आप और आपके डॉगी के बीच विश्वास की मजबूत कड़ी, 'AAT'
ऐसे ही जानवरों की कहानी है "एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन"
फ्लूडो की दिनचर्या हमेशा की तरह इस सप्ताह भी अत्यंत व्यस्त है. उसे मुंबई के एक स्कूल में जाना है और वहां बच्चों के साथ बातचीत करनी है साथ-साथ उनका मनोरंजन भी करना हैं. फ्लूडो का यह काम उस चिकित्सा पद्धति का हिस्सा है जिसमें वह बच्चों को भावनात्मक और व्यवहार संबंधी समस्याओं से पार पाने में उनकी मदद करता है.
12 साल की एक यौन उत्पीड़ित बच्ची को इस आघात से उबार लेना उसकी सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है. इस घटना के बाद वह लड़की एकदम गुमसुम रहने लगी थी, किसी से भी बात नहीं करती थी और अपना दायाँ हाथ हमेशा अपने सीने से जोर से चिपकाये रखती थी, जिस वजह से वह कुछ लिख भी नहीं पाती थी. एक साल के इलाज और फ्लूडो के साथ बातचीत से वह अपनी इस अवस्था से बाहर आ सकी और अब वह एक आनंदित बच्ची है. अब वो मुस्कुराती है, बात करती है और फ्लूडो को अपने हाथों से प्यार भी करती है. फ्लूडो असल में एक लैब्राडोर नस्ल के एक कुत्ते का नाम है जो कि इस चिकित्सा पद्धति के एक साधन के रूप में काम करता है. इस चिकित्सा पद्धति को पशु सहायतित चिकित्सा पद्धति "Animal-Assisted Therapy (AAT) " कहते है. चिकित्सा जगत में यह एक उभरता हुआ क्षेत्र है. और इसमें कुत्ते या अन्य प्रशिक्षित पशुओं का उपयोग बच्चों, वयस्कों या उम्र दराज लोगों को विभिन्न स्वास्थ्य या मानसिक व्याधियों से उबरने में मदद के लिए किया जाता है.
फ्लूडो "एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन" नामक संस्था की टीम का एक सदस्य है. "एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन" देश की पहली ऐसी संस्था है जो कि इस विषय पर काम कर रही है. "एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन" की स्थापना एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक और "Animal-Assisted Therapy (AAT)" प्रामाणित चिकित्सक रोहिणी फर्नांडिस एवं राधिका नायर द्वारा सन 2005 में की गयी थी. शुरुआत में इसमें रोहिणी का केवल एक लैब्राडोर कुत्ता शामिल था जबकि अब इस से कुल २० पालतू कुत्ते जुड़े हुए हैं.
कुत्तों के माध्यम से लोगों को इलाज में मदद करने का विचार रोहिणी के मन में तब आया जब वो परास्नातक की पढाई कर रही थी. घर में जानवरों को पसंद न करने वाले एक परिवार के पास से वापस आते हुए उनके मन में यह विचार आया कि क्यों न एक कुत्ते को पाल के और उसे प्रशिक्षित कर के अपने ग्राहकों के साथ "Animal-Assisted Therapy (AAT) " पर अनुसन्धान करते हुए विशेषज्ञता हासिल की जाय. और सबसे पहले उन्होंने अपने "एंजेल" नाम के लैब्राडोर को प्रशिक्षित किया जिसके नाम से इस संस्था की स्थापना हुयी.
सभी कुत्तों का इस्तेमाल इस काम के लिए नहीं किया जा सकता है. इस पद्धति के दौरान मरीजों और विशेष रूप से बच्चों के साथ काम करते हुए इन कुत्तों को बहुत ही तनावपूर्ण स्थितियों से गुजरना पड़ता है. यह अत्यंत आवश्यक है कि इस दौरान कुत्ते सहज, सुरक्षित और उम्मीद के मुताबिक व्यवहार करें.
"एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन" में कुत्तों का चयन उनके अच्छे स्वभाव, दोस्ताना व्यवहार,शारीरिक योग्यता, अच्छे स्वास्थ्य और उनकी प्रशिक्षित होने के सामर्थ्य के आधार पर किया जाता है.इन सबके लिए उन्हें एक परीक्षण से गुजरना पड़ता है और इसमें सफल होने पर ही उनका पंजीकरण किया जाता है. "इन कुत्तों को सज्जन होना सिखाया जाता है. यदि कोई उनके मुह से कुछ छीनता है या कोई बच्चा उनकी पूँछ खींचता है तो ये आक्रामक नहीं होंगे. अगर उनका कोई मरीज कुछ ऐसा कर रहा है जो इन्हे पसंद नहीं तो गुर्राने या भौकने की बजाय इन्हे वहां से हट जाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है." रोहिणी बताती हैं.
"एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन" की टीम में 4 प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक शामिल हैं जो कि मुंबई, हैदराबाद और नासिक के 10 से भी ज्यादा स्कूलों, मानसिक स्वास्थ्य केन्द्रों और अन्य संस्थानों में जाते रहते हैं. इस पद्धति के अच्छे प्रभाव और परिणामों की अभिस्वीकृति के बावजूद "एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन" के सामने इस चिकित्सा पद्धति की स्वीकार्यता को लेकर शुरुआत में अनेको बाधाएं आयीं. क्योंकि हमारे देश में इस पद्धति के विषय में ज्यादा लोगों ने नहीं सुना था. "लोगों के मन में इसको लेकर संशय था. वो सोचते थे कुत्ते गंदे होते हैं या अन्य कोई घटना घटित हो सकती है." रोहिणी कहती हैं. उन्हें जानवरों को साथ लेकर पूरे मुंबई में घूमने में बहुत असुविधा का सामना करना पड़ता था, "एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन" का अपना कोई पशु-केंद्र भी नहीं था. अब उनके पास तरह तरह के कुत्तो का एक पूरा तंत्र शहर के विभिन्न हिस्सों में मौजूद है. और इस से रोहिणी और राधिका अपने मरीज या ग्राहक के समीप के क्षेत्र के कुत्ते को लेकर अपना काम कर पाती हैं.
पशु सहायतित इस चिकित्सा पद्धति का लाभ यह है कि "बच्चे कुत्तों को अपने दोस्त के रूप में और बड़े कुत्तों को बच्चे के रूप में देखते हैं." रोहिणी बताती है. यह रिश्ता विश्वास पैदा करता है और फिर वो सलाहकार के सम्मुख अधिक सहजता से खुल कर अपनी बात कह पाते हैं. "आटिज्म या आत्मकेंद्रित बच्चों के अंदर इस तरीके से विभिन्न सामाजिक कौशल जैसे दूसरों से बात करना, अपनी भावनाएं प्रकट कर पाना आदि विकसित किये जा सकते है. इसके अतिरिक्त विकास असमर्थता से प्रभावित बच्चों को भी इस माध्यम से खाने, खेलने और व्यायाम करने में ये कुत्ते सहायता करते हैं." वहां के एक मनोविज्ञानी बताते हैं. यह तरीका उनका व्यवहार परिवर्तन कर सकता है, उनमें जिम्मेदारी महसूस करने का भाव पैदा करता है, यहाँ तक कि उनमे सहभागिता कर पाने कि योग्यता उतपन्न कर सकता है. जिस से कि वो चिन्हित लक्ष्य और उद्देश्य को प्राप्त करने की ओर बढ़ सकें. बच्चे जानवरों के साथ जल्दी विश्वास बना लेते हैं और उन से दोस्ती कर लेते हैं. उनकी यह विशेषता इस पद्धति को और प्रभावी बनाने में मददगार साबित होती है.
इसी प्रकार से द्विध्रुवी विकार, अवसाद या पार्किंसन से पीड़ित वयस्कों की बेचैनी और दर्द को जानवरों के साथ गतिविधियों के द्वारा कम किया जा सकता है. साथ ही उनमे गतिशीलता, शक्ति,सहनशीलता, संतुलन तथा संवेदनशीलता को बेहतर किया जा सकता है. यह प्रक्रिया अवसाद के लक्षणों को भी कम करती है. जानवरों के साथ से एंड्रोफीन का स्तर बढ़ता है जिस से कि आत्मसम्मान और प्रेरणा के भाव में वृद्धि होती है वहीँ अलगाव का एहसास कम होता है.चिकित्सा के आधार पर यह उन लोगों और विशेष रूप से शारीरिक या यौन दुर्व्यवहार पीड़ितों, जो के स्वयं को किसी के द्वारा छुए जाना भी पसंद नहीं करते, के लिए एक बेहतर विकल्प है.
पशु सहायतित इस चिकित्सा पद्धति में कुत्तों का ही सर्वाधिक उपयोग होता है, क्योंकि उन्हें आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है. कुछ प्रजातियां जैसे कि रॉटवीलर में अत्यंत आत्म विश्वास तथा प्रवीणता होती है. जबकि घोड़ों का इस्तेमाल मस्तिष्क पक्षाघात तथा डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों के लिए किया जाता है वहीँ बिल्लियाँ वृद्धों के लिए ज्यादा अनुकूल होती है तो अति सक्रिय व्यक्तियों के लिए मछलियों को काम में लाया जाता है. इसी प्रकार से खरगोश, हिरन और पक्षियों का भी उपयोग इस पशु सहायतित चिकित्सा पद्धति में किया जाता है.
पशु सहायतित इस चिकित्सा पद्धति और अवधारणा को पूरे देश में विस्तार देना रोहिणी का सपना है. वह इस माध्यम से लोगों का इलाज करने के लिए देश के अन्य शहरों में बहुत से क्लीनिक खोलना चाहती है और इसके लिए और चिकित्सको को प्रशिक्षित करना चाहती हैं.
साथ ही "एनिमल एंजेल्स फाउंडेशन" निरंतर मुंबई में पालतू कुत्तों की खोज में भी रहता है जिस से की उन्हें प्रशिक्षित कर के उन की सेवाएं इस काम में ली जा सकें. यदि आपका पालतू जानवर इन मानदंडों को पूरा करता है और वह 6 महीने से ज्यादा आयु का है तो आप आवेदन कर के अगले दौर के "स्वभाव परीक्षण" (Temperament Testing) के लिए इन्तजार कर सकते हैं।