जीएसटी दर 18 प्रतिशत रखने की मांग के साथ ई-कामर्स कंपनियों को जीएसटी से अलग रखने की वकालत
वस्तु एवं सेवाकर(जीएसटी) की दर तय करने के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की समिति द्वारा विचार विमर्श शुरू करने के बीच उद्योग जगत ने आज इसकी अधिकतम दर 18 प्रतिशत रखे जाने की मांग की। वहीं ई-कामर्स कंपनियों ने खुद को इस नयी कर प्रणाली से अलग रखे जाने की वकालत की।
इसके अलावा उन्होंने सरकार से इस नए कर कानून में दंड के प्रावधानों को हल्का करने की गुजारिश करते हुए कहा कि इससे जुड़ा सूचना प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचा खड़ा करने के लिए उन्हें पर्याप्त समय की जरूरत है और एक अप्रैल 2017 तक की समयसीमा में इसे लागू करना उनके लिए थोड़ा मुश्किल है।
फिक्की ने कहा कि बहुत कुछ इससे जुड़े नियमों व अधिसूचना जारी होने के समय पर निर्भर करेगा और अप्रैल 2017 की समयसीमा इस मामले में मुश्किल दिखती है। पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा की अध्यक्षता वाली राज्यों के वित्त मंत्रियों की इस अधिकार प्राप्त समिति ने जीएसटी पर उद्योग संगठनों, कारोबारियों और सनदी लेखाकारों के साथ विचार विमर्श किया।
बैठक के बाद मित्रा ने कहा, ‘‘समिति खुले और पारदर्शी तरीके से भारतीय कारोबार जगत से राय ले रही है फिर वह चाहें बड़े, मध्यम या लघु उद्योग घराने ही क्यों ना हों। दूसरी ओर से भी जीएसटी को लेकर विभिन्न बिंदुओं को रखा गया है।’’ भारतीय उद्योग जगत की ओर से जीएसटी के लिए एक वहनीय दर रखने की मांग की गई है जो महंगाई पर अंकुश रखते हुए कर राजस्व में पर्याप्त बढोतरी लाने में समर्थ हो।
आज की बैठक में ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनियों ने कहा कि वह विक्रेता और क्रेता को महज एक ‘मंच’ प्रदान करते हैं और बिक्री से कोई धन नहीं कमाते, तो ऐसे में फ्लिपकार्ट, अमेजन इंडिया और स्नैपडील विक्रेताओं के लिए ‘सेवा प्रदाता’ कंपनियां हैं और केवल सेवा से आय पर जीएसटी चुकाने को बाध्य हैं।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष नौशाद फोब्र्स ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि अधिकतम दर 18 प्रतिशत की मानक दर रखने से राजस्व पर असर नहीं पड़ेगा और इससे कर में पर्याप्त उछाल सुनिश्चित होगा। इसके अलावा केंद्र सरकार ने शुरूआती पांच साल में राज्यों को जीएसटी के कारण राजस्व में किसी प्रकार के नुकसान की पूरी भरपायी करने पर सहमत हो चुका है ऐसे में 18 प्रतिशत की दर बहुत अच्छी रहेगी।’’ वहीं फिक्की ने अपनी ओर से सुझाव दिया कि ‘मानक दर’ तर्कसंगत होनी चाहिए और यह ऐसी होनी चाहिए ताकि कि महंगाई और कर चोरी की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे तथा अनुपालन सुनिश्चित हो सके। फिक्की ने कहा कि जिन वस्तुओं को सभी राज्यों द्वारा उत्पाद शुल्क और वैट से छूट प्राप्त है उन्हें जीएसटी में भी छूट वाली श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
फोब्र्स ने कहा कि सीआईआई इसे लागू करने की एक अप्रैल 2017 की समयसीमा के प्रति प्रतिबद्ध है और इसको पूरा करने के लिए हम सब कुछ करेंगे। फोब्र्स ने कहा कि यदि हम इस समयसीमा के लिए मिलकर कार्य करें और यदि हमारे पास कुछ प्रावधानों को लेकर जितना जल्दी हो सके उतनी स्पष्टता हो तो हम अपनी सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली को अद्यतन कर पाएंगे और जल्द से जल्द इसे लागू कर सकेंगे।
एसोचैम ने इस संबंध में जीएसटी के शुरूआती दो साल में दंड के प्रावधानों को हल्का करने मांग की है। उसने केवल कर धोखाधड़ी और संग्रह कर जमा नहीं करने के मामले में ही दंडीय प्रावधान को हल्का रखने की मांग की है। उसने यह भी मांग की कि केंद्र और राज्य सरकारों को जीएसटी से संबंधित कानूनी प्रावधानों पर सलाह देने के लिए एक व्यवस्था बनानी चाहिए। -
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष नौशाद फोब्र्स ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि अधिकतम दर 18 प्रतिशत की मानक दर रखने से राजस्व पर असर नहीं पड़ेगा और इससे कर में पर्याप्त उछाल सुनिश्चित होगा। इसके अलावा केंद्र सरकार ने शुरूआती पांच साल में राज्यों को जीएसटी के कारण राजस्व में किसी प्रकार के नुकसान की पूरी भरपायी करने पर सहमत हो चुका है ऐसे में 18 प्रतिशत की दर बहुत अच्छी रहेगी।’’ वहीं फिक्की ने अपनी ओर से सुझाव दिया कि ‘मानक दर’ तर्कसंगत होनी चाहिए और यह ऐसी होनी चाहिए ताकि कि महंगाई और कर चोरी की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे तथा अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
फिक्की ने कहा कि जिन वस्तुओं को सभी राज्यों द्वारा उत्पाद शुल्क और वैट से छूट प्राप्त है उन्हें जीएसटी में भी छूट वाली श्रेणी में रखा जाना चाहिए। फोब्र्स ने कहा कि सीआईआई इसे लागू करने की एक अप्रैल 2017 की समयसीमा के प्रति प्रतिबद्ध है और इसको पूरा करने के लिए हम सब कुछ करेंगे। फोब्र्स ने कहा कि यदि हम इस समयसीमा के लिए मिलकर कार्य करें और यदि हमारे पास कुछ प्रावधानों को लेकर जितना जल्दी हो सके उतनी स्पष्टता हो तो हम अपनी सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली को अद्यतन कर पाएंगे और जल्द से जल्द इसे लागू कर सकेंगे।
एसोचैम ने इस संबंध में जीएसटी के शुरूआती दो साल में दंड के प्रावधानों को हल्का करने मांग की है। उसने केवल कर धोखाधड़ी और संग्रह कर जमा नहीं करने के मामले में ही दंडीय प्रावधान को हल्का रखने की मांग की है। उसने यह भी मांग की कि केंद्र और राज्य सरकारों को जीएसटी से संबंधित कानूनी प्रावधानों पर सलाह देने के लिए एक व्यवस्था बनानी चाहिए। -पीटीआई