तूफानों से लड़कर पाई मंजिल: अपने दो बेटों के साथ कार चलाकर आर्कटिक पहुंचीं भारुलता
वे भारतीय मूल की पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने कार चलाते हुए आर्कटिक ध्रुव तक का सफर पूरा किया और वहां पहुंचकर भारत का तिंरगा झंडा फहराया। इस सफर में उनके दोनों बेटे भी साथ थे।
भारुलता मूल रूप से गुजरात के नवसारी जिले की रहने वाली हैं । 45 वर्षीय भारुलता अपने परिवार के साथ इंग्लैंड में रहती हैं। लेकिन उन्हें अब भी भारत से प्यार है। यही वजह है कि अपना अभियान शुरू करने से पहले वे मुंबई आई थीं।
हमारा समाज महिलाओं के प्रति कितने भी रूढ़िवादी ख्याल रख ले, लेकिन स्त्रियां इन सब बातों को दरकिनार कर चलते हुए अपनी मंजिल पा ही लेती हैं। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है भारुलता पटेल कांबले ने। वे भारतीय मूल की पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने कार चलाते हुए आर्कटिक ध्रुव तक का सफर पूरा किया और वहां पहुंचकर भारत का तिंरगा झंडा फहराया। इस सफर में उनके दोनों बेटे भी साथ थे।
भारुलता ने कार ड्राइव के जरिए कई सारे कारनामे अपने नाम किए हैं। वे भारत के 12 राज्य और 35,000 से ज्यादा दूर तक ड्राइविंग कर चुकी हैं। उनके नाम रेगिस्तान से लेकर 14,000 फीट की ऊंचाई तक कार चलाने का रिकॉर्ड है। हालांकि उनका शौक महज रिकॉर्ड बनाने के लिए नहीं हैं बल्कि इसका एक खास मकसद भी है। उनके अभियान में कई सारी पहल शामिल हैं- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, प्लास्टिक मुक्त विश्व और कैंसर फ्री महिलाएं। वे इन सारे मुद्दों को लेकर दुनियाभर में जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं।
भारुलता मूल रूप से गुजरात के नवसारी जिले की रहने वाली हैं । 45 वर्षीय भारुलता अपने परिवार के साथ इंग्लैंड में रहती हैं। लेकिन उन्हें अब भी भारत से प्यार है। यही वजह है कि अपना अभियान शुरू करने से पहले वे मुंबई आई थीं।
वे बताती हैं, 'बीते साल मैं ब्रैस्ट कैंसर की गिरफ्त में आ गई थी और मेरा दाहिना हाथ काम करना बंद कर चुका था। लेकिन इलाज के बाद इसमें कुछ सुधार आया।' इसके बाद उनके दिमाग में अपने बच्चों के साथ आर्कटिक सर्कल का चक्कर लगाने का आइडिया आया। 20 दिनों की इस यात्रा में 14 देश शामिल थे। उन्होंने इस अभियान में10,000 किलोमीटर से ज्यादा का सफर किया। भारुलता ने अपनी यात्रा इंग्लैंड से शुरू की थी जिसके बााद फ्रांस, बेल्जियम, डेनमार्क, स्वीडन और पोलैंड होते हुए जर्मनी के रास्ते वापस आईं।
उनके इस सफर में उनके पति सुबोध का पूरा सहयोग मिला। जो इंग्लैंड से ही बैठे बैठे नेविगेट करते रहे। भारुलता को देश के राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार भी मिल चुका है।
भारूलता कहती हैं कि आने वाले समय में वे ऐसे ही 50 और देशों का सफर करेंगी। उन्हें काफी पहले से ही कार चलाने का शौक रहा है। यही वजह है कि उन्होंने 1997 में ही इंग्लैंड में 600 किलोमीटर की सेल्फ ड्राइविंग की थी। वे बताती हैं कि बचपन में उन्हें भी लिंगभेद का सामना करना पड़ा। जिसका दर्द उन्हें आज भी है। यही वजह है कि वे अपनी इस यात्रा के जरिए समाज में जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं।
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