गर्भवती महिलाओं के खान-पान से लेकर प्रसव की जिम्मेदारी संभाल रहा छत्तीसगढ़ का यह प्रसव प्रतीक्षा केंद्र
छत्तीसगढ़ का ये प्रसव प्रतीक्षा केंद्र आधुनिक तरीके से कर रहा गर्भवती महिलाओं की देख-भाल...
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 45,000 महिलाएं प्रसव के दौरान दम तोड़ देती हैं वहीं 8.4 लाख शिशुओं की मौत हो जाती है। इस भयानक स्थिति के पीछे सरकारी इंतजाम और लोगों की मानसिकता दोनों जिम्मेदार है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि आसपास कोई प्रसव केंद्र नहीं होने से महिलाओं को काफी दिक्कत होती थी लेकिन अब उन्हें राहत मिल गई है। इस प्रसव प्रतीक्षा गृह का संचालन एक एनजीओ 'शमयिता मठ' कर रहा है।
भारत में गर्भावस्था या सुरक्षित प्रसव से जुड़ी इतनी समस्याएं हैं कि हजार में से 5 महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। वहीं शिशु मृत्यु दर का आंकड़ा 34 प्रति हजार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 45,000 महिलाएं प्रसव के दौरान दम तोड़ देती हैं वहीं 8.4 लाख शिशुओं की मौत हो जाती है। इस भयानक स्थिति के पीछे सरकारी इंतजाम और लोगों की मानसिकता दोनों जिम्मेदार है। आज भी गांवों में अधिकतर महिलाओं का प्रसव घर में ही हो जाता है। कई बार उन्हें अस्पताल तक पहुंचाने की सुविधा नहीं होती तो कई बार अस्पताल या प्रसव केंद्र होते हुए भी गांव की महिलाएं घर में ही डिलिवरी करवा देती हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के पालनार में एक साल पहले एक प्रसव प्रतीक्षा गृह का निर्माण किया गया ताकि गांव की गर्भवती की महिलाओं की देखभाल की जा सके और उन्हें सुरक्षित प्रसव कराया जा सके।
जिले से लगभग 16 किलोमीटर दूर पालनार गांव के उपस्वास्थ्य केंद्र में जिला प्रशासन की मदद से पिछले साल 19 अगस्त को प्रसव प्रतीक्षा गृह का लोकार्पण किया गया था। इसका मकसद था आसपास के ग्रामीण महिलाओं को सुरक्षित प्रसव और उपचार दिलाना। स्थानीय लोग बताते हैं कि आसपास कोई प्रसव केंद्र नहीं होने से महिलाओं को काफी दिक्कत होती थी लेकिन अब उन्हें राहत मिल गई है। इस प्रसव प्रतीक्षा गृह का संचालन एक एनजीओ 'शमयिता मठ' कर रहा है। इस संस्था द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा इलाकों में खेती, चिकित्सा और शिक्षा पर भी काम किया जा रहा है। शमयिता मठ के साथ जुड़कर पिछले 10 सालों से काम कर रहीं कोऑर्डिनेटर बिंदु विमल को प्रसव प्रतीक्षा गृह की देख रेख का जिम्मा सौंपा गया।
बिंदु बताती है कि यहां के गांवों में घर पर ही प्रसव का होना काफी आम बात है। इसे कम करने और महिलाओं को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रसव प्रतीक्षा गृह की स्थापना की गई। वह कहती हैं, 'कई जगहों पर ऐसा होता है कि घरों पर ही डिलिवरी हो चुकी होती है, लेकिन जच्चा और बच्चा की हालत ठीक नहीं होती। हम उन घरों में जाते हैं और वहां की महिलाओं को समझाते हैं कि घर पर डिलिवरी करना ठीक नहीं होता।' वह बताती हैं कि घर पर डिलिवरी कराने से माता और बच्चे की जान को खतरा रहता है। क्योंकि घर पर न तो इलाज की कोई सुविधा होती है और न ही किसी प्रकार की मदद मिल पाती है जो अस्पताल में मिल सकती है।
इसके पीछे की मानसिकता और सोच के बारे में बात करते हुए बिंदु कहती हैं, 'गांव के लोग आज भी अपने पूर्वजों की राह पर चल रहे हैं। वे कहते हैं कि उनका जन्म भी तो घर में ही हुआ था और पहले कोई अस्पताल जाता ही नहीं था। लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि तब और आज के मातृ-शिशु मृत्यु दर में कितनी गिरावट आई है।' प्रसव प्रतीक्षा गृह में गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराने के अलावा उनकी पहले से ही देखभाल भी की जाती है। बिंदु बताती हैं, 'गांव का माहौल कुछ ऐसा होता है कि महिलाओं को कभी आराम करने का मौका नहीं मिल पाता, फिर चाहे वह गर्भवती ही क्यों न हो। खाना बनाने से लेकर लकड़ियां ढोने तक का काम गर्भवती महिलाएं करती हैं।'
बिंदु ने हमें बताया कि यह संस्था यहां दो सेक्टरों बनाकर काम कर रही है। एक पालनार और दूसरा पोटाली। दोनों सेक्टरों के अंतर्गत 27 गांव आते हैं। संस्था के कार्यकर्ता गांव स्तर से लेकर ब्लॉक स्तर तक मीटिंग करते हैं और रणनीति बनाकर गर्भवती महिलाओं को किस तरह फायदा पहुंचाया जा सके इसकी चर्चा करते हैं। गांव की अगर कोई महिला इस प्रसव प्रतीक्षा केंद्र का लाभ ले चुकी होती है तो वह गांव की अन्य महिलाओं को भी इसके बारे में बताती है और उन्हें भी प्रसव केंद्र में ही डिलिवरी कराने के लिए प्रेरित करती है।
प्रसव प्रतीक्षा गृह में काउंसलर के तौर पर काम करने वाली पार्वती कश्यप ने बताया कि महिलाओं की देखभाल का पूरा इंतजाम है। यहां उनका मन लगा रहे इसके लिए मनोरंजन के साधन जैसे टीवी भी लगाया गया है। अगर किसी महिला के घर में बच्चे हैं तो उनके लिए भी खाने-पीने और खेलने-कूदने का पूरा इंतजाम किया जाता है। इतना ही नहीं गांवों में प्रसव कराने वाली मितानिन दीदियों के लिए भी यहां सारे इंतजाम होते हैं। उनके साथ ही परिवार का एक सदस्य भी रह सकता है। उन्होंने हमें बताया कि इस सुविधा से इतना परिवर्तन हुआ है कि अब गांव के लोग खुद आकर कहते हैं कि वे अपनी बीवी या बहु का प्रसव यहीं करवाएंगे।
बिंदु कहती हैं कि हमारा उद्देश्य मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम करना है। जिन इलाकों में नक्सलवाद और विकास न हो पाने की वजह से सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं वहां भी हम जाने का प्रयास करेंगे। जो लोग जिद करके बैठे हैं कि वे अस्पताल नहीं जाएंगे उन्हें भी बदलना है। वह कहती हैं किअभी हालांकि ये एक छोटी शुरुआत है, लेकिन आने वाले समय में हम और भी बेहतर करते रहेंगे।
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