न्यूजीलैंड की यूनिवर्सिटी में टॉपर बनीं बिहार की शानिनी
न्यूजीलैंड में जॉब करते हुए वेलिंगटन विश्वविद्यालय में टॉपर बनी ये बिहार की लड़की...
बिहार की लड़कियां लगातार विदेशों में भारत का नाम रोशन कर रही हैं। अब लखीसराय (बिहार) की शानिनी भारत की उन मेधावी छात्राओं में एक रहीं, जिन्होंने न्यूजीलैंड में जॉब करते हुए वेलिंगटन विश्वविद्यालय में इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (प्रोग्रामिंग)-2017 में टॉप किया है। उनको 'बेस्ट वुमन स्टूडेंट ऑफ यूनिवर्सिटी-2018' से सम्मानित किया गया है। वह भारत की अब तक की एक मात्र ऐसी सौभाग्यशाली स्टुडेंट मानी जा रही हैं।
न्यूजीलैंड में शानिनी की सफलता और सम्मान ने यह साबित कर दिया है कि भारत की लड़कियां देश ही नहीं, विदेशों में भी बड़ी कामयाबी की मिसाल बनती जा रही हैं। इसके साथ ही कॉमर्स और आर्ट्स के स्टूडेंट्स बड़ी संख्या में पढ़ाई के लिए अब यूएस पहुंचने लगे हैं। ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज रिसर्च के लिए जानी जाती है।
बिहार की लड़कियां लगातार विदेशों में अपनी मेधा का परचम फहरा रही हैं। हाल ही में बिहार की राजधानी पटना की मधुमिता शर्मा ने एक करोड़ आठ लाख रुपए के सालाना पैकेज पर स्विट्ज़रलैंड स्थित गूगल के ऑफिस में टेक्निकल सॉल्यूशन इंजीनियर की नौकरी ज्वॉइन की है। इतने बड़े पैकेज पर किसी बड़ी कंपनी में जॉब करने वाली वह बिहार की दूसरी ऐसी शख्सियत हैं। एक ऐसी ही शख्सियत के रूप में सामने आई हैं लखीसराय की शानिनी। यद्यपि हमारे देश के शिक्षाविद इस ओर भी आगाह कर रहे हैं कि आडंबर और घुटन समाज में ही नहीं, एजुकेशन में भी अध्ययन की सहजता को आघात पहुंचा रही है।
आज बच्चों के विकास का मापदंड परीक्षा में प्राप्त किए गए अंकों को माना जा रहा है। माता-पिता अपने बच्चों से अधिकाधिक अंक लाने की हर दम उम्मीद लगाए रहते हैं, जो बच्चों के स्वाभाविक विकास को कमजोर कर देता है। इससे बच्चों की नैसर्गिक प्रतिभा कुंठित होने लगती है। ऐसे में अभिभावकों को ही नहीं, सरकार को भी समझना होगा कि पढ़ाई जिंदगी के लिए है, न कि पढ़ाई के लिए जिंदगी। बच्चों के मापदंड का आधार उसका सर्वांगीण विकास होना चाहिए न कि किताबी ज्ञान। इस तरह के दबावों से गुजरने के बावजूद शानिनी पिछले दिनो न्यूजीलैंड के वेलिंगटन विश्वविद्यालय में इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (प्रोग्रामिंग)-2017 में टॉप करने के बाद 'बेस्ट वुमन स्टूडेंट ऑफ यूनिवर्सिटी-2018' से सम्मानित हुई हैं। वह भारत की अब तक की एक मात्र ऐसी सौभाग्यशाली छात्रा रही हैं।
लखीसराय (बिहार) के बालगुदर उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक शशि भूषण कुमार की बेटी शानिनी की प्रारंभिक पढ़ाई-लिखाई लखीसराय के सरकारी महिला विद्या मंदिर से हुई है। वर्ष 2000 में दसवीं बोर्ड एग्जाम में उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने भागलपुर के एसएम कॉलेज से वर्ष 2002 में आईएससी पास किया। साइंस स्ट्रीम से आर्ट स्ट्रीम में आई और वर्ष 2005 में अर्थशास्त्र से स्नातक, फिर भागलपुर विश्वविद्यालय से ही वर्ष 2007 में इकॉनोमिक्स में एमए किया। उसी दौरान गया (बिहार) के टेकारी निवासी आईआईटियन अशोक कुमार से उनकी शादी हो गई। अशोक कुमार न्यूजीलैंड में इंजीनियर हैं। दो बच्चों की मां शानिनी इन दिनों पति के साथ रह कर न्यूजीलैंड के एएंडजेड बैंक में नौकरी भी कर रही हैं।
शानिनी ने नौकरी और घर-गृहस्थी से तालमेल बैठाकर आज तक अपना एजुकेशन थमने नहीं दिया है। वह कहती हैं कि उन्हें अपने पति से हर कदम पर पूरा-पूरा सहयोग मिलता है। बच्चों को स्कूल भेजने के बाद वह खाली समय में नौकरी और पढ़ाई करती हैं। इसके लिए उनके पति से ही प्रोत्साहन मिला है। नौकरी और एजुकेशन, दोनों एक साथ इसलिए भी संभव हो सके हैं कि न्यूजीलैंड में स्टुडेंट के लिए पार्ट टाइम जॉब की भी सुविधा है। 'बेस्ट वुमन स्टूडेंट ऑफ यूनिवर्सिटी' से सम्मानित होने के बाद शानिनी अचानक चर्चाओं में छा गई हैं। शानिनी की इस उपलब्धि पर उनका गृहनगर लखीसराय खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
वह शिक्षक परिवार से हैं और संयोग से उनकी शादी भी एक ऐसे ही परिवार में हो गई। उनकी मां मंजू रानी स्थानीय मध्य विद्यालय में टीचर हैं। उनके श्वसुर शिववचन सिंह पटना एजी ऑफिस के सीनियर ऑडिटर हैं। शानिनी ने वर्ष 2007 में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र से एमए में यूनिवर्सिटी में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। वह वर्ष 2009 में पति अशोक कुमार के पास न्यूजीलैंड चली गईं। उसी साल उनकी न्यूजीलैंड की राजधानी वेलिंगटन के एएनजेड बैंक में नौकरी भी लग गई। उसके बाद उन्होंने नौकरी करते हुए वेलिंगटन इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला भी ले लिया। परिवार की बिटिया के टॉप करने, अवार्ड से सम्मानित होने पर मां मंजू देवी, पिता शशिभूषण कुमार की तो खुशी का ठिकाना नहीं है।
न्यूजीलैंड में शानिनी की सफलता और सम्मान ने यह साबित कर दिया है कि भारत की लड़कियां देश ही नहीं, विदेशों में भी बड़ी कामयाबियों की मिसाल बनती जा रही हैं। इसके साथ ही कॉमर्स और आर्ट्स के स्टूडेंट्स बड़ी संख्या में पढ़ाई के लिए अब यूएस पहुंचने लगे हैं। ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज रिसर्च के लिए जानी जाती है।
आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन में 2024 तक पीजी के विदेशी स्टूडेंट्स की संख्या ढाई लाख तक पहुंच सकती है। ब्रिटेन में अब तक सबसे ज्यादा विदेशी पीजी स्टूडेंट्स चीन के बाद भारत के हैं। कमोबेश ऐसी ही स्थितियां जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, रूस आदि की हैं। रूस की यूनिवर्सिटीज में 2012 से लगातार सालाना साठ फीसदी ज्यादा भारतीय स्टूडेंट्स पहुंच रहे हैं। वैसे भी भारतीय छात्र अब लगभग हर साल किसी न किसी विदेशी एजुकेशन सिस्टम में बड़ी सफलताएं अर्जित करने लगे हैं।
पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर जब ब्रिटिश उच्चायोग ने 17 से 25 वर्ष की छात्राओं के लिए प्रतियोगिता का आयोजन किया तो उनकी विजेता छात्राओं को एक दिन के लिए भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त बनने का मौका मिला। उस कठिन प्रतियोगिता में चयन के दौरान कुल 45 छात्राओं ने अपने वीडियो प्रस्तुत किए, जिसमें से किसी एक छात्रा प्रतिभागी का चयन होना था। यह अत्यंत मुश्किल काम था। आखिरकार नोएडा के एमिटी लॉ स्कूल की रुद्राली पाटिल को सफलता मिली। उनको एक दिन के लिए ब्रिटिश उच्चायुक्त के रूप में कार्य करने का अवसर मिला। ऐसी सफलताएं निश्चित ही भारतीय, खासकर छात्राओं के लिए अत्यंत उत्साहजनक होती हैं। इतना ही नहीं इंडियन स्टूडेंट्स को बड़ी ही आसानी से अपनी काबिलियत और मेहनत के भरोसे अब विदेशी विश्वविद्यालयों में एडमिशन मिल जा रहा है। सच तो ये है कि अब भारत इंटरनेशनल एजुकेशन मार्केट का एक बड़ा सप्लायर बन चुका है।
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