लगभग 3,000 लोग भुखमरी और उसकी वजह से होने वाली बीमारियों के कारण मर जाते हैं।
जब भी भुखमरी जैसे मुद्दों पर बात होती है तो हममें से कई लोग अपनी आंखें मूंद लेते हैं, लेकिन 26 साल के हर्षिल मित्तल जैसे लोग कुछ करने का ठान लेते हैं और करके भी दिखा देते हैं। उनके दिमाग में एक आइडिया आया था कि अगर हर घर में थोड़ा सा ज्यादा खाना बन जाए तो उसे गरीबों में बांटा जा सकता है और भूखे लोगों का पेट भरा जा सकता है।
हर्षिल ने अपने दोस्तों सेलिना इलायस, आशुतोष शर्मा, और ऋषिओम शाह की मदद से 2015 में 'Let’s Feed बेंगलुरु ड्राइव' शुरू किया। चारों ने शुरू में हर रोज 40 पैकेट भोजन बांटकर शुरुआत की थी। आज इनकी टीम पांच शहरों में तीन लाख से अधिक लोगों का पेट भरती हैं। इस एनजीओ के साथ 4,000 से अधिक पंजीकृत वॉलंटीयर्स जुड़ गए हैं।
हर्षिल बताते हैं, 'हम घरों में जाकर हर रविवार को उनसे कुछ अतिरिक्त भोजन बनाने का अनुरोध करते हैं। इसे हम कंटेनरों में पैक करते हैं। हमारे वॉलंटियर्स इन भोजनों को इकट्ठा करते हैं और उन्हें फिर ज़रूरतमंदों में बांट देते हैं।' हर्षिल कहते हैं कि जरूरतमंद भूखे लोगों को दो वक्त का भोजन खिलाने से बढ़कर कोई खुशी नहीं हो सतती है। वे आगे कहते हैं, 'हर किसी को भूख और बीमारी से दूर रहकर जिंदगी बिताने का हक है। हम किसी को भोजन देकर दरअसल जिंदगी में उसका भरोसा पक्का कर रहे होते हैं।'
इस नेक काम के लिए हर्षिल को 2017 में नम्मा बेंगलुरु अवॉर्ड में राइजिंग स्टार खिताब से सम्मानित किया गया था। उन्होंने भुवनेश्वर के जेवियर इंस्टीट्यूट ऑऑफ मैनेजमेंट में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में डिग्री हासिल की है और उसके बाद बेंगलुरु में एसेंचर में सीएसआर टीम में काम भी किया। वे कहते हैं, 'अपने काम के दौरान मैंने महसूस किया कि कॉर्पोरेट संस्थान सिर्फ उन्हीं एनजीओ के साथ खुद को जोड़ते हैं जो नामी होते हैं और जिनकी अच्छी खासी पहचान होती है। इसमें कहीं न कहीं उन लोगों का नुकसान होता है जो वाकई में जरूरतमंद होते हैं। यही वजह थी कि मैंने खुद से इस काम को शुरू किया था। मेरे साथ काम करने वाले दोस्त सेलिना, आशुतोष और रिशिओम भी कुछ इसी तरह का विचार रखते थे इसलिए वे मेरे साथ आ गए।'
एक तरफ हर्षिल ने खाना पहुंचाने के विचार पर काम करना शुरू किया तो उनके दोस्त तिलक नगर इलाके में रहने वाले लोगों के घर में जाकर थोड़ा ज्यादा खाना पकाने का आग्रह किया। हर्षिल कहते हैं क्योंकि इस काम में किसी को पैसे नहीं देने थे इसलिए कई सारे लोगों ने सकारात्मक तरीक से इसमें हिस्सा लिया। हमने पहली बार में झुग्गियों में रहने वाले 40 परिवारों को खाना उपलब्ध कराया था।
हर्षिल का कारवां धीरे-धीरे बढ़ता ही गया और आज बेंगलुरु के अलावा दिल्ली, वारंगल, कोलकाता और पुणे में उनके वॉलंटियर्स इस काम में लगे हैं। वे कहते हैं कि उनके इस काम से भले ही पूरी तरह से भुखमरी को नहीं समाप्त किया जा सकता, लेकिन इससे लोगों को दूसरों की सेवा करने का मौका जरूर मिलता है।
एक वाकये को याद करते हुए हर्शिल बताते हैं, 'मुझे अभी भी वो दिन याद है जब हमने लोगों को बिरयानी खिलाई थी। उस दिन एख बच्चा मेरे पास आया और मुझसे खाना मांगने लगा। मैंने उससे कहा कि हमने उसे पहले ही बिरयानी दे दी है। तब उस बच्चे की मां हमारे पास आई और कहा कि उस बच्चे ने हमेशा साधारण चावल खाए हैं इसलिए वह बिरयानी के चावलों को पहचान नहीं पा रहा था। तब मुझे लगा कि यह पहल वास्तव में लोगों के जीवन में बदलाव ला रही है।'
खाने के अलावा युवाओं की इस टीम ने लगभग 20,000 कपड़े और 60,000 सैनिटरी नैपकिन जरूरतमंदों को वितरित किए हैं। हर्षिल ने योरस्टोरी से बात करते हुए कहा, 'हम लोगों तक खाना या कोई अन्य सामग्री वितरित करने से पहले उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा और रोड सेफ्टी जैसे मुद्दों के बारे में समझाते हैं। इससे उनकी जिंदगी बेहतर होती है और वे अच्छी जिंदगी बिताने के बारे में सोचते हैं।'
सोशल मीडिया का भी हर्षिल ने अच्छे से इस्तेमाल किया। इसके माध्यम से उन्होंने कई अच्छे लोगों को अपनी इस मुहिम से जोड़ा। वे बताते हैं, 'हमने ऐसा सिस्टम बनाया है जिसमं प्रत्येक घर या डोनर एक खास वॉलंटियर को टैग करता है। इससे दानदाताओं के लिए वॉलंटियर्स पर नजर रखना आसान हो गया है। इससे यह भी सुनिश्चित होता है कि जरूरतमंदों तक ही भोजन पहुंचता है।' हर्षिल कहते हैं कि कोई भी प्रयास छोटा या बड़ा नहीं होता। जब लोगों की मदद की बात आती है तो छोटी कोशिश भी बड़ा परिवर्तन रखने की क्षमता रखती है।
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