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आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार की जिंदगी को पटरी में लाने की कोशिश करती है युवाओं की एक मंडली

आत्महत्या करने वाले किसान के परिवार की जिंदगी को पटरी में लाने की कोशिश करती है युवाओं की एक मंडली

Saturday March 05, 2016 , 5 min Read

ज़रूरत के समय बारिश आज भी देश के किसानों के लिए वरदान है और कई बार ज़रूरत न होने पर अचानक हुई बारिश किसानों के लिए अभिशाप। इन दोनों स्थितियों में से एक भी स्थिति में बारिश ने साथ नहीं दिया तो बस समझ सकते हैं कि कहर किसानों पर ही गिरेगा। ऐसा होन से किसानों की सारी मेहनत और पैसा दोनों बर्बाद होता है। ऐसे में मेहनत का कोई मोल भले न हो पर जो पैसे बर्बाद हुए उसकी भरपाई के लिए किसान परेशान होने लगता है। किसान पहले साल तो किसी तरह इस उम्मीद में गुजार देता है कि अगले साल बारिश होगी, लेकिन जब लगातार दूसरे साल भी यही हालात रहते हैं तो वह टूट जाता है। मजबूरन कई बार वो इतना विवश हो जाता है कि उसे आत्महत्या जैसा कदम उठना पड़ता है। इस समय ये समस्या महाराष्ट्र के विदर्भ में सबसे ज्यादा है। ऐसी स्थिति में किसान का परिवार बिखर जाता है क्योंकि घर में कमाने वाला कोई दूसरा नहीं होता। ऐसे किसान परिवारों की मदद करने की कोशिश कर रहा है अकोला जिले में काम करने वाला संगठन ‘युवाराष्ट्र’।


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‘युवाराष्ट्र’ चार दोस्तों का मिलकर बनाया गया संगठन है। ये चार दोस्त हैं डा.नीलेश पाटिल, धनंजय मिश्रा, अविनाश नकट और विलास राठौर। डा. नीलेश ने योरस्टोरी को बताया,

"हम चारों लोग अलग-अलग किसान संगठनों के लिए काम कर रहे थे। कुछ समय पहले जब हम सोशल मीडिया के जरिये एक दूसरे से जुड़े तो हमने हमने सोचा कि क्यों ना अपना संगठन बनाया जाये। जिसके बाद हमने अगस्त 2015 में ‘युवाराष्ट्र’ का स्थापना की।” आज वाट्सऐप में इनके 22 ग्रुप बने हैं जिसमें कि करीब 5 हजार लोग इनके साथ जुड़े हैं।"


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‘युवाराष्ट्र’ महाराष्ट्र के अकोला जिले में ना सिर्फ आत्महत्या करने वाले किसान परिवार की मदद करने का काम करता है बल्कि किसानों के हक की लड़ाई भी लड़ रहा है। इनका कहना है कि डेढ़ साल के अंदर ही अकेले अकोला जिले में 18सौ किसानों ने सूखे के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। किसानों की इस तरह आत्महत्या करने के बाद उनके परिवार बेसहारा हो जाते हैं। तब ये लोग स्थानीय लोगों की मदद से अपनी संस्था के जरिये उस किसान परिवार की मदद करने का काम करते हैं जिसने कर्ज की वजह से आत्महत्या कर ली हो। जिन किसानों ने आत्महत्या की होती है ये उनके बच्चों के पढ़ाई का खर्च उठाते हैं और उनके घर में राशन का ख्याल भी रखते हैं। इसके अतिरिक्त ‘युवाराष्ट्र’ उन परिवारों की विशेष मदद करता है, जिन तक किसी कारण वश सरकारी मदद नहीं पहुंच पाती। अब तक ‘युवाराष्ट्र’ करीब 196 ऐसे आत्महत्या करने वाले किसान परिवारों की मदद कर चुका है।


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नीलेश बताते हैं, 

"ऐसे किसान परिवारों में कमाने वाला कोई नहीं होता है ऐसे में इन परिवारों को अपने पैरों परा खड़ा करना हमारे लिए सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। हम लोग इन परिवारों में किसी को सिलाई मशीन, अगरबत्ती की मशीन, किसी को जनरल स्टोर बना कर देते हैं तो कुछ किसान परिवारों को पोल्ट्री फॉर्म का काम सिखाते हैं। जिससे की ये लोग किसी तरह अपनी आजीविका चला सकें।"

दूसरी तरफ ‘युवाराष्ट्र’ ग्रामीण विकास और एग्रीकल्चर के जरिये 10 गांवों के समूह का विकास कर इन इलाकों में ग्रामीण रोजगार के मौके पैदा कर रहा है। इन 10 गांवों में रहने वाले कई लोग इनसे जुड़ चुके हैं। इस दौरान ये किसानों को आर्गेनिक खेती, पानी का संरक्षण, उन्नत किस्म के बीज आदि के बारे में बताते हैं। ये लोग किसानों को उनके उत्पाद के बेहतर मूल्य दिलाने के लिए किसानों से सीधे दाल, आटा, मैदा, तेल, अचार आदि लेकर सीधे बाजार में बेचते हैं। इनकी इस मुहिम से जहां एक ओर किसानों को सीधे फायदा पहुंच रहा है वहीं ग्राहकों को भी सस्ता और आर्गेनिक सामान मिल रहा है। यही वजह है कि आये दिन दूसरे गांव भी उनकी इस मुहीम में जुड़ रहे हैं। इस काम में अकोला जिले के 500 किसान अब तक इनके साथ जुड़े चुके हैं।


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फंडिग के बारे में बात करते हुए डॉक्टर नीलेश का कहना है कि “इस समय हमारे संगठन को किसी भी प्रकार की सरकारी मदद नहीं मिल रही है। हमारे साथ जो 5 हजार लोग सोशल मीडिया के जरिये जुड़े हैं वही लोग आपस में मिलकर मदद करते हैं इसके अलावा कुछ मदद विदेश से भी मिलती है।” ‘युवाराष्ट्र’ की टीम में 50 सक्रिय सदस्य हैं, जो समय निकाल कर इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए नीलेश का कहना है कि इस साल मई तक हमारी योजना रूरल डिवेलपमेंट के तहत डेयरी फार्मिंग की शुरूआत करने की है। डेयरी फार्मिंग के जरिये इनकी योजना बायो गैस और बायो गैस से बिजली बनाने की है। इस काम के लिए इनकी नाबार्ड से बातें चल रही है। अब इन लोगों की किसानों और उनके परिवारों को ध्यान में रखते हुए एक मोबाइल मेडिकल वैन शुरू करने की भी है। इस वैन के जरिये दूर दराज में रहने वाले लोगों का छोटी बीमारियों का इलाज होगा और ये वैन हर गांव में 2 घंटा रूकेगी। मरीज की हालत ज्यादा खराब होने पर ये उसे शहर के अस्पतालों में लाएंगें।