परमानेंट कमीशन मिलने के बाद भी सेना में महिलाओं के साथ भेदभाव, कोर्ट ने मांगा सरकार से जवाब
34 महिलाओं ने सेना में हो रहे लैंगिक भेदभाव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
“हमारी सामाजिक व्यवस्था पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाई है, समानता की बात झूठी है.”
- जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह
सेना में महिलाओं को परमानेंट कमीशन दिए जाने के लिए दो दशक लंबी लड़ाई पर अपनी आखिरी मुहर लगाते हुए मार्च, 2021 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस शाह की पीठ यह बात कही थी. 80 महिलाओं द्वारा दायर की गई याचिका और उस पर सालों चली सुनवाई के बाद आखिर आया यह फैसला देशभर के अखबारों की सुर्खियां थीं और इस देश में महिलाओं की बराबरी सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा दिए गए कुछ बड़े, प्रमुख और ऐतिहासिक फैसलों में से एक.
आखिर क्यों न हो, सेना से लेकर सरकार तक सबने जान लगा दी थी कि ऐसा न हो. सरकार ने कोर्ट में कहा था-
“पुरुष महिला अधिकारियों से आदेश लेना पसंद नहीं करेंगे.”….
“महिलाओं में पुरुषों की तरह निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती.”
ये अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि सुनवाई के दौरान कोर्ट में सरकारी वकील के द्वारा उच्चारे गए वाक्य हैं. इसके अलावा महिलाओं की शारीरिक संरचना, उनकी बायलॉजी, प्रेग्नेंसी, मैटरनिटी लीव, पीरियड्स की बातें कोर्ट में बार-बार दोहराई गईं और उसे अपने पक्ष में एक मजबूत हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया.
फिलहाल जीत महिलाओं की हुई और सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं को सेना में परमानेंट कमीशन दिए जाने का आदेश दिया. लेकिन ऐसा लग रहा है कि कानूनी लड़ाई जीतने के बाद भी सेना में महिलाओं की राह अभी आसान नहीं है.
हाल ही में 34 महिलाओं में सेना में जेंडर भेदभाव का आरोप लगाते हुए और महिला होने के कारण उन्हें समय पर प्रमोशन न दिए जाने के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ उस पीठ का हिस्सा थे, जिसके आदेश पर महिलाओं को परमानेंट कमीशन मिला था. फिलहाल इस मामले में न्यायालय ने केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी करते हुए उससे दो हफ्ते में जवाब मांगा है. साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि इन सभी महिलाओं को वरिष्ठता दी जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली महिला सैन्य अधिकारियों में कर्नल (टीएस) प्रियंवदा ए मर्डीकर और कर्नल (टीएस) आशा काले शामिल हैं. इन महिलाओं ने विशेष चयन बोर्ड पर महिलाओं के साथ प्रमोशन में भेदभाव करने का आरोप लगाया है. सेना में परमानेंट कमीशन पा चुकी इन महिलाओं का कहना है कि उनके जूनियर पुरुष अधिकारियों को भी प्रमोशन दिया जा रहा है, लेकिन महिलाओं को बहुत सिस्टमैटिक तरीके से इग्नोर किया जा रहा है.
सेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट आर. बालासुब्रमण्यन पेश हुए. सुनवाई के दौरान पीठ ने वकील से सवाल किया कि महिला अधिकारियों के लिए सेना में चयन बोर्ड का गठन नहीं किया जा रहा है, जबकि पुरुष अधिकारियों के लिए ऐसा किया जा रहा है. क्या हम इसके पीछे की वजह जान सकते हैं?
इस सवाल के जवाब में आर. बालासुब्रमण्यन का कहना था कि महिला अधिकारियों के लिए विशेष चयन बोर्ड बुलाया जाएगा. हम केंद्रीय वित्त मंत्रालय से मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं.
इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई को अगले दो हफ्तों के लिए टालने का आदेश दे दिया. साथ ही इस बीच सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कहा. कोर्ट में सुनवाई के दौरा सेना के वकील आर. बालासुब्रमण्यन ने न्यायालय से अपील की कि इस मामले में अभी कोई आदेश पारित न करें. सेना अपनी तरफ से इन महिला अधिकारियों की शिकायतों का जल्द समाधान करने की पूरी कोशिश कर रही है.
Edited by Manisha Pandey