भारत दो दशक में 10,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बन सकता है: राष्ट्रपति
पीटीआई
चुनौतीपूर्ण वैश्विक हालात में भी भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत प्रदर्शन का जिक्र करते हुये राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि अगले दो दशक में इसमें 10 हजार अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता है। राष्ट्रपति ने यहां प्रगति मैदान में 35वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला - 2015 :आईआईटीएफ: का उद्घाटन करते हुये कहा कि घरेलू स्तर पर ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के साथ साथ विनिर्माण पर जोर दिये जाने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमेरिकी देशों में नये निर्यात बाजारों पर ध्यान देते हुये बाहरी परिवेश से उत्पन्न चुनौती का सामाना किया जा सकता है। प्रणब ने कहा, ‘‘हम आज 2,100 अरब डालर की अर्थव्यवस्था हैं और यदि विनिर्माण और नवप्रवर्तन को प्रोत्साहन दिया जाता है तो अगले दो दशक में हम 10 हजार अरब डालर की अर्थव्यवस्था बन सकते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान बने चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक परिदृश्य का मुकाबला करने में हमारी अर्थव्यवस्था सक्षम रही है। दुनिया की कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में छाई आर्थिक सुस्ती से भारत काफी हद तक बचा रहा।
राष्ट्रपति ने कहा कि वर्ष 2012-13 को छोड़कर जब आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत से नीचे चली गई थी, भारतीय अर्थव्यवस्था ने लगातार अपनी मजबूती दिखाई है। उन्होंने कहा कि इसके बाद 2014-15 में 7.2 प्रतिशत वृद्धि हासिल कर देश की अर्थव्यवस्था फिर से तेजी की राह पर चल पड़ी।
उन्होंने कहा, ‘‘इसके आगे और बेहतर होने की उम्मीद है, क्योंकि दूसरे वृहद आर्थिक संकेतकों में काफी सुधार दिखाई दे रहा है।’’ राष्ट्रपति ने कहा कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में बनी हुई है और औद्योगिक प्रदर्शन में भी सुधार के संकेत मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वित्तीय मजबूती के उपायों पर अमल किया गया है और वर्ष 2017-18 तक भारत 3 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल कर लेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले साल उत्साहवर्धक निर्यात कारोबार नहीं होने के बावजूद बाहरी क्षेत्र को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। वैश्विक आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती का असर घटते आयात के रूप में भी दिख रहा है और तेल आयात पर हमारी निर्भरता काफी कम हुई है।’’ देश का चालू खाते का घाटा :कैड: 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद :जीडीपी: के मुकाबले 1.7 प्रतिशत से कम होकर 2014-15 में जीडीपी का 1.4 प्रतिशत रह गया।