The Psychology of Money: आप अमीर बनेंगे या नहीं ये पैसा सायकोलॉजी तय करती है
मनी, बिजनेस फाइनेंस से जुड़ी किताबें अक्सर लोग इसलिए पढ़ने से बचते हैं क्योंकि वो काफी जटिल भाषा में लिखी होती हैं. मगर सायकोलॉजी ऑफ मनी में लेखक ने बड़ी आसान भाषा में समझाया है. किताब में 19 छोटी छोटी कहानियों के जरिए मनी से जुड़ी कई बड़ी बातों को समझाया है.
पर्सनल फाइनेंस से जुड़ी आपको कई ऐसी किताबें मिल जाएंगी जो बताती हैं कि कौन सा स्टॉक बढ़िया, एक मजबूत कंपनी कैसे चुनें, कैसे निवेश करें, कहां निवेश करेंगे. मगर ऐसी गिनी चुनी किताबें है जो आपको बताती हैं कि पर्सनल फाइनेंस है क्या, ये क्यों जरूरी है और ये बात सॉइकॉलजी ऑफ मनी से बेहतर कौन बता सकता है.
मॉर्गन हाउसेल एक अवॉर्ड विनिंग ऑथर, लेखक और स्तंभकार हैं. उन्होंने अपनी किताब सायकोलॉजी ऑफ मनी में रुपये-पैसे के पीछे सायकोलॉजी का कनेक्शन बताया है. अगर आप पैसे को लेकर कुछ जमीनी चीजें सीखना और समझना चाहते हैं तो आप इस किताब को बेशक पढ़ सकते हैं.
किताब की मुख्य बातें
सबसे अच्छी बात मनी बिजनेस फाइनेंस से जुड़ी किताबें अक्सर लोग इसलिए पढ़ने से बचते हैं क्योंकि वो काफी जटिल भाषा में लिखी होती हैं. मगर सायकोलॉजी ऑफ मनी में लेखक ने बड़ी आसान भाषा में समझाया है. किताब में 19 छोटी छोटी कहानियों के जरिए मनी से जुड़ी कई बड़ी बातों को समझाया है. नीचे इस किताब से मिलने वाली कुछ 11 प्रमुख बातों का जिक्र करने जा रहे हैंः
1. पैसा नहीं उसे लेकर आपका रवैया मायने रखता है. मॉर्गन एक कहानी में बताते हैं कि कैसे एक अमेरिकी सफाईकर्मी स्मार्ट इनवेस्टिंग के जरिए करोड़पति बन जाता है. वहीं दूसरी तरह एक मोटी सैलरी कमाने वाला कंपनी का सीईओ अपने गलत रवैये की वजह से बैंकरप्ट हो जाता है.
2. हर किसी के लिए पैसे के मायने अलग होते हैं. कुछ लोगों के लिए जिनके पास रहने को घर भी नहीं है उनके लिए मिनिमम वेज भी बहुत बड़ी रकम होगी. वहीं दूसरी तरफ किसी कंपनी के एक्जिक्यूटिव या अधिकारी एक लाख डॉलर की सैलरी पर भी नाखुश रह सकते हैं. कुल मिलाकर आप कितना ज्यादा पैसा कमा रहे हैं ये आपकी खुशी नहीं तय करता बल्कि आप किस माहौल, किस परिवेश से आ रहे हैं उस पर निर्भर करता है.
3. कितना पैसा काफी होता है? हम सभी को लगता है कि हम पैसे के लिए काम करते हैं. जिस दिन काम भर पैसा मिल जाएगा काम करना बंद कर देंगे. लेखक एक नामी जालसाज बर्नी मडॉफ जिसने इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी पॉन्जी स्कीम चलाई उसका उदाहरण देकर समझाते हैं कि ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है.
सच ये है कि मडॉफ पहले से ही एक बड़े और सफल बिजनेसमैन थे. मगर इसके बाद भी उन्होंने धोखे से पैसे कमाने के लिए पॉन्जी स्कीम चलाई. उन्हें जितने पैसे की जरूरत थी उतना वो अपने कारोबार से बड़े आराम से कमा रहे थे लेकिन लालच के चक्कर में उन्होंने सब कबाड़ा कर दिया.
मडॉफ की कहानी सुनकर ये समझ सकते हैं कि आप दुनिया के सबसे अमीर बन जाने के बाद भी जरूरी नहीं कि संतुष्ट हों. लेखक की भाषा में आपको मालूम होना चाहिए कि आपको असल में एक सुकून भरी जिंदगी जीने के लिए कितने पैसे की जरूरत है.
4. पावर ऑफ कंपाउंडिंग. वारेन बफे को भले ही अब तक के सबसे महानतम निवेशकों से गिना जाता हो मगर सच ये है कि उनकी 99 फीसदी जायदाद 50 साल की उम्र के बाद बनी. बफे के पास इतनी संपत्ति होने का क्रेडिट जाता है कंपाउडिंग को.
5. अमीर होने और अमीर बने रहने में बहुत फर्क है. अमीर होने के बहुत सारे रास्ते हैं मगर अमीर बने रहने का सिर्फ एक ही रास्ता है और वो है सोच समझकर खर्च करना.
6. बिना सोचे समझे रिस्क नहीं लें. मार्केट में हजारों कंपनियों के शेयर मिल रहे हैं मगर इनमें से गिने चुने शेयर ही वाकई आपको अमीर बना सकते हैं. बदकिस्मती से इन्हें ढूंढना बहुत मुश्किल है. इसके लिए आप इंडेक्स फंड खरीद सकते हैं और काफी हद तक एक औसत मुनाफा कमा सकते हैं, जो कुछ नहीं कमाने से तो बेहतर है.
7. इतिहास हमेशा खुद को नहीं दोहराता. निवेशक हमेशा बाजार का अनुमान लगाने के लिए इतिहास के पन्ने पलट कर देखते हैं. मगर ऐसा नहीं है. इतिहास की परिभाषा में ये एक अप्रत्याशित और असमान्य घटानाओं का एक दस्तावेज है. अगर आप अप्रत्याशित घटनाओं के दोबारा होने का अनुमान लगा रहे हैं तो इसे बेवकूफी ही कहा जाएगा. मिसाल के तौर पर अमेरिका हर चार साल में मंदी का सामना करता है. मगर 15 सालों से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वहां मंदी जैसी कोई चीज नहीं दिखती है.
8. आत्ममुग्ध होने की जरूरत नहीं है. दुनिया लगतार बदल रही है. आज जो चीज चल रही है वो जरूरी नहीं कि आगे भी चले. इंडेक्स फंड भी 50 साल पुराने हैं, US 401k भी 43 साल पुराना है, वेंचर कैपिटल तो 26 साल पहले आया और बिटकॉइन उसका तो जिक्र भी क्या करना. कुल मिलाकर ये समझा जा सकता है कि आज जिस चीज का ट्रेंड है जरूरी नहीं कि हमेशा वही रहेगा. खुद को हमेशा बदलाव के लिए तैयार रखें.
9. पैसे के बदले समय मिलता है. आज हम जो पैसा लगाते हैं उससे पैसिव इनकम जेनरेट होती है, जो एक समय के बाद आपकी सैलरी से ज्यादा हो सकती है. ऐसा होने पर आप आराम से नौकरी छोड़ सकते हैं और जो आपका दिल करना चाहे, जो आपका पैशन हो उसे फॉलो कर सकते हैं. आपको पैसे के लिए किसी के लिए नौकरी करने की जरूरत नहीं होगी. फाइनैंशली फ्री होंगे.
10. संपत्ति वो है जो नजर नहीं आती. आपने लोगों को ये कहते हुए सुना होगा कि काश मैं करोड़पति होता मगर असल में उनके कहने का मतलब होता है कि मैं काश मैं एक करोड़ रुपये खर्च कर पाता. लेकिन असल में अगर आपको एक करोड़ मिले और आप उसे पूरी तरह खर्च कर दें तो आपकी ये आदत आपको जल्द ही कंगाल भी बना सकती है.
तो अगली बार जब आप किसी तो महंगी गाड़ी या महंगे अपार्टमेंट में रहते हुए देखें तो ये जरूर समझ लें कि वो अमीर नहीं बल्कि अमीर होने का दिखावा कर रहे होंगे. आप लोगों की अमीरियत तो देख सकते हैं मगर उनके खाते में असल में कितने पड़े हैं आप इसका अंदाजा नहीं लगा सकते. इसलिए बेहतर होगा कि किसी की संपत्ति भर देखकर उससे प्रभावित न हों.
11. कोई भी बेवकूफ नहीं है. जब भी आप कोई शेयर खरीदते हैं तो याद रहे कि किसी ने वो शेयर बेचा है. इसका मतलब है कि जब आप कोई शेयर खरीदते हैं तो आप उसे सस्ता समझ रहे होते हैं मगर दूसरी तरह वही स्टॉक बेचने वाले के लिए महंगा होता है. कुल मिलाकर हम कहना ये चाहते हैं कि लोगों को हमेशा यही लगता है कि वो बढ़िया डील कर रहे हैं और उस वक्त के लिए हो सकता है ये अच्छी डील हो भी.
मिसाल के तौर पर आज से 20 साल पहले किसी ने ऐमजॉन के शेयर लिए होंगे तो वो इस समय 2600 फीसदी के फायदे पर बैठा होगा. मगर वहीं किसी के लिए ऐमजॉन के शेयर इस लेवल पर वाजिब लगेंगे क्योंकि वो एक ई-कॉमर्स कंपनी के तौर पर ऐमजॉन के बिजनेस का अंदाजा लगा रहा होगा.
निष्कर्ष
दी सायकोलॉजीऑफ मनी को हर उस इंसान को पढ़नी चाहिए जो निवेश करना चाहता है या कर रहा है. किताब पर्सनल फाइनेंस से लेकर, इनवेस्टिंग तक और फाइनेंशल डिसिजन तक के बारे में बहुत डिटेल में बताती है. हममें से कई लोग पैसे को खुशियों से मापते हैं मगर किताब इस मानसिकता को सिरे से गलत साबित करती है. साथ में पैसे को लेकर कैसा बिहेवियर रखना चाहिए ये भी बताती है. कितने भी बुक रिव्यू लिख दिए जाएं मगर मेरा मानना है कि इस किताब की सीख इसे पढ़कर ही समझ आएगी.
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