इंटर फेल मनोज शर्मा ने आईपीएस बनकर कायम की ऊंची मिसाल
"मुरैना (म.प्र.) के रहने वाले एवं इस वक़्त मुंबई के अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर मनोज शर्मा एक वक़्त में जब इंटर में फेल हो गए थे, भैंस चराने से लेकर ऑटो चलाने तक की जलालतें उन्हे झेलनी पड़ी, ताने-उलाहने अलग से, लेकिन उनकी मेहनत इस कदर रंग लाई कि वह अपने शानदार लक्ष्य तक पहुंच गए। अब वह मिसाल बन चुके हैं।"
मुरैना (म.प्र.) के रहने वाले मनोज शर्मा नई पीढ़ी के लिए मिसाल बन चुके हैं। अपने गृहजनपद में जौरा तहसील के ग्राम बिलगांव निवासी मनोज शर्मा वही हायर सेकंड्री में तो क्लास के चुनिंदा छात्रों में रहे क्योंकि नकल करके अपनी लापरवाही पर कलई डाल लेते थे लेकिन बारहवीं क्लास में वह जतन भी काम नहीं आया और वह फेल हो गए। उसके बाद मामूली पढ़ाई-लिखाई के चलते उन्हे कहीं ढंग का रोजी-रोजगार नहीं मिला और वह टेंपो चलाकर दिन काटने लगे। यही से उनको अपनी जिंदगी के टेढ़े-मेड़े रास्तों ने ऐसा सबक दिया कि भविष्य की राह ही मुड़ चली। दरअसल, बारहवीं में मनोज शर्मा के असफल होने की वजह रहे वह एसडीएम, जिन्होंने एग्जाम के दौरान सेंटर पर ऐसा चाक-चौबंद इंतजाम करवा रखा था कि परिंदा भी पर न मार सके। मनोज शर्मा के दिमाग में बात घर कर गई कि क्या कोई एसडीएम इतना भी ताकतवर हो सकता है।
फेल हो जाने से उनको अपने गांव वालों के सामने बेइज्जती महसूस होने लगी। फेल होने से पहले वह जब भैंस चराते समय उपन्यास पढ़ते थे तो उनके गांव के लोगों को लगता था कि बहुत पढ़ाई करता है लेकिन फेल हुए तो गांव के लोग हैरान रह गए। उनके फेल हो जाने से उनके ग्रामीण विकास अधिकारी पिता ओमप्रकाश शर्मा को भी भारी मानसिक कष्ट हुआ। उन्ही दिनो उनके बचपन के दोस्त राकेश शर्मा ने हौसला दिया कि तुम्हे कुछ बनकर दिखाना है। फिर क्या था, अगले ही साल 70 प्रतिशत अंकों से हायर सेकंडरी की परीक्षा पास कर गए। कॉलेज में टॉपर्स रहे। इसके बाद उन्होंने सोचा कि अभी तो वक़्त उनके हाथ में है, समय निकला नहीं है, वह खुद भी ठीक से तैयारी कर सिविल सेवा की परीक्षा में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।
उन्ही दिनो की बात है, एक दिन मनोज शर्मा का टेंपो पकड़ गया। वह उन्ही एसडीएम के पास मदद मांगने पहुंच गए। एसडीएम से उनको कुछ ऐसे टिप्स मिले कि वह सीधे ग्वालियर पहुंच गए। किसी तरह खा-पीकर दिन बिताते हुए वहां के एक मंदिर परिसर में भिखारियों के साथ सो जाते। एक लाइब्रेरी में चपरासी की नौकरी मिल गई। उसके बाद उन्होंने एक-एक कर पुस्तकालय की ज्यादातर किताबें पढ़ डालीं। लाइब्रेरी पहुंचने वालों से बातचीत भी उनकी आगे की राह की ताकत बनी। अब वह जी-जान से एसडीएम बनने की तैयारी में जुट गए।
उन्ही दिनो मनोज शर्मा की जिंदगी में एक दोस्त लड़की का प्रवेश हुआ। वह अपने इंटर फेल होने की बात उससे छिपाते हुए ग्वालियर छोड़कर दिल्ली पहुंच गए। इतना ही नहीं, वह उस लड़की से वादा कर गए थे कि अफसर बनकर दिखाएंगे। दिल्ली में कुछ घरों में दस्तक देकर मकान मालिकों के कुत्ते टहलाकर प्रति कुत्ता चार-चार सौ रुपए से उनका भोजन पानी कुछ दिनों तक चलता रहा। उधर, वह सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी भी करते रहे। एक कोचिंग सेंटर के शिक्षक दिव्यकीर्ति ने उनकी एडमिशन फीस जमा कर दी थी। जब वह सिविल सेवा परीक्षा में बैठे तो पहला अटेंप्ट प्री तक निकाल ले गए। चौथी कोशिश में उनको मेंस तक पहुंचने में कामयाबी मिल गई। आखिरकार मेंस भी क्लीयर कर लिया और आईपीएस सेलेक्ट हो गए। आज मनोज शर्मा मुंबई में अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर हैं। उनकी गिनती महाराष्ट्र के ईमानदार अफसरों में होती है।
मनोज शर्मा बताते हैं कि जब चौथे अटेंप्ट में प्री और मैन्स निकालने के बाद इंटरव्यू के दौरान सेलेक्शन कमेटी ने उनका बॉयोडॉटा देखा तो पूछ दिया कि यहां आईआईटी, आईआईएम क्वालिफाई कर चुके लोग आए हैं, उनके सामने हम आपको सिलेक्ट क्यों करें। मनोज शर्मा का जवाब था, 12वीं में फेल होने के बाद मैं यहां तक पहुंच गया तो मेरे अंदर कुछ तो क्वालिटी होगी। बस, उनके इसी जवाब पर चयन कमेटी का माथा ठनका और वह सेलेक्ट कर लिए गए।
वह बताते हैं कि कॉलेज की पढ़ाई में सक्सेस के बाद उनके घर वाले तो कहने लगे थे कि वह कहीं क्लर्क-वर्क की नौकरी कर लें लेकिन वह तो अपना टारगेट तय कर चुके थे और सारी चुनौतियों पर पार पाते हुए अपने शानदार लक्ष्य तक पहुंच गए। अब तो उन पर अनुराग पाठक ने एक किताब भी लिख डाली है।