MSME को उनकी पूरी क्षमता हासिल करने से रोक रही हैं ये तीन बड़ी चुनौतियाँ
भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (MSMEs) हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। वे सकल घरेलू उत्पाद के 30 प्रतिशत के करीब योगदान देते हैं और लगभग 6.33 करोड़ MSMEs के साथ 11 करोड़ नागरिकों को रोज़गार देने वाले महत्वपूर्ण जेनरेटर है। वे देश के कुल एक्सपोर्ट में 40 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं। जीडीपी में उनका योगदान अब से FY26 के बीच लगभग $ 1 ट्रिलियन तक बढ़ने का अनुमान है।
अपने महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, MSMEs सेक्टर इस साल की शुरुआत में कोविड-19 महामारी के चलते सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक रहा है। सप्लाई चेन के रूप में, जो इसके संचालन का समर्थन करती हैं, बाधित हो गईं, इसने MSMEs के सामने आने वाली कुछ सिस्टेमेटिक चुनौतियों को सामने लाया जिन्हें केवल कोविड-19 के बाद की दुनिया में खत्म किया जा सकता है। कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं जिनका MSMEs सामना करते हैं:
कार्यशील पूँजी (Working Capital) तक पहुंच का अभाव
MSMEs की एक बड़ी संख्या को अक्सर कार्यशील पूँजी के रेग्यूलर सोर्सेज की आवश्यकता होती है ताकि वे चलते रहें। उनके लिए आवश्यक लोन की राशि सामान्य रूप से छोटी है (50,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक)। फिर भी, फॉर्मल बैंकिंग सिस्टम इस सेक्टर की मांग के केवल एक हिस्से को पूरा कर सकता है। विश्व बैंक के एक पार्ट, इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का फॉर्मल बैंकिंग सिस्टम केवल MSMEs की जरूरत के लगभग 11 लाख करोड़ रुपये की आपूर्ति कर सकता है, जो कि इस सेक्टर की मांग का एक तिहाई से भी कम है।
मांग और आपूर्ति में इस बड़े अंतर का एक बड़ा कारण MSMEs को ऑपरेट करने का तरीका है। उनके छोटे आकार को देखते हुए, वे जीएसटी नेटवर्क का हिस्सा बनने में असमर्थ हैं, और, परिणामस्वरूप, वे फ़ाइनेंशियल रिकॉर्ड्स का सेट बनाए रखने के लिए बाध्य नहीं हैं। यह फॉर्मल डॉक्यूमेंटेशन की कमी के कारण है कि बैंक MSME की ऋण योग्यता (credit worthiness) का आकलन करने के लिए स्टैंडर्ड अंडरराइटिंग प्रोसेस को पूरा करने में असमर्थ हैं। नतीजतन, MSMEs दूसरे उधारदाताओं का सहारा लेने के लिए मजबूर होते हैं, जो फॉर्मल बैंकिंग सिस्टम का हिस्सा नहीं होते हैं और अक्सर अनुचित ब्याज दरों पर उधार लेते हैं, साथ ही क्रेडिट के इन सोर्सेज को खत्म होने के बाद भी देखते हैं। इस तरह के कारोबारी माहौल में कम से कम बचत के साथ अपना संचालन बनाए रखने वाले MSMEs ज्यादा नहीं हैं।
अयोग्य प्रक्रियाओं और अकुशल कार्यबल से खराब उत्पादकता
जबकि MSME सेक्टर गैर-कृषि श्रमिकों के एक बड़े हिस्से को रोज़गार देता है, उनमें से अधिकांश पांच श्रमिकों से हायर करते हैं और विश्व बैंक इस संख्या को सभी MSMEs का लगभग 94.6 प्रतिशत मानता है। MSMEs के लगभग 99 प्रतिशत में 10 से कम कर्मचारी हैं और जबकि भारत में MSMEs की प्रोडक्टिविटी पर कोई ठोस डेटा नहीं है, ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डवलपमेंट (OECD) के देशों के मैन्युफैक्चरिंग MSMEs की प्रोडक्टिविटी के आंकड़े बताते हैं कि मिडियम फर्म्स (जहां 50 से 250 लोग काम करते हैं) के प्रोडक्टिविटी लेवल से माइक्रो फर्म्स की प्रोडक्टिविटी लगभग 80-100 प्रतिशत अधिक है, जहां नौ से भी कम लोग काम करते हैं।
गौरतलब है कि प्रोडक्टिविटी एक वर्चुअल सायकल को लीड करती है। प्रोडक्टिविटी में वृद्धि के साथ, जिसका अर्थ है कि अधिक रेवेन्यू जो श्रमिकों को काम पर रखने और कुशल बनाने, बेहतर टेक्नोलॉजी और प्रोसेस प्रदान करने और फर्म की आगे की ग्रोथ को सक्षम करने के लिए इनोवेशन में लगाया जाना।
हालांकि, भारत में अधिकांश MSMEs को लॉन्ग-टर्म ग्रोथ और रोज़गार सृजन (job creation) के लिए अपनी पूरी क्षमता को अनलॉक करना बाकी है। विश्व बैंक की रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि भारत में, 40 वर्षीय प्लांट के लिए कर्मचारियों की औसत संख्या लगभग उसके पांच वर्षीय समकक्ष (counterpart) के लिए समान है।
बाजारों तक पहुंच का अभाव
किसी भी उद्योग की वृद्धि के लिए बाज़ार की पहुंच महत्वपूर्ण है। कोविड-19 से पहले की स्थिति में भारत के अधिकांश MSMEs को एक ईंट और मोर्टार मॉडल के माध्यम से अपने संचालन (operations) को पूरा करने के लिए जाना जाता था, जिसे आउटरीच को उनके भौगोलिक स्थान और प्रोडक्टिविटी तक सीमित करने के लिए जाना जाता है, जबकि भारत में MSMEs बेहतरीन स्टैंडर्ड वाले सामान का प्रोडक्शन कर सकते हैं। जैसा कि पहले भी उल्लेख किया गया है कि ग्लोबल वेल्यू चेन्स तक पहुंच की कमी उनके रेवेन्यू को बढ़ाने और ग्रोथ के पुण्य चक्र को निर्धारित करने की क्षमता में बाधा डालती है।
आगे का रास्ता
इन चुनौतियों को हल करने के लिए अलग-अलग प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के स्टेकहोल्डर्स से समन्वित प्रयासों (coordinated efforts) की आवश्यकता होती है। मई में, सरकार ने MSME सेक्टर के पुनरुद्धार (revival) का समर्थन करने के लिए कई कदमों की घोषणा की। सरकार ने स्ट्रेस्ड MSMEs के लिए योजनाओं के साथ सेक्टर का समर्थन करने के लिए बैंकों को भी बुलाया, जैसे कि इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी (ECLG) और पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बैंकों को आवश्यक क्रेडिट की आपूर्ति करने के लिए कहा।
इस वर्ष के नवंबर में, सरकार ने वर्ल्ड बैंक-फंडेड प्रोग्राम "Raising and Accelerating MSME Productivity" (RAMP) के लिए Environmental and Social Assessment (ESSA) के स्टेकहोल्डर्स से उनकी टिप्पणियां मांगी। यह भारत में MSMEs की प्रोडक्टिविटी और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने पर भारत सरकार का समर्थन करने के लिए $ 500 मिलियन का ऑपरेशन है।
प्राइवेट सेक्टर के कई स्टेकहोल्डर्स भी MSMEs की ग्रोथ के लिए अपने प्रयासों में योगदान दे रहे हैं। उनमें से प्रमुख ग्लोबल भारत मूवमेंट हैं। यह SAP द्वारा NASSCOM फाउंडेशन, यूनाइटेड नेशनल डवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) और प्रथम इन्फोटेक फ़ाउंडेशन के सहयोग से एक अनूठी पहल है। ग्लोबल भारत मूवमेंट की परिकल्पना MSMEs के लिए एक एक्सीलरेटर के रूप में की गई है, जो अधिक दक्षता और बिज़नेस वैल्यू को बढ़ाता है। महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के पुनर्मूल्यांकन में मदद करके, मूवमेंट इन कंपनियों को भविष्य के लिए तैयार होने में सक्षम बनाता है। यह तीन-आयामी (three-pronged) दृष्टिकोण का अनुसरण करता है – ग्लोबल मार्केट तक पहुंच प्रदान करना, वर्कफोर्स को डिजिटल रूप से पूरा करना और बिज़नेस को डिजिटल रूप से बदलना।
ग्लोबल भारत मूवमेंट ग्लोबल स्टैंडर्ड्स, सिस्टम्स और प्रोसेसेस, प्रैक्टिसेज, आदि के साथ अधिक कुशलता से ड्राइव करने में कैसे मदद कर रहा है, इसके बारे में अधिक जानने के लिए, यहां क्लिक करें।
-अनुवाद : रविकांत पारीक
Edited by Ranjana Tripathi