पिता का निधन, समाज का सामना कर उद्यमशीलता के सपने को सच कर दिखाया
छोटे से शहर आदीपुर से आने वाले अभिमन्यु चौहान की कहानी शक्ति, दृढ़ता और महत्वाकांक्षा से भरी है. स्कूल में वे हमेशा कुछ अपना करने का सपना देखा करते थे. उनका सपना अपनी मैनुफैक्चरिंग फैक्ट्री खोलने का था. उन्हें जीवन में आगे बढ़ने और उनकी प्रेरणा को बढ़ाने के लिए उनके पिता ने अपना पूरा समर्थन दिया. अपने सपने को सच करने का जोश इतना था कि उन्होंने आर्ट्स और इकोनॉमिक्स के बजाय तकनीकी शिक्षा को चुना. उन्होंने गुजरात टेक्निकल यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई में एडमिशन लिया. यह कोर्स पुराना और अप्रचलित था. उनके मन में हताशा घर कर गई और उन्होंने कुछ सीखने के लिए कॉलेज के बाहर वर्कशॉप में हिस्सा लिया, यह सोचते हुए कि वहीं से उन्हें कुछ नया और प्रासंगिक सीखने को मिलेगा. लेकिन जिंदगी हमारे सपनों और मर्जी के हिसाब से तो नहीं चलती. फरवरी 2008 में अभिमन्यु ने अपने सबसे बड़े समर्थक की तरह रहे अपने पिता को खो दिया. अभिमन्यु के मुताबिक, ‘इसने मेरे पूरे दृष्टिकोण को बदलकर रख दिया. दिलचस्पी की स्वयं परिभाषित जिम्मेदारियां थी, अब उसका संचालन कर रहा हूं. इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में कैट और आईटी कंपनियों के लिए तैयारी कर रहा था, उस वक्त कंपनियां कैंपस प्लेसमेंट के लिए कॉलेज आ रही थी. परिवार की पूरी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर आ गई. मैं अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा जो था.’ अभिमन्यु के सपने का सबसे बड़ा उत्प्रेरक अब नहीं था. परिवार की जिम्मेदारी के कारण उन्होंने टाटा कंसल्टेंसी सर्विस, मुंबई में नौकरी शुरू की. बैंकिंग और फाइनेंस के कार्यक्षेत्र में उन्होंने काम करना शुरू किया. अभिमन्यु कहते हैं, ‘वह काम वो नहीं था जो मैं करना चाहता था. मुझे एहसास हो चला था कि मैं अपने जीवन में कहीं नहीं पहुंच पा रहा हूं. मैंने बिना नई नौकरी के उस काम को छोड़ दिया. मैं कुछ रचनात्मक करना चाहता था. मैंने नई नौकरी के प्रस्ताव के बिना वह नौकरी छोड़ दी. मैंने सोचा कि बिना नौकरी और अकेले रहते हुए मुझे इस बात में मदद मिलेगी कि मैं जीवन के साथ क्या करना चाहता हूं.’ हालांकि समाज ने कुछ और ही सोचा. टीसीएस के साथ काम करते हुए उन्होंने अपने व्यापार के बारे में बड़ा आइडिया सोच रखा था, जिसका छोटा सा हिस्सा मर्चन्डाइजिंग का था.
सुकराटीज (Socratees) एक इंडी कपड़ों का ब्रांड है जो पॉप संस्कृति के आधार पर क्वालिटी मर्चन्डाइज का उत्पादन करता है. टीम खुद भी पॉप संस्कृति का पालन करती और उसके विचार को मानती है. संस्थापक के मुताबिक हर डिजाइन या उत्पाद जो वे बनाते हैं उसका वर्णन होता है जहां से वह विचार अपनाया गया है. वे कहते हैं, ‘हम अपने ग्राहकों के लिए सही टीशर्ट खोजने के काम में जुटे हुए हैं. बढ़िया टीशर्ट वह है जिसमें सही डिजाइन शामिल हो, उसमें फलसफा हो और उसमें असहज रबर प्रिंट न हो. जिसमें सबसे नरम कपड़ा हो और उसकी सिलाई अच्छी हो. वॉशिंग मशीन में जाने के बाद गला ढीला न पड़े.’ जिस संस्कृति को खुद टीम जीवन में अपनाती है उसी को टीम कड़ाई के साथ टीशर्ट के प्रिंट में भी लागू करती है. वे दावा करते हैं कि उनकी रिटर्न और बदलाव की नीति आसान है, अगर ग्राहक को डिजाइन या फिर साइज को लेकर कोई परेशानी हो तो टीशर्ट रिटर्न किया जा सकता है. कंपनी फ्लिपकार्ट, स्नैपडील और अमेजन जैसी प्रमुख कंपनियों पर अपना माल बेचती है. कंपनी में सात लोगों की टीम है. इसके अलावा, मार्केटिंग के मोर्चे पर कंपनी बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर निर्भर रहती है. जबकि ऑफलाइन चैनल्स का इस्तेमाल इवेंट पार्टनरशिप के लिए होता है. संस्थापक से जब इस कंपनी के नाम के बारे में पूछा गया तो वे कहते हैं, ‘मुझे हमेशा से ही ग्रीक नामों को लेकर आकर्षण था. इसके अलावा हम यह समझते हैं कि हर टीशर्ट एक फलसफा या फिर कहानी बयान करती है. इसलिए हमने सुकराटीज के नाम के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया.’
रिपोर्ट कार्ड
संस्थापक के मुताबिक कच्छ से काम करने वाली कंपनी अच्छा प्रदर्शन कर रही है. अब तक कंपनी 30 लाख रुपये का माल बेच चुकी है. कंपनी का दावा है कि उन्होंने चालू वित्तीय वर्ष में 24 लाख का टार्गेट पूरा कर लिया है जो कि पिछले वित्तीय वर्ष में 10 लाख का था. पिछले साल की तुलना में इसमें 200 प्रतिशत का उछाल है. शुरुआत करने के बाद अभिमन्यु के लिए चीजें बहुत शानदार नहीं थी. कंपनी ने जो कुल ऑर्डर प्राप्त किया था उसमें कैश ऑन डिलिवरी पेमेंट्स का हिस्सा अच्छा था. ग्राहक को माल देने के 15-30 दिन के भीतर कुरियर कंपनी उसे भुगतान करने लगी.
दर्शनशास्त्र वाली टीशर्ट
धंधा शुरू होने के 6-7 महीने के बाद ही मार्च 2014 में तीन महीने के लिए कैश ऑन डिलिवरी की पेमेंट ब्लॉक हो गई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सुकराटीज ने जिस कंपनी को लॉजिस्टिक का जिम्मा सौंपा था उसने खाता सही तरीके नहीं रखा. उस दौरान कंपनी असमंजस में पड़ गई. बिक्री शानदार होने के बावजूद भी कंपनी अपना स्टॉक नहीं बढ़ा पाई और न ही नए डिजाइन तैयार कर पाई क्योंकि वह ग्राहक भुगतान पर पूरी तरह से निर्भर थी. अभिमन्यु के मुताबिक उस दौरान ग्राहक हमें लिखते और पूछते कि जो माल अभी आउट ऑफ स्टॉक है वह बिक्री के लिए दोबारा कब आएगा. इस वजह से कंपनी के विकास में बाधा पैदा होने लगी. इसके अलावा कंपनी उस लॉजिस्टिक फर्म के साथ साझेदारी बरकरार नहीं रख पाई जिसके साथ वह काम कर रही थी. कंपनी का पूरा ध्यान व्यापार को बढ़ाने से हटकर बुनियाद को दोबारा मजबूत करने में चला गया. अभिमन्यु कहते हैं, ‘जो जमा पूंजी हमने सुकराटीज के लिए बचा रखी थी वह सब खत्म हो गई. समाज का दबाव और परिवार की जिम्मेदारी ने मेरे अंदर घबराहट पैदा कर दी. 2014 के अप्रैल तक मैंने सभी पैसे निकाल लिए, जो पैसे भविष्य की सुरक्षा के लिए बॉन्ड्स में लगाए थे वह भी निकाल लिए और करो या मरो पर उतर आया. मुझे पता था कि अगर यह नहीं चलता है तो दुकान बंद करनी पड़ेगी और कुछ और करना पड़ेगा.’ लेकिन कहते हैं कि किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जो डटा रहता है. नई पूंजी के साथ कंपनी कुछ प्रमुख डिजाइनों का स्टॉक दोबारा तैयार कर पाई साथ ही उसने नए डिजाइन पेश करने का जोखिम उठाया. 2014 के जुलाई तक कंपनी खतरे से बाहर थी और अपने ट्रैक पर वापस आ गई. अनुमानित फंड का 80 फीसदी पैसा संस्थापक ने वापस पा लिया. साथ ही 20 फीसदी पैसे को पाने के लिए ईमेलों के जरिए बहस जारी है. मजबूती के साथ डटे रहते हुए अभिमन्यु 2014 के नवंबर में ब्रेक ईवन हासिल करने में सफल रहे.
भविष्य की योजना
भविष्य में कंपनी नई श्रेणी जैसे पोस्टर में जोखिम आजमाना चाहती है. कंपनी नए डिजाइन पर भी काम कर रही है जो उसका गो टू स्ट्रीट वियर ब्रांड के तौर पर भारत में खुद को विकसित करने की दिशा में छोटा कदम है. ब्रांड को लेकर अपनी महत्वाकांक्षा के बारे में बात करते हुए जोशीले अभिमन्यु इस तरह से अपनी बात समाप्त करते हैं, ‘ज्यादा से ज्यादा समझने के लिए हम लगातार घूमते हैं और अपने दर्शकों से जुड़ते हैं. एक ऑनलाइन वेबस्टोर होने की वजह से हमें ऑनलाइन समुदाय के बीच बढ़ने में मदद मिली है. हम अब भी बढ़ रहे हैं. हालांकि हमारी कोशिश है कि हमारी पहुंच ऑफलाइन मौजूदगी में भी बढ़े. अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए हम अपने उत्पाद को शिपिंग करने के बारे में भी सोच रहे हैं.’
इस सेगमेंट में Alma mater जैसे स्थापित ब्रांड्स पहले से ही काम कर रहे हैं. Jack of all Threads और Voxpop जैसी कंपनियां स्केलेबिलिटी की तरफ देख रही है, तो वहीं दूसरी कंपनियां जैसे No Nasties और Brown boy ऑर्गेनिक कॉटन पर जोर दे रही है. खुद को अलग रख पाना ही ब्रांड निर्माण के लिए अहम फैक्टर साबित होगा. पहले से ही गर्म बाजार को और गर्म करने के लिए Freecutlr जैसी वेबसाइट आन्ट्रप्रनर को बढ़ावा दे रही है. कंपनी ऐसे लोगों को अपने यहां बुला रही है जो उसके लिए डिजाइन तैयार करे और पार्टनरशिप के साथ वेबसाइट पर उसे बेचे. सुकारटीज जैसे छोटे ब्रांड के लिए जरूरी है कि वह इनोवेशन जारी रखे और ब्रांड को सफल बनाने के लिए जी तोड़ मेहनत करे.