Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ADVERTISEMENT
Advertise with us

अब स्कूलों में कहानियां सुनाएंगी दादी-नानी

कहानी सुनने-सुनाने की ये परम्परा बच्चों के मनोरंजन के साथ ही उन्हे संस्कारित भी करती हैं। प्राचीन भारतीय मूल्यों के प्रति बच्चों के बालमन में श्रद्धा भी उत्पन्न करती हैं। साथ ही संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी अग्रसित होते हैं।

अब स्कूलों में कहानियां सुनाएंगी दादी-नानी

Monday May 22, 2017 , 5 min Read

एकाकी घरों के चलन ने इस पीढ़ी को दादी-नानी से प्रेरक और काफी कुछ सिखा देने वाली कहानियां सुनने का मौका छीन लिया है। हममें से अधिकतर लोग अपनी दादी-नानी को घेरकर बैठने और उनसे जिद करके कहानियां सुनने के सुख से वंचित रहे हैं। सोती सुंदरी की कहानी, एक परी और राक्षस की कहानी जैसी ही और भी कई ढेरों साहित्यिक धरोहरें जो हमारे बुजुर्गों ने हमें दी थीं, आज उनकी यादें धुंधली होने लगी हैं। शिक्षा विभाग के एक रिपोर्ट के अनुसार 80 फीसदी बच्चे टीवी और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में इस कदर दिन भर उलझे रहते हैं कि उनका सामाजिक विकास ठीक से नहीं हो पा रहा है। बचपन में जब बच्चे सोने जाते थे तो दादी-नानी से कहानियां सुनती थीं। लेकिन आजकल न तो बच्चों को और न ही परिवार को इस बात की फुरसत है। इसे लागू करने से बच्चों का विकास तो होगा ही घर पर रह रहे बुजुर्गों को भी बच्चों के साथ समय बिताकर अच्छा लगेगा।

<h2 style=

फोटो साभार: NDTVa12bc34de56fgmedium"/>

शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्व वर्षों के अनुभव के आधार पर बच्चों को अपनी दादी-नानी से कहानियां सुनने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। परिवारों में दादी-नानी व अन्य बुजुर्ग भी अपने बच्चों को उत्साह से पारम्परिक मूल्यों से संबंधित कहानियां सुनाते हैं। यह परम्परा कोई आज की नहीं है बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीय परिवारों में चली आ रही है। ये कहानी सुनने-सुनाने की परम्परा बच्चों के मनोरंजन के साथ ही उन्हे संस्कारित भी करती हैं। प्राचीन भारतीय मूल्यों के प्रति बच्चों के बालमन में श्रद्धा भी उत्पन्न करती हैं। साथ ही संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी अग्रसित होते हैं।

एकाकी घरों के चलन ने इस पीढ़ी को दादी-नानी से प्रेरक और काफी कुछ सिखा देने वाली कहानियां सुनने का मौका छीन लिया है। हममें से अधिकतर लोग अपनी दादी-नानी को घेरकर बैठने और उनसे जिद करके कहानियां सुनने के सुख से वंचित रहे हैं। सोती सुंदरी की कहानी, एक परी और राक्षस की कहानी जैसी ही और साहित्यिक धरोहरें जो हमारे बुजुर्गों ने हमें दी थीं, कहीं न कहीं उनकी यादें धुंधली होने लगी हैं। लेकिन राजस्थान सरकार के शिक्षा विभाग ने एक नई पहल की है।

'एक शेर है, वो घने जंगल में रहता था। एक बुढ़िया थी, उसके चार बेटे थे...' ऐसी ही रोमांचक दादी-नानी की कहानियां अब बच्चों को गवर्नमेंट स्कूलों में सुनने को मिलेंगी। स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की दादी-नानी या फिर किसी अन्य बुजुर्ग महिला से अनुरोध कर स्कूलों में उन्हें बुलाया जाएगा, जो बच्चों के साथ बातें करते हुए उन्हें प्रेरक और मनोरंजक कहानियां सुनाएंगी।

माध्यमिक शिक्षा के डायरेक्टर बीएल स्वर्णकार ने सभी डीईओ को आदेश दिए हैं, कि नये सेशन से इसकी शुरुआत हो जानी चाहिए। इसके अनुसार क्लास 1 से 5 तक के सभी सरकारी स्कूलों में महीने के आखिरी शनिवार को बालसभा लगाएगी जाएगी, जिसमें दादी-नानी आकर अपनी कहानियां सुनाएंगीं।

शिक्षा विभाग के उपनिदेशक अरुण कुमार शर्मा के अनुसार, इसके पीछे सोच ये है कि 'सामाजिक आचार-व्यवाहार में बच्चे बढ़ें और पारिवारिक बनें। एक दूसरे से जुड़े रहें। क्योंकि दादी-नानी की कहानियां बहुत ही मीठे स्वाद की हुआ करती थी, जो कुछ न कुछ सीख देती थी। इससे बच्चे तो संस्कारी बनेंगे ही, साथ ही उनकी बुद्धिमता भी बढ़ेगी।' शिक्षा विभाग के एक रिपोर्ट के अनुसार 80 फीसदी बच्चे टीवी और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में इस कदर दिन भर उलझे रहते हैं कि उनका सामाजिक विकास ठीक से नहीं हो पा रहा है। बचपन में जब बच्चे सोने जाते थे तो दादी-नानी से कहानियां सुनती थीं। लेकिन आजकल न तो बच्चों को और न ही परिवार को इस बात की फुरसत है। इसे लागू करने से बच्चों का विकास तो होगा ही घर पर रह रहे बुजुर्गों को भी बच्चों के साथ समय बिताकर अच्छा लगेगा।

ये भी पढ़ें,

दिल्ली में 'सच्ची सहेली' बन गई है टीनएज लड़कियों की दोस्त

इसके लिए शिक्षा विभाग कहानियों का एक सैंपल भी देगा, जिसके आधार पर स्कूल में आने वाले बुजुर्ग अपनी कहानियां सुनाएंगे। शिक्षा विभाग का इस काम में कोई अतिरिक्त पैसे भी खर्च नही होंगें। स्कूल के टीचर बच्चों के घर जाकर उनकी दादी-नानी को स्कूल आकर कहानियां सुनाने के लिए प्रेरित करेंगे। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पूर्व वर्षों के अनुभव के आधार पर बच्चों को अपनी दादी-नानी से कहानियां सुनने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। परिवारों में दादी-नानी व अन्य बुजुर्ग भी अपने बच्चों को उत्साह से पारम्परिक मूल्यों से संबंधित कहानियां सुनाते हैं। ये परम्परा कोई आज से नहीं है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीय परिवारों में चली आ रही है। कहानी सुनने-सुनाने की ये परम्परा बच्चों के मनोरंजन के साथ ही उन्हे संस्कारित भी करती हैं। प्राचीन भारतीय मूल्यों के प्रति बच्चों के बालमन में श्रद्धा भी उत्पन्न करती हैं। साथ ही संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी अग्रसित होते हैं।

दूसरे शनिवार को होगी बाल सभा

हर महीने के दूसरे शनिवार को होने वाली बाल सभा में विद्यालय में पढऩे वाले विद्यार्थियों की दादी-नानी अथवा किसी अन्य बुजुर्ग महिला को आमंत्रित किया जाएगा। वे बच्चों के साथ सहज संवाद करते हुए परम्परागत प्रेरकमनोरंजक कहानियां बच्चों को सुनाने के लिए कार्यक्रम में भाग लेंगी।

बच्चों को मिलेंगे संस्कार

ये एक बेहतरीन पहल है। बालसभा तो पहले भी होती थी, लेकिन दादी-नानी की मनोरंजक कहानियां और संस्कार बच्चों को स्कूलों में पहली बार सुनने को मिलेंगे। ये प्रयास बच्चों को संस्कारित करने में सार्थक सिद्ध होगा।

ये भी पढ़ें,

लाखों कमाने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट्स बदल रहे हैं एक गांव की तस्वीर