हर बच्चे की प्रतिभा के भरपूर इस्तेमाल की कोशिश में जी-जान से जुटी हैं शाहीन मिस्त्री
गरीब बच्चों की जिंदगी को कामयाबी की उड़ान दी है 'आकांक्षा' ने शाहीन ने छेड़ी है अशिक्षितों को शिक्षित करने की भी मुहिमपंद्रह बच्चों से शुरु हुआ शिक्षा का सफर आज बहुत आगे बढ़ चुका है
शिक्षा की परिभाषा को कई संदर्भों में परिभाषित किया जा सकता है। व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो मात्र किताबी ज्ञान ही शिक्षा नहीं कहलाता। जिंदगी और उससे जुड़े विषयों की समझ ही सही मायनों में किसी व्यक्ति को समाज में एक शिक्षित व्यक्ति के रूप में पेश करती है। शिक्षा का संबंध व्यक्ति के व्यक्तित्व, आचरण, सोच, समझ एवं ज्ञान से भी जुड़ा है। आज हमारे देश में कई ऐसे बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जा पाते। इसलिए किताबी ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। जिस वजह से समाज में अशिक्षित कहलाते हैं। ऐसे ही अशिक्षित समझे जाने वाले बच्चों की दुनिया को ज्ञान के दीप से रौशन करने का कार्य कर रही हैं मुंबई की शाहीन मिस्त्री।
शाहीन का जन्म मुंबई में हुआ लेकिन जब वे मात्र 2 साल की थी तब उनके पिता का ट्रांसफर पहले लेबनान और उसके बाद ग्रीस में हो गया। इस प्रकार शाहीन ने अपना बचपन लेबनान और ग्रीस में बिताया। जब वे आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं तब परिवार अमेरिका आ गया और फिर आगे की पढ़ाई उन्होंने अमेरिका से की।
शाहीन के दादा-दादी और बाकी सभी रिश्तेदार मुंबई में रहते थे इसलिए शाहीन का मुंबई आना-जाना लगा रहता था। एक बार जब वे छुट्टियों में भारत आईं तो यहीं रहने का निश्चय कर लिया। उस समय शाहीन की उम्र 18 साल थी। उसके बाद उन्होंने मुंबई के जेवियर कॉलेज में दाखिला ले लिया। शाहीन का बच्चों से काफी लगाव रहा है। जब उन्होंने मुंबई में गरीब बच्चों को देखा तो उनका मन हुआ कि मुझे इन बच्चों के लिए कुछ करना चाहिए। काम आसान तो नहीं था, चुनौतीपूर्ण था। लेकिन जब मन में कुछ करने का जज्बा हो तो इंसान कठिन काम भी आसानी से कर जाता है। इसी जज्बे ने शाहीन को इस दिशा में आगे बढ़कर काम करने की प्रेरणा दी। इस काम में शाहीन के घर वालों ने भी उनका भरपूर साथ दिया।
शाहीन ने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर मुंबई की झोंपड पट्टी के आसपास घूमकर वहां का सर्वे किया। इस दौरान वे वहां रहने वाले काफी परिवारों से भी मिलीं। काफी सोचने के बाद शाहीन ने तय किया कि वे झोंपड पट्टी में रहने वाले गरीब बच्चों को शिक्षा देंगी। इसी सोच के साथ उन्होंने अपना कार्य शुरू कर दिया। शाहीन ने जिन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया उनमें से ज्यादातर बच्चे ऐसे थे जो कभी स्कूल नहीं गए थे। उसके बाद शाहीन ने अपने कॉलेज के दोस्तों से आग्रह किया कि वह इस काम में उनकी सहायता करें और हफ्ते में थोड़ा सा समय निकालकर बच्चों को पढ़ाए। शाहीन ने 'आकांक्षाÓ नाम की एक संस्था बनाई और कार्य आरंभ कर दिया। शाहीन को अब एक ऐसी जगह चाहिए थी जहां वे बच्चों को पढ़ा सकें। शाहीन ने जगह के लिए कई सरकारी स्कूलों में बात भी की लेकिन बात बनी नहीं। आखिरकार एक स्कूल ने बड़ी मुश्किल से जगह दे दी।
शाहीन ने बच्चों को पढ़ाने के लिए ऐसा पाठ्यक्रम रखा जो बच्चों को सीखने के लिए उत्साहित करता था। शुरूआत में पैसे की जरूरत नहीं थी क्योंकि सब स्वयंसेवक थे और जो थोड़ा बहुत स्टेशनरी का खर्च था वह सभी लोग मिलकर वहन कर लेते थे। शाहीन जानती थी कि अगर उन्हें इस प्रयास को और आगे ले जाना है तो उन्हें पैसे की जरूरत पड़ेगी। फिर शाहीन ने 'स्पॉन्सर ए सेंटर' नाम से एक स्कीम शुरू की। इसके बाद आकांक्षा ने कई सेंटर खोले। सन 2002 में आकांक्षा ने पहली बाद मुंबई से बाहर पुणे में अपना सेंटर खोला। धीरे-धीरे लोग 'आकांक्षा' से जुडऩे लगे और सहायता देने लगे।
'आकांक्षा' में बच्चों को केवल पढ़ाया ही नहीं जाता बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाने का प्रयास किया जाता है। यहां अंग्रेजी और गणित मुख्य विषय रखे गए। 'आकांक्षा' के सारे प्रोग्राम एक्टीविटी से जुड़े हैं ताकि आसानी से छात्र उसे ग्रहण कर लें।
उसके बाद तय हुआ की कुछ ऐसा भी किया जाए ताकि बच्चों को यहां से निकलने के बाद नौकरी मिल सके। फिर शाहीन ने इस दिशा में भी कार्य करना शुरू कर दिया 'आकांक्षा' एक औपचारिक विद्यालय नहीं था। यह बच्चों को शिक्षा के साथ उनका चरित्र निर्माणभी कर रहा था ताकि आगे चलकर उन्हें जिंदगी में कठिनाई ना आए।
आज भी 'आकांक्षा' बच्चों को मुख्यत: मुफ्त ही शिक्षा देता है और ज्यादातर यहां स्वंसेवक ही हैं, जो बच्चों को पढ़ाते हैं। यहां बच्चों को यह बताया जाता है कि गलतियां करना बुरी बात नहीं है बल्कि गलतियों से सीखकर ही आप आगे बढ़ते हैं। आज 'आकांक्षा' के बच्चे विप्रो, वेस्टसाइड जैसी कंपनियों और मैजिक बस जैसी एनजीओ में कार्य कर रहे हैं।
शाहीन के संगठन 'आकांक्षा' द्वारा अपनाया गया ये नया तरीका सामाजिक उद्यमशीलता का मूल तत्व है। 'आकांक्षा' गरीब बच्चों को शिक्षा देकर उन्हें समाज के साथ खड़ा कर रहा है। एक केंद्र और 15 बच्चों के साथ शुरू हुए इस अभियान के आज मुंबई और पुणे में 50 से अधिक केंद्र हैं। जहां 4000 से अधिक बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
शाहीन 'टीच फॉर इंडिया' कार्यक्रम के जरिए और लोगों को साथ जोड़कर पूरे भारत में यह अभियान चलाना चाहती हैं ताकि शिक्षा के माध्यम से बाकी राज्यों के गरीब बच्चे भी आत्मनिर्भर हो सकें।