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गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए हर हफ्ते गुड़गांव से उत्तराखंड का सफर करते हैं आशीष

गांव के बच्चों को पढ़ाने के लिए हर हफ्ते गुड़गांव से उत्तराखंड का सफर करते हैं आशीष

Wednesday June 13, 2018 , 4 min Read

गुड़गांव में स्थित एक मल्टीनेशनल आईटी कंपनी में नौकरी करने वाले आशीष डबराल बिना किसी स्वार्थ के हर सप्ताह अपने गांव जाते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं। उनका गांव तिमली पौड़ी-गढ़वाल जिले में स्थित है।

आशीष और उनके स्कूल के बच्चे

आशीष और उनके स्कूल के बच्चे


इस सेंटर का नाम 'द यूनिवर्सल गुरुकुल' है। बीते चार साल से आशीष हर सप्ताह गुड़गांव से तिमली जाते हैं और कंप्यूटर सेंटर के साथ ही पास के प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं।

हर दौर में अध्यापन का पेशा सम्माननीय रहा है। आज भी गरीब और वंचितों को शिक्षित करने से ज्यादा पुण्य का काम शायद ही कोई दूसरा हो। लेकिन किसी के लिए हर सप्ताह के अंत में 20 घंटे का सफर कर गुड़गांव से उत्तराखंड जाना और वहां बच्चों को पढ़ाना कितना मुश्किल हो सकता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। गुड़गांव में स्थित एक मल्टीनेशनल आईटी कंपनी में नौकरी करने वाले आशीष डबराल बिना किसी स्वार्थ के हर सप्ताह अपने गांव जाते हैं और बच्चों को पढ़ाते हैं। उनका गांव तिमली पौड़ी-गढ़वाल जिले में स्थित है।

आशीष अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके ग्रेट ग्रेट ग्रैंड फादर यानी दादा जी के दादा जी गांव में ही 1882 में संस्कृत स्कूल की स्थापना की थी। उन्हीं से आशीष ने प्रेरणा ली। उनके दादा बद्री दत्त डबराल ने श्री तिमली संस्कृत पाठशाला की स्थापना की थी। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह इलाका उस वक्त संयुक्त प्रांत में आता था। संस्कृत शिक्षा की वजह से ही इसे गढ़वाल का काशी भी कहा जाता था। बाद में 1969 में सरकार द्वारा अधिग्रहीत कर लिया गया।

आशीष बताते हैं कि 2013 में यह स्कूल बुरी स्थिति में पहुंच गया, क्योंकि इलाके में पलायन और गरीबी की वजह से कोई पढ़ने वाला ही नहीं बचा। सिर्फ 3 बच्चों ने उस वर्ष अपना दाखिला कराया था। आशीष ने अपने गांव के पास में ही अपने परिजनों की सहायता से एक कंप्यूटर सेंटर खोल दिया। इसमें तिमली और आसपास के इलाकों के बच्चे कंप्यूटर सीखने आते हैं। वे कहते हैं, 'इस गांव में पले-बढ़े होने के कारण यहां से एक लगाव बना हुआ है। हमारा मकसद है कि यहां के बच्चों को शिक्षित किया जाए और उनके रोजगार की व्यवस्था की जाए ताकि पलायन रुक सके।'

उत्तराखंड के गांवों का पलायन होने की वजह से कई गांवों को भूतों का गांव कहा जाने लगा है क्योंकि वे पूरी तरह से सुनसान हो गए हैं। आशीष ने इस सेंटर को शुरू करने के लिए कई नौकरिया बदलीं और पैसे जुटाए। इसके बाद अपनी पत्नी और भाई की मदद से कंप्यूटर सेंटर शुरू किया। 2013 में वे गुड़गांव में शिफ्ट हुए थे और 2014 से कंप्यूटर सेंटर की शुरुआत हुई। इस सेंटर का नाम 'द यूनिवर्सल गुरुकुल' है। बीते चार साल से आशीष हर सप्ताह गुड़गांव से तिमली जाते हैं और कंप्यूटर सेंटर के साथ ही पास के प्राइमरी स्कूल के बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं।

आशीष बताते हैं कि गांव से लगभग 80 किलोमीटर के दायरे में कोई स्कूल नहीं है। यही वजह है कि लगभग 23 गांव के 36 बच्चे उनके स्कूल में पढ़ रहे हैं। ये बच्चे भी हर रोज 4 से 5 किलोमीटर का सफर करके स्कूल पहुंचते हैं। आशीष का दिल्ली से उत्तराखंड का सफर करना काफी थका देने वाला होता है, लेकिन फिर भी वे इसे किये जा रहे हैं। वे कहते हैं, 'मैं काफी दिनों से ये काम कर रहा हूं और अब ये काम ही मेरी जिंदगी बन गया है। मैं गुरुवार की रात ISBT से बस पकड़ता हूं और ऋषिकेश पहुंचता हूं। यहां मेरा परिवार रहता है। सुबह का नाश्ता करने के बाद मैं अपनी खुद की गाड़ी से देवीखेत पहुंचता हूं जो कि ऋषिकेश से तकरीबन 90 किलोमीटर पड़ता है। रविवार को मैं वापस गुड़गांव आ जाता हूं।' आशीष अपने प्राइमरी स्कूल को आगे तक बढ़ाना चाहते हैं।

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