कैंसर को मात देने वाली तीन अपराजिता जासमीन, वैष्णवी और अंजू बनीं मिसाल
'ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता माह' पर विशेष
कठिन विपरीत हालात से ज्यादातर लोग अक्सर हिम्मत हार जाते हैं लेकिन मिसाल वही बनते हैं, जो खराब से खराब, यहां तक कि जानलेवा वक़्त को भी पछाड़ कर अपनी सफल-सुखद जिंदगी की दास्तान लिखने लगते हैं। ऐसी ही मिसाल बनीं कैंसर सर्वाइवर तीन अपराजेय महिलाएं हैं जासमीन लूला, वैष्णवी और अंजू गुप्ता।
इस समय पूरी दुनिया में अक्तूबर, 'ब्रेस्ट कैंसर जागरूकता माह' के रूप में मनाया जा रहा है। वर्ष 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, विश्व में 24 फीसदी महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर की पीड़ा झेल रही हैं। भारत में औसतन हर दूसरी महिला की मृत्यु ब्रेस्ट कैंसर से हो रही है। कैंसर का नाम सुनते ही खौफ खाए पीड़ित को लगता है कि जैसे मौत उसके दरवाजे पर दस्तक दे रही है लेकिन ऐसी भी महिलाएं हैं, जिनसे खुद कैंसर हार गया। उनका जीवट लोगों के लिए मिसाल ही नहीं, जीवनदान जैसा प्रेरणा स्रोत है। ऐसी ही एक अपराजिता स्री तो ऐसी हैं, जो कैंसर को मारकर अपने देश की राष्ट्रपति बन चुकी हैं।
कैंसर को मात देने वाली विद्यादेवी भंडारी नेपाल की पहली महिला राष्ट्रपति हैं। इससे पहले वह रक्षा मंत्री रह चुकी हैं। इसी तरह गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स कायम कर चुकीं कैंसर सर्वाइवर, दुनिया की 116 वर्षीय सबसे बुजुर्ग जापानी महिला केन तनाका भी कैंसर को पछाड़कर इतनी लंबी जिंदगी जी रही हैं।
इंदौर (म.प्र.) की 40 वर्षीय जासमीन लूला ऐसी कैंसर सर्वाइवर बिजनेस वुमन हैं, जिनके बूते पर ही उनके विदेशों तक फैले बेकरी के बिजनेस का सालाना टर्नओवर करीब 10 करोड़ रुपए है। आज से छह साल पहले जासमीन ने जब फैक्ट्री लगाकर बेकरी का कारोबार शुरू किया था, उनके साथ सिर्फ दो लोग खड़े थे। उन्ही दिनो दुर्भाग्य से पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है। यह सुनकर धक्का तो लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इलाज के दौरान उनकी छह बार कीमोथैरेपी और 31 रेडिएशन थैरेपी हुई। इसके बावजूद उन्होंने अपना बेकरी कारोबार भी संभाले रखा।
तीन साल के कठिन परिश्रम से जासमीन का कारोबार चल निकला। ब्रांड बन चुका उनका केक ऑनलाइन भी बिकने लगा। तभी एक दिन उनको अपने चिकित्सकों से खुशखबरी मिली कि वह कैंसर को भी मात दे चुकी हैं। इस लड़ाई में उनको अपने पति से भी हौसला मिला। इस समय उनकी बेकरी फैक्ट्री में ढाई सौ प्रकार के केक के उत्पादन में सौ से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं।
द्वारिका (दिल्ली) में रह रहीं 65 वर्षीय अंजू गुप्ता भी एक ऐसी ही साहसी कैंसर सर्वाइवर हैं। कैंसर को पछाड़कर वह पिछले चार वर्षों से तो मैराथन प्रतिस्पर्धाओं में भी भाग ले रही हैं। वह कहती हैं- 'कैंसर कॉमा है, फुलस्टॉप नहीं'। दस साल तक कारपोरेट सेक्टर में डाटा एनालिस्ट रहीं अपनी दो बेटियों की माँ अंजू गुप्ता को वर्ष 2015 में ब्रेस्ट कैंसर हो गया था। उसके बाद पूरी हिम्मत के साथ उन्होंने अपने हालात से सकारात्मक सबक लिया। उन्होंने एक अदद संकल्प लिया कि वह कत्तई नकारात्मक नहीं सोचेंगी। उनकी बड़ी बेटी सुप्रीम कोर्ट में वकील और और छोटी ऊबर कंपनी में कार्यरत हैं। मां के कैंसर पीड़ित होने पर बड़ी बेटी ने दस महीने तक अपनी नौकरी से लंबा अवकाश ले लिया था।
इलाज के साथ ही अंजू गुप्ता टाइट रूटीन के साथ बागवानी, रोजाना पांच बजे से मॉर्निंग वॉक, हास्य कविसम्मेलनों, मैराथन दौड़, सोशल एक्टिविटीज आदि में स्वयं को व्यस्त रखने लगीं। अब तो वह कहती हैं कि कैंसर ने ही मेरी ज़िंदगी को इतना खूबसूरत, कलरफुल बना दिया है।
एक ऐसी ही भारतीय मूल की, मलेशिया में रह रहीं 29 वर्षीय कैंसर सर्वाइवर हैं वैष्णवी इन्द्रन पिल्लई। लोग उनको इंस्टाग्राम पर नवि इंद्रण पिल्लई के नाम से जानते हैं। आम तौर से लोगों की जिंदगी कैंसर के एक अटैक में बिखर जाती है लेकिन वह दो बार कैंसर को मात दे चुकी हैं। वर्ष 2013 में पहली बार उनको 22 साल की उम्र में पता चला कि कैंसर है। उस समय वह क्लासिकल इंडियन डांसर बनने के सपने देख रही थीं। एक साल तक कैंसर से उनकी पहली जंग चली और उन्होंने उसे पराजित कर दिया। उसके बाद अध्ययन के लिए ऑस्ट्रेलिया चली गईं।
वर्ष 2018 में दोबारा वैष्णवी को पता चला कि जिस ब्रेस्ट कैंसर को वह हरा चुकी थीं, उसने दोबारा उनको दबोच लिया है। उसके बाद उनकी कैंसर से दूसरी जंग छिड़ गई। इस बार भी वह कैंसर को मात देने में कामयाब हो गईं। अब वह अपने क्लासिकल इंडियन डांसर बनने के सपने को पूरा कर रही हैं। इतना ही नहीं, टैलेंट शो के माध्यम से अन्य कैंसर सर्वाइवर्स के लिए पैसे भी जुटा रही हैं। हाल ही में उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर 'द बोल्ड इंडियन ब्राइड' नाम से एक ब्राइडल फोटोशूट भी साझा किया है।