समलैंगिक बेटे को हील वाले सैंडल पहनने थे, खड़ा हो गया 'यूनीक' बिज़नेस
एक ऐसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म की कहानी, जहां LGBTQ लोग बेचते हैं सामान.
"एक दिन मेरा बेटा घर आया हुआ था. मैंने उससे कहा कि चलो आज एन्जॉय करते हैं, डांस करेंगे. मेरी बहन और उसकी बेटी भी आए हुए थे. हमने गाना बजाया और मेरे बेटे ने नाचना शुरू किया. वो माधुरी के गाने पर ऐसे नाचा कि मैं डिस्टर्ब हो गई. ये लड़कियों की तरह क्यों नाच रहा है! मैंने सोचा. अगले दिन मेरी बहन की बेटी ने मुझे बताया, "मासी, भाई गे है." मेरे तो होश उड़ गए. मैं बहुत रोई और सोचती रही कि मेरे साथ ही क्यों!"
55 साल की सिमी नंदा आज अपने उसी 27 साल के 'गे' बेटे की बिज़नेस पार्टनर हैं और देश के हज़ारों-लाखों 'गे' बेटों के लिए 'मां जैसी' हैं. सिमी आज अपने जैसे दूसरे पेरेंट्स को समझाती हैं कि अपने समलैंगिक बच्चों से मोहब्बत करना क्यों ज़रूरी है.
BeUnic: एक अतरंगी-सतरंगी बिजनेस
सिमी एक सिंगल मदर थीं. डिवोर्स के बाद टूट चुकी थीं. वो खुद भी पहले जूतों का बिजनेस करती थीं. वहीं आशीष खुद एक HR प्रोफेशनल हैं और आज भी नौकरी करते हैं. एक दिन आशीष अपनी मां के पास जाकर बोले, "मां, मुझे अपने साइज़ की हील्स नहीं मिलतीं! मुझे 'ड्रैग' करने में दिक्कत होती है." ड्रैग एक ऐसी कला है जिसमें पुरुष स्त्री की तरह, या स्त्री पुरुष की तरह तैयार होकर परफॉर्म करते हैं. समलैंगिक और ट्रांस लोगों के लिए ये अभिव्यक्ति का तरीका रहा है.
बेटियां बड़ी होती हैं तो मांओं की चप्पलें पहनने लगती हैं. लेकिन बेटे के साइज़ की 'लेडीज' फुटवियर कहां मिले? उसी पल जन्म हुआ एक विचार का, जो बीयूनीक कहलाया. अपने नाम को सार्थक करता ये एक यूनीक प्लेटफ़ॉर्म है जहां आपको रेंज ऑफ़ प्रोडक्ट्स, जैसे: कपड़े, जूते, स्टेशनरी, घर की साज-सज्जा के सामान, जूलरी, बेल्ट, किताबें वगैरह मिलते हैं. ये सभी प्रोडक्ट LGBTQIA+ (यानी मोटे तौर पर समलैंगिक और ट्रांस) लोगों द्वारा बनाए गए होते हैं. कुल मिलाकर, बीयूनीक क्वियर समाज के लोगों के लिए अपनी कला को दिखाने और उसे बेचने का जरिया बनता है.
बीयूनीक की शुरुआत साल 2019 में हुई थी. सिमी के पास पहले ही फुटवियर बनाने वाली कंपनी में काम करने का अनुभव था. जब आशीष ने उनसे हील्स की बात की तो उन्हें लगा क्यों हम खुद फुटवियर और अन्य चीजें बनाना शुरू करें. लेकिन बिजनेस की राह आसान नहीं होती. आशीष बताते हैं:
"पहले साल मात्र 20,000 रुपये की सेल हुई और हम सोचने पर मजबूर हो गए कि गड़बड़ क्या है. क्या हमारे डिज़ाइन अच्छे नहीं हैं? क्या हमारे सामान की क्वालिटी अच्छी नहीं है? लेकिन फिर हमने बाकी आंत्रप्रेन्योर्स के प्रोडक्ट्स जोड़ने शुरू किए. और लोगों को ये बताना शुरू किया कि उनकी खरीद का एक हिस्सा क्वियर समाज की मदद के लिए दिया जाएगा, तो ज्यादा लोग जुड़ना शुरू हो गए."
आज बीयूनीक से 30 आंत्रप्रेन्योर जुड़ चुके हैं जो इस ईकॉमर्स साइट पर अपना सामान बेच रहे हैं. इनमें से कुछ बहुत छोटे हैं और अपने घर पर बैठकर प्रोडक्ट बनाते हैं. कुछ ऐसे हैं जो बड़े बिजनेस हैं. बीयूनीक इन व्यापारियों की मदद करता है ब्रांडिंग और लोगो डिज़ाइनिंग जैसी चीजों में. साथ ही किसी को नया कलेक्शन निकालने में अगर छोटे उधार की ज़रुरत है तो वो भी उपलब्ध करवाता है. इसके अलावा कॉर्पोरेट टाई-अप्स के चलते इन इन छोटे व्यापारियों को अलग-अलग कॉर्पोरेट दफ्तरों में स्टॉल लगाकर प्रोडक्ट्स बेचने का ऑप्शन भी मुहैया करवाता है.
"ये कपड़े पहनकर गे नहीं बन जाओगे"
बीयूनीक जैसे प्लेटफॉर्म के लिए ग्रो करना किसी और बिजनेस की अपेक्षा ज्यादा कठिन है. क्योंकि इसके साथ LGBTQ का टैग लगा हुआ है. समलैंगिकता को लेकर समाज में जिस तरह की घृणा और डर पसरा हुआ है, उसे दोहराने की ज़रुरत नहीं है.
आशीष चोपड़ा बताते हैं:
"हमारी वेबसाइट तक कई लोग आते हैं और पूछते हैं कि आपके प्रोडक्ट सिर्फ LGBTQ लोगों के लिए हैं क्या. हम उन्हें बार-बार बताते हैं कि इन कपड़ों को बनाने वाले LGBTQ कम्युनिटी के लोग हैं, इन्हें पहनना आपको समलैंगिक नहीं बना देगा. इन कपड़ों को कोई भी पहन सकता है."
हालांकि इंटरनेशनल स्तर पर 'इनक्लूजन' और 'डाइवर्सिटी' की कवायद बीयूनीक के पक्ष में काम करती दिख रही है, ऐसा आशीष का मानना है. उनके मुताबिक आजकल बड़े-बड़े कॉर्पोरेट समलैंगिकता और ट्रांसपर्सन्स के प्रति संवेदनशील हो रहे हैं. बड़े कॉर्पोरेट समलैंगिक और ट्रांस व्यक्तियों की हायरिंग करना चाहते हैं, और उनको खुलकर अपनी पहचान स्वीकारने के लिए प्रेरित करते हैं. साथ ही उनकी ज़रूरतों का ख़याल रखते हुए इस तरीके के टाई-अप करते रहते हैं जिससे समलैंगिक और ट्रांस कर्मचारियों के प्रति स्वीकार्यता बढ़े.
सिमी बताती हैं:
"जब मुझे पता चला कि हम वॉलमार्ट के रजिस्टर्ड वेंडर बन रहे हैं, वो मेरे लिए सबसे बड़ा मौका था. फिर माइक्रोसॉफ्ट से परचेज़ का ऑफर आया."
ये ऑफर्स आगे बढ़ते ही जाएंगे, ऐसा आशीष और सिमी का मानना है. आज बीयूनीक पर लगभग 30 वेंडर और 400 प्रोडक्ट्स हैं.
संदर्भ सहित व्याख्या
बेटे की 'असलियत' पता चलने के बाद सिमी के जीवन में काले बादल छा गए थे. एक निर्मम डिवोर्स से गुजरने के बाद उन्हें लगने लगा था, "ऐसा मेरे ही साथ क्यों होता है?" एक साइकॉलजिस्ट के साथ अपॉइंटमेंट फिक्स किया. साइकॉलजिस्ट ने बताया: "आपका बेटा अभी बीच में है. अगर आपने छोड़ दिया तो पूरा गे हो जाएगा. ठीक करने का प्रयास किया तो 'नॉर्मल' हो जाएगा." किसी भी डॉक्टर के लिए ये कहना न सिर्फ मूर्खतापूर्ण है, बल्कि आपराधिक दायरे में आना चाहिए. क्योंकि डॉक्टर के इस कथित भरोसे के चलते सिमी अपने बेटे को बदलने के लिए फ़ोर्स करने लगीं. उस बेटे को, जो बिलकुल 'नॉर्मल' था. क्योंकि समलैंगिकता बिलकुल 'नॉर्मल' है.
मगर बेटे से बदल जाने की अपेक्षा रखना उनके और उनके बेटे, दोनों के लिए और दुख लेकर आता रहा. उनके बीच अक्सर कड़वी बातें हो जातीं. सिमी का कॉन्फिडेंस इस कदर डोल गया कि उन्होंने खुद को इससे निकालने के लिए एक पब्लिक स्पीकिंग फोरम जॉइन किया. साथ ही उनके बड़े बेटे, यानी आशीष के बड़े भाई, जो आशीष की समलैंगिकता को लेकर हमेशा सकारात्मक रहे, ने सिमी को धीरे धीरे समझाया. कि बदलने की ज़रूरी आशीष को नहीं, समाज को है.
पब्लिक स्पीकिंग फोरम में 6 महीने का कोर्स करने के बाद एक पब्लिक स्पीच देनी थी. सिमी ने अपने डर को ख़तम करने के लिए टॉपिक चुना 'कमिंग आउट ऑफ़ द क्लोज़ेट'. जो असल में समलैंगिकों के लिए अंग्रेजी भाषा का एक रूपक है, जिसका अर्थ है दुनिया को अपने समलैंगिक होने की सच्चाई बताना.
स्पीच के अंत में सिमी ने कहा: "love them, hug them, kiss them, because closet is not the right place to be in." यानी समलैंगिक बच्चों को प्रेम से गले लागइए, चूमियों और उन्हें शर्म के अंधेरे में घुटने मत दीजिए.
सिमी कहती हैं कि भले ही उनका बिजनेस कोई बड़ा बिजनेस न हो. मगर उन्हें इस बात का गर्व है कि ये उन लोगों के लिए मौके लेकर आता है जिन्हें मौके और प्रेम, दोनों की सबसे ज्यादा ज़रुरत है.